Apara Ekadashi: अपरा एकादशी पर करें ये उपाय, ग्रह बाधा दूर करने को करें ये सरल उपाय, पढ़ें कथा

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Apara Ekadashi: ज्येष्ठ कृष्ण एकादशी को अपरा अथवा अचला एकादशी भी कहते हैं। इस दिन भगवान त्रिविक्रम की पूजा करने का विधान शास्त्रों में बताया गया है। हिदुओं में मान्यता है कि इस व्रत को करने से ब्रह्महत्या, परनिन्दा व भूतयोनि जैसे निकृष्ट कर्मों से छुटकारा मिल जाता है और धन-धान्य की पूर्ति होती है व पुण्य फल की प्राप्ति होती है। इस दिन तुलसी, चंदन, कपूर, गंगाजल सहित भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए। कहीं-कहीं तो इस दिन बलराम और कृष्ण की पूजन करने का भी विधान बताया गया है।

करें ये उपाय
भारतीय ज्योतिष अनुसन्धान संस्थान लखनऊ के निदेशक आचार्य विनोद कुमार मिश्र बताते हैं कि ग्रहदोष और ग्रहबाधा जिनको भी लगी हो, वे अपने घर में 9 अंगुल चौड़ा और 9 अंगुल लम्बा कुमकुम का स्वास्तिक बना दें तो ग्रहबाधा की जो भी समस्याएँ हैं वो दूर हो जायेंगी।

एकादशी व्रत के दिन करें ये कार्य
एकादशी को दीपक जलाकर विष्णु सहस्त्र नाम का पाठ करें। अगर घर में झगडे होते हों, तो झगड़े शांत हों जायें ऐसा संकल्प करके विष्णु सहस्त्र नाम पढ़ें तो घर के झगड़े भी शांत हो सकते हैं।

एकादशी व्रत में बरतें ये सावधानी
एकादशी का व्रत पाप और रोगों को स्वाहा करता है लेकिन वृद्ध, बालक और बीमार व्यक्ति एकादशी न रख सके तभी भी उनको चावल का तो त्याग करना चाहिए।

जानें क्या है एकादशी व्रत के लाभ
एकादशी व्रत के पुण्य के समान और कोई पुण्य नहीं है।
जो पुण्य सूर्यग्रहण में दान करने से प्राप्त होता है, उससे कई गुना अधिक पुण्य एकादशी के व्रत से होता है।
जो पुण्य गौ-दान, स्वर्ण-दान, अश्वमेघ यज्ञ से होता है, उससे अधिक पुण्य एकादशी के व्रत से प्राप्त होता है।
एकादशी करने वालों के पितर नीच योनि से मुक्त होते हैं और अपने परिवार वालों को प्रसन्नता प्रदान करते हैं। इसलिए यह व्रत करने वालों के घर में सुख-शांति बनी रहती है।
इस व्रत को करने से धन-धान्य, पुत्रादि की वृद्धि होती है।
इस व्रत को करने वालों की कीर्ति बढ़ती है, श्रद्धा-भक्ति बढ़ती है, जिससे जीवन रसमय बनता है।

प्रचलित कथा
आचार्य सुशील कृष्ण शास्त्री बताते हैं कि प्राचीन काल में महीध्वज नाम का एक धर्मात्मा राजा था। उसका छोटा भाई वज्रध्वज बहुत ही क्रूर, अधर्मी व अन्यायी था व महीध्वज से जलता था। एक दिन वज्रध्वज ने अपने भाई महीध्वज की रात में हत्या कर उसके शव को जंगल में एक पीपल के पेड़ के नीचे गाड़ दिया। इस अकाल मृत्यु के कारण महीध्वज इसी पीपल के पेड़ पर प्रेत आत्मा बनकर रहने लगा और उत्पात मचाने लगा। एक दिन धौम्य नाम के ऋषि पीपल के पेड़ के पास से गुजरे तो प्रेत को देखकर अपने तपोबल से उसके जीवन के बारे में जान लिया। इसके बाद प्रेत को पेड़ से नीचे उतार कर उसे परलोक विद्या का उपदेश दिया। इसी के साथ दयालु ऋषि ने राजा को प्रेत योनि से मुक्ति दिलाने के लिए खुद ही अपरा एकादशी का व्रत रखा और इस व्रत का पुण्य प्रेत को अर्पित कर दिया, जिससे महीध्वज राजा को प्रेत योनि से मुक्ति मिल गई। इसके बाद राजा ने ऋषि को धन्यवाद दिया और फिर दिव्य देह धारण कर पुष्पक विमान से स्वर्ग को चला गया।

DISCLAIMER:यह लेख धार्मिक मान्यताओं व धर्म शास्त्रों पर आधारित है। हम अंधविश्वास को बढ़ावा नहीं देते। पाठक धर्म से जुड़े किसी भी कार्य को करने से पहले अपने पुरोहित या आचार्य से अवश्य परामर्श ले लें। KhabarSting इसकी पुष्टि नहीं करता।)