Halshashthi Vrat-2024: जानें कब है हलषष्ठी का व्रत? पढ़ें ये प्रचलित कथा, जानें पूजा विधि
Halshashthi Vrat-2024: इस बार हलषष्ठी व्रत 25 अगस्त दिन रविवार को पड़ रहा है. व्रत की तारीख को लेकर इस बार काफी लोग कन्फ्यूज हैं लेकिन ज्योतिषाचार्य पंडित रवि शुक्ला शास्त्री बताते हैं कि इस व्रत को करने के लिए किसी पंचांग में 24 अगस्त बताया गया है तो किसी पंचांग में 25 अगस्त. अलग-अलग पंचांग में अलग-अलग मत होते हैं.
वह कहते हैं कि “वैसे शास्त्र संवत देखें तो 24 तारीख को दोपहर में 12 बजकर 10 मिनट से हरछठ प्रारंभ हो रही है. इस दिन सूर्योदय के समय पंचमी भी प्रारंभ हो रही है. शास्त्रों में उल्लेख है कि मध्य काल हो, उदया तिथि हो, तो वो दिन मान्य होता है. लेकिन 24 तारीख को न मध्यकाल फंस रहा है और न ही उदया तिथि फंस रही है. 25 तारीख को सुबह 4 बजे से लेकर 8 बजे तक मध्यकाल मिल रहा है और 25 तारीख को हलषष्ठी की तिथि मिल रही है. सूर्योदय के समय हरछठ है. इसलिए शास्त्र संवत 25 अगस्त को हरछठ मनाया जाएगा.”
जानें क्यों मनाई जाती है हलषष्ठी
भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठी को यह व्रत भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई श्री बलरामजी के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। इसी दिन श्री बलरामजी का जन्म हुआ था. इस दिन को हरछठ, ललही छठ भी कहा जाता है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई श्री बलरामजी का इस दिन जन्म हुआ था। इसीलिये इस दिन उनका जन्मोत्सव मनाया जाता है। हल बलरामजी का प्रिय शस्त्र है, इसीलिये उन्हे हलधर और उनकी जयंती के पर्व को ‘हल षष्ठी’ (Halshashthi) कहा जाता हैं। बता दें कि अपनी संतान की उम्र लम्बी होने के लिए ये व्रत माताएं रखती हैं. ये व्रत खासकर बेटों के लिए किया जाता है. हालांकि कई माताएं अपनी बेटियों के लिए भी इस व्रत को करती हैं.
इस तरह करें पूजा
आचार्य बताते हैं कि हरछठ वाले दिन सुबह स्नानादि से निवृत्त होकर साफ-सुथरे वस्त्र धारण करें। फिर पूजा के लिये गोबर लेकर आयें और उससे जमीन लीप कर एक तालाब की आकृति बनायें। तत्पश्चात झरबेरी, अमलतास और पलाश की एक-एक ड़ाली को बाँधकर एक हरछठ बनायें। फिर उस हरछठ को इस तालाब में झरबेरी, ताश (अमलतास ) तथा पलाश की एक-एक शाखा बांधकर बनाई गई ‘हरछठ’ को तालाब में गाड़ दें। इसके बाद इनका पूजन करें। इसकी पूजा में सात अनाज चढ़ाने की परम्परा हैं। सात अनाज में गेहूं, जौ, चना, मूंग, मक्का धान और अरहर लें। इन सात अनाजों को चढ़ाने के पश्चात हरी कजरियां, धूल, होली दहन की राख, होली की आग पर भुने होरहा (भुने हुए बूटे) और जौ की बालें अर्पित करें. तालाब में गाड़ी गई हरछठ के पास आभूषण और हल्दी का रंगा हुआ कपड़ा रखें. इसके बादभैंस के दूध से बने मक्खन से हवन करें। ध्यान रहे इस दिन गाय के दूध से बनी कोई चीज काम न लें। हवन के बाद हल छठ की कथा कहें या सुनें।
हल षष्ठी की प्रचलित कथा
आचार्य सुशील कृष्ण शास्त्री बताते हैं कि, हल षष्ठी को लेकर एक कथा प्रचलित है। ऐसी मान्यता है कि प्राचीन काल में एक ग्वालिन थी। वह गर्भवती थी और उसका प्रसवकाल निकट आ रहा था। एक ओर जहां वह प्रसव पीड़ा की वजह से परेशान थी तो दूसरी ओर उसका मन दूध-दही बेचने को कर रहा था। उसके मन में विचार आया कि यदि प्रसव हो गया तो गौ-रस यूं ही पड़ा रह जाएगा और खराब हो जाएगा। इस पर उसने दूध-दही के घड़े सिर पर रखकर उसे बेचने के लिए निकल पड़ी, लेकिन कुछ ही दूर पहुंचने पर उसे असहनीय प्रसव पीड़ा होने लगी। इस पर वह एक झरबेरी की आड़ में चली गई और एक बच्चे को जन्म दे दिया। इसके बाद वह बच्चे को वहीं छोड़कर पास के गांवों में दूध-दही बेचने चली गई।
संयोग से उस दिन हल षष्ठी थी। गाय-भैंस के मिले हुए दूध को केवल भैंस का दूध बताकर उसने सीधे-सादे गांव वालों को बेच दिया। उधर एक किसान खेत में हल जोत रहा था और पास ही ग्वालिन का बच्चा झरबेरी के नीचे लेटा हुआ था। अचानक किसान के बैल भड़क गए और हल का फल उछल कर बच्चे के शरीर में घुस गया, जिससे बच्चे की मौके पर ही मौत हो गई। इस घटना से किसान बहुत दुखी हुआ। फिर भी उसने हिम्मत और धैर्य से काम लिया। उसने झरबेरी के कांटों से ही बच्चे के चीरे हुए पेट में टांके लगाए और फिर उसे वहीं छोड़कर चला गया।
कुछ देर बाद ग्वालिन दूध बेचकर वहां पहुंची तो जैसे ही उसने अपने बच्चे की दशा देखी वह रोने लगी और बहुत दुखी हुई। इसी के साथ वह यह भी समझ गई कि उसके गलत कार्यों का वजह से ही उसके बच्चे का ये हाल हुआ है। वह मन ही मन अपने किए कर्मों को कोस रही थी। कह रही थी कि भैंस के दूध को गाय का दूध बताकर महिलाओं को बेच दिया और उनका धर्म भ्रष्ट कर दिया। अब मुझे प्रायश्चित करना होगा। इसके तुरंत बाद ही उसी गांव में पहुंच गई जहां उसने भैंस का दूध बेचा था। वह घूम-घूम कर अपने किए गलत कार्य को लोगों को बताने लगी। इस पर व्रती महिलाओं ने उसे माफ कर दिया। कई महिलाओं ने उसे आशीर्वाद भी दिया। इसके बाद रोते-रोते जब वह झरबेरी के पेड़ के पास पहुंची तो उसका बेटा जीवित अवस्था में लेटा हुआ मिला। इसके बाद से उसने कभी भी झूठ न बोलने का निश्चय किया।
DISCLAIMER:यह लेख धार्मिक मान्यताओं व धर्म शास्त्रों पर आधारित है। हम अंधविश्वास को बढ़ावा नहीं देते। पाठक धर्म से जुड़े किसी भी कार्य को करने से पहले अपने पुरोहित या आचार्य से अवश्य परामर्श ले लें। KhabarSting इसकी पुष्टि नहीं करता।)