Chhath Puja 2023: इस बार 17 नवम्बर से होगी छठ उत्सव की शुरुआत, देखें सूर्य भगवान को अर्घ्य देने का समय, जानें क्यो मनाते हैं छठ पर्व
Chhath Puja 2023: पूर्वांचल (बिहार) का सबसे लोकप्रिय पर्व छठ 28 अक्टूबर को नहाय-खाय के साथ शुरू होने जा रहा है। चार दिनों तक चलने वाले इस पर्व की रौनक दीवाली के बाद पूर्वांचल के घरों में दिखाई देने लगी है। कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि पर नहाय-खाय के साथ छठ महापर्व का शुभारम्भ होगा। कानपुर के राम चंद्र तिवारी ने बताया कि, छठ में 36 घंटे का निर्जला व्रत रखा जाता है। इस व्रत को न केवल माताएं बल्कि पिता भी अपनी संतान की दीर्घायु के लिए रखते हैं। छठ पर्व के दूसरे दिन खरना, तीसरे दिन अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा और चौथे दिन उगते सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत का पारण किया जाएगा। इस व्रत में नहर या किसी पवित्र नदी के किनारे पूजा करने का विधान है। व्रती भगवान सूर्य और छठी मैया की पूजा करती हैं।
नहाये खाये से शुरू होगा महापर्व
आरोग्य के देवता सूर्य की पूजा का प्रसिद्ध पर्व सूर्य षष्ठी इस बार 17 नवम्बर नहाये खाये से शुरू होगा। चार दिनों तक चलने वाला यह कठिन व्रत 20 नवम्बर को प्रातः सूर्य देव को अर्घ्य देकर पूर्ण किया जायेगा। इस बार 17 नवम्बर को नहाय खाय, 18 नवम्बर को खरना, 19 नवम्बर को डूबते सूर्य को अर्घ्य और 20 नवम्बर को उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा. इस बार 19 नवम्बर को सूर्यास्त का समय शाम 5 बजकर 34 मिनट है तो वहीं 20 नवम्बर दिन सोमवार को सूर्योदय का समय सुबह 6 बजकर 31 मिनट है.
इसलिए मनाया जाता है छठ पर्व
आचार्य सुशील कृ्ष्ण शास्त्री बताते हैं कि ज्योतिषीय गणना के अनुसार चंद्र और पृथ्वी के भ्रमण तलों की सम रेखा के दोनों छोरों पर से होती हुई सूर्य की किरणें विशेष प्रभाव धारण करके अमावस्या के छठे दिन पृथ्वी पर आती हैं। इसीलिए छठ को सूर्य की बहन कहा गया है। शास्त्रों में इन्हें सृष्टि के मूल प्रवृत्ति के छठे अंश से उत्पन्न होने का वर्णन है। छठ को उषा देवी की संज्ञा प्राप्त है। इनकी ही कृपा से श्री कृष्ण जी के पुत्र साम्ब कुष्ठ रोग से मुक्त हुये थे। ऋग्वेद में भी सूर्य पूजा का विशेष महत्व बताया गया है।
इस बार प्रकृति, जल, वायु और सूर्य के पूजन का यह पर्व इन तारीखों में मनाया जाएगा
17 नवम्बर, दिन शुक्रवार (कार्तिक शुक्ल चतुर्थी) को नहाये खाये।
18 नवम्बर, दिन शनिवार ( पंचमी) खरना (दिनभर निर्जला व्रत रहकर रात में मीठा भोजन किया जाएगा)
19 नवम्बर, रविवार (षष्ठी) सायंकालीन अर्घ्य।
20 नवम्बर सोमवार (सप्तमी) सूर्योदय कालीन अर्घ्य।
ऐसे रखते हैं छठ का व्रत
पहले दिन व्रती मात्र एक बार लौकी और चावल का भोजन करते हैं।
व्रत की प्रक्रिया के दौरान व्रती को भूमि पर ही सोना होता है।
खरना को पूरे दिन व्रत रहने के बाद रात्रि को चन्द्रमा के दर्शन करने के बाद मात्र रसियाव (गुड़-चावल की खीर) खाकर रहते हैं।
तीसरे दिन प्रातः से लेकर पूरी रात बिना अन्न जल के रहते है, जिसका पारण चौथे दिन होता है। अर्थात 36 घंटे तक बिना पानी व बिना कुछ खाए व्रत रखा जाता है।
इस पर्व में सूर्य भगवान व छठी मइया को देशी घी में घर का बना ठेकुआ और कसार के साथ विभिन्न प्रकार के फल व साग-सब्जी चढ़ाई जाती है।

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