Amalaki Ekadashi: विवाह के बाद पहली बार आमलकी एकादशी पर काशी पहुंचे थे भोले बाबा, खेली थी माता पार्वती के संग होली, जानें क्या है इस एकादशी का महत्व, पढ़ें कथा
Amalaki Ekadashi: फाल्गुन शुक्ल एकादशी को आमलकी एकादशी कहते हैं. इस दिन आंवला के पेड़ के नीचे भगवान विष्णु का पूजन किया जाता है. मान्यता है कि आंवले के वृक्ष में भगवान विष्णु का वास होता है. जगत के पालनहार भगवान विष्णु ने जनकल्याण के लिए अपने शरीर से पुरुषोत्तम मास की एकादशियों सहित कुल 26 एकादशियों को उत्पन्न किया। इस एकादशी का महत्व इसलिए और भी बढ़ जाता है क्योंकि इसी दिन ही भगवान शिव, माता पार्वती से विवाह के उपरांत पहली बार अपनी प्रिय काशी नगरी आए थे।
गीता में भी परमेश्वर श्री कृष्ण समस्त एकादशियों को अपने ही समान बलशाली बताया है। फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को ‘आमलकी’ या ‘रंगभरी’ एकादशी के नाम से जाना जाता है। मान्यता है कि इसी दिन काशी में शिव ने देवी पार्वती के साथ होली खेली थी।
जानें क्या है महत्व
इस एकादशी का महत्व अक्षय नवमी के समान माना गया है. पुराणों के अनुसार भगवान विष्णु ने कहा है- कि जो प्राणी स्वर्ग और मोक्ष प्राप्ति की कामना रखते हैं,उनके लिए आमलकी एकादशी का व्रत अत्यंत श्रेष्ठ है।
जाने क्यों महत्वपूर्ण है आंवले का पूजन
आचार्य सुशील कृष्ण शास्त्री बताते हैं कि पद्म पुराण में बताया गया है कि इस दिन भगवान विष्णु, मां लक्ष्मी के साथ-साथ आंवले के वृक्ष की पूजा का खास विधान है। क्योंकि इसी दिन सृष्टि के आरंभ में सबसे पहले आंवले के वृक्ष की उत्पत्ति हुई थी। आंवला वृक्ष भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय है। इसके स्मरण मात्र से गोदान का फल मिलता है, स्पर्श करने से दोगुना और फल भक्षण करने से तिगुना फल प्राप्त होता है। इसके मूल में विष्णु, उसके ऊपर ब्रह्मा, तने में रूद्र, शाखाओं में मुनिगण, टहनियों में देवता, पत्तों में वसु, फूलों में मरुदगण और फलों में समस्त प्रजापति वास करते हैं।”अतः यह सब पापों को हरने वाला परम पूज्य वृक्ष है। इस दिन आंवले के पेड़ के नीचे बैठकर नारायण की पूजा करने से एक हजार गौ दान के समान पुण्य की प्राप्ति होती है।
पढ़ें पौराणिक कथा
पौराणिक कथा है कि प्राचीन समय में वैदिक नामक नगर में चैत्ररथ नामक चंद्रवंशी राजा राज्य करते थे। इस नगर में सभी लोग विष्णु जी के भक्त थे और एकादशी का व्रत किया करते थे। एक बार फाल्गुन शुक्ल एकादशी के दिन सभी भक्तजन व्रत कर भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना और रात्रि जागरण कर रहे थे, तभी वहां एक शिकारी आया। वह भी वहां रुककर भगवान विष्णु की कथा तथा एकादशी का महात्म्य सुनने लगा। इस प्रकार उस शिकारी ने अपनी पूरी रात जागरण करते हुए व्यतीत की। अगले दिन वह घर गया और भोजन करके सो गया। कुछ दिनों बाद ही उनका निधन हो गया। शिकारी के पापों के कारण उसे नरक भोगना पड़ता, लेकिन उसने अनजाने में आमलकी एकादशी व्रत कथा सुनी थी और जागरण भी किया था, इसलिए उसने राजा विदूरथ के घर जन्म लिया और उसका नाम वसुरथ रखा गया।
एक दिन वसुरथ जंगल में भटक गया और एक पेड़ के नीचे सो गया। उस पर कुछ डाकुओं ने हमला कर दिया, लेकिन उनके अस्त्र-शस्त्र का राजा पर कोई असर नहीं हुआ। जब राजा की नींद खुली तो उन्होंने पाया कि कुछ लोग जमीन पर मृत पड़े हुए हैं। उन्हें देखकर राजा समझ गए कि वह उसे मारने आए थे। तभी आकाशवाणी हुई कि हे राजन भगवान विष्णु ने तेरी जान बचाई है। तुमने पिछले जन्म में आमलकी एकादशी की व्रत कथा सुना था और यह उसी का फल है। मान्यता है जो विष्णु भक्त आमलकी एकादशी की पूजा- व्रत करके कथा सुनते हैं,उनके सभी कष्ट भगवान विष्णु स्वयं हर लेते हैं।
DISCLAIMER:यह लेख धार्मिक मान्यताओं व धर्म शास्त्रों पर आधारित है। हम अंधविश्वास को बढ़ावा नहीं देते। पाठक धर्म से जुड़े किसी भी कार्य को करने से पहले अपने पुरोहित या आचार्य से अवश्य परामर्श ले लें। KhabarSting इसकी पुष्टि नहीं करता।