Jaya Ekadashi Vrat: श्रीहरि विष्णु की कृपा पाने के लिए जया एकादशी के दिन करें ये उपाय, पढें कथा
Jaya Ekadashi Vrat and Upay: माघ शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को जया एकादशी के रूप में मनाया जाता है. अधिकांश हिंदू महिलाएं व युवतियां इस दिन व्रत रखती हैं. आचार्य सुशील कृष्ण शास्त्री ने बताया कि, सभी एकादशियों में जया एकादशी बहुत ही पुण्यदायी मानी जाती है। मान्यता है कि, इस व्रत को करने से व्यक्ति भूत, प्रेत, पिशाच की योनि से मुक्त हो जाता है. ब्रह्म हत्या जैसे महापाप से मुक्ति के लिए भी इस व्रत को करने की बात कही जाती है. माना जाता है कि इस व्रत को करने वाले पर भगवान विष्णु की कृपा बनी रहती है.
जया एकादशी के दिन करें ये उपाय
जया एकादशी के दिन श्रीहरि विष्णु के साथ मां लक्ष्मी की भी पूजा करने से घर में सुख-समृद्धि बढ़ती है. मान्यता है कि ऐसा करने से जीवन में तरक्की आती है।
जया एकादशी व्रत वाले दिन सुबह स्नान के बाद घी का दीपक जलाएं और भगवान विष्णु का आह्वान करें। मान्यता है कि, इससे भगवान विष्णु शीघ्र प्रसन्न होते हैं और घर में कभी धन-धान्य की कमी नहीं रहती.
इस दिन जगत के पालनहार श्रीहरि विष्णु को प्रसन्न करने के लिए उन्हें पीले वस्त्र, पीले फूल, पीले रंग की पुष्प माला, मिठाई, फल आदि अर्पित करें। फिर बाद गाय को चारा खिलाएं और जरूरतमंद को कुछ दान करें।
मान्यता है कि पीपल में भगवान विष्णु का वास होता है, इसलिए इस दिन पीपल के वृक्ष की पूजा जरूर करने का विधान भी शास्त्रों में बताया गया है. जया एकादशी के दिन किसी मंदिर में स्थित पीपल के वृक्ष को जल चढ़ाएं और उसके समीप देसी घी का दीपक जलाएं।
एक बात का खास ध्यान रखें कि एकादशी के दिन तामसिक भोजन नहीं करना चाहिए। अगर आपने व्रत नहीं रखा है तो भी इस दिन चावल नहीं खाना चाहिए.
जया एकादशी व्रत कथा
पौराणिक मान्यता के अनुसार एक बार धर्मराज युधिष्ठिर, भगवान श्रीकृष्ण से पूछते हैं कि माघ मास की एकादशी का क्या महात्म्य है, तो भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि इसका नाम जया एकादशी है। इस एकादशी पर व्रत करने से मनुष्य को भूत-पिशाच की योनि का भय नहीं रह जाता है। इसी विषय में कथा सुनाते हुए भगवान कृष्ण कहते हैं कि एक बार नंदन वन में उत्सव चल रहा था। इस उत्सव में सभी देवतागण, सिद्ध संत और दिव्य पुरुष उपस्थित थे। इस उत्सव कार्यक्रम में गंधर्व गायन कर रहे थे एवं गंधर्व कन्याएं नृत्य कर रही थीं। उसी समय नृत्यांगना पुष्पवती सभा में गायन कर रहे माल्यवान नाम के गंधर्व पर मोहित हो गयी। अपने प्रबल आकर्षण के कारण वह सभा की मर्यादा को भूल गई और इस प्रकार नृत्य करने लगी कि माल्यवान उसकी ओर आकर्षित हो जाए। माल्यवान भी उसकी ओर आकर्षित हुए बिना न रह सका, परिणाम वश वह अपनी सुध-बुध खो बैठा और सुरताल भूल गया, जिसके कारण वह गायन की मर्यादा से भटक गया। इन दोनों की इस अपकर्म से देवराज इन्द्र को क्रोध आ गया। उन्होंने दोनों को श्राप दिया कि वे स्वर्ग से वंचित हो जाएं और पृथ्वी पर अति नीच पिशाच योनि को प्राप्त हो। श्राप के प्रभाव से दोनों पिशाच बन गए और हिमालय पर्वत पर एक वृक्ष पर अत्यंत कष्ट भोगते हुए रहने लगे। एक दिन दोनों अत्यंत दु:खी थे, जिस के चलते उन्होंने सिर्फ फलाहार किया और उसी रात्रि ठंड के कारण उन दोनों की मृत्यु हो गई। संयोग से उस दिन माघ शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि थी। इस प्रकार से अनजाने में जया एकादशी का व्रत हो जाने के कारण दोनों को पिशाच योनि से मुक्ति प्राप्त हो गई, जिसके बाद वे पहले से भी अधिक सौंदर्यवान हुए और पुन: स्वर्ग लोक में स्थान प्राप्त हुआ। देवराज इंद्र दोनों को देखकर आश्चर्यचकित हो गए तब उन्होंने पूछा कि वे श्राप मुक्ति कैसे हुए। जिस पर गंधर्व ने बताया कि यह भगवान विष्णु की जया एकादशी का प्रभाव है।
DISCLAIMER:यह लेख धार्मिक मान्यताओं व धर्म शास्त्रों पर आधारित है। हम अंधविश्वास को बढ़ावा नहीं देते। पाठक धर्म से जुड़े किसी भी कार्य को करने से पहले अपने पुरोहित या आचार्य से अवश्य परामर्श ले लें। KhabarSting इसकी पुष्टि नहीं करता।)