कवि सम्मेलन: यूक्रेन के युद्ध से लेकर अमेरिका-पाकिस्तान पर कवियों ने छोड़े तीखे बाण, …होंठ गाते रहे दर्द की दास्तां

March 12, 2022 by No Comments

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कानपुर। उत्तर प्रदेश कानपुर के जाने-माने कवि व वरिष्ठ पत्रकार प्रमोद तिवारी की पुण्य स्मृति के अवसर पर अखिल भारतीय कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। कानपुर के खलासी लाइन स्थित हरिहरनाथ शास्त्री स्मारक भवन में देर रात कवि सम्मेलन का आयोजन हुआ। लोक सेवा मंडल द्वारा आयोजित कार्यक्रम में उत्तर प्रदेश के जाने-माने कवियों ने हिस्सा लेकर प्रमोद जी को श्रद्धांजलि अर्पित की। इस मौके पर किसी ने श्रंगार तो किसी ने यूक्रेन में जारी युद्ध पर कविता प्रस्तुत कर खूब तालियां बटोरी।

विनीत चौहान

यूक्रेन में रूस द्वारा किए गए आक्रमण पर चिंता और दुख जाहिर करते हुए कवि विनीत चौहान ने कहा-

रण के निर्णय कभी नहीं, मानव के हित में होते
विस्तारवाद मन में हो तो, फिर भाग्य मनुज के रोते।
न्याय और अन्याय कभी, जब एक तुला पर तुलते
पीड़ा और घुटन मिलकर, जब आंसू भीतर घुलते।
तो समझो उस महामृत्यु को, तांडवरत होना है
और समूची दुनिया को ही, महसमर ढोना है।

तो वहीं लखनऊ के कवि धीरज मिश्र ने विकास के नाम पर काटे जा रहे पेड़-पौधों पर दुख व्यक्त करते हुए कहा-
शस्त्र हम उठा नही सके ,
हे विराट वृक्ष दो क्षमा ,
हम तुम्हे बचा नही सके ।

कानपुर के कवि मुरली परिहार ने प्रेम रस के डूबी कविता कुछ यूं पढ़ी-
मैं समंदर रहा ,फिर भी प्यासा रहा ,
और पलकों पे मोती ,सजाता रहा ,
होंठ गाते रहे ,दर्द की दास्तां ,
आप सुनते रहे ,मै सुनाता रहा ।

जाने-माने कवि अंसार कम्बरी ने फागुन माह की विशेषता को अपनी कविता के माध्यम से कुछ यूं प्रस्तुत किया-
खिल उठी सरसों की कलियां ,
दिन सुहाने आ गए ,
आ गए फागुन की हर बाली में,
दाने आ गए ।
आ गया फागुन मेरे कमरे के रोशन दान में ,
चंद गौरैया के जोड़े ,घर बसाने आ गए ।

इसी तरह कवि धीरज शांडिल्य ने कविता पढ़ते हुए कहा-
हम आवारा पंछी नफ़रत क्या जानें,
हम दुनिया को प्यार सिखाने आये हैं।।

कवयित्री पूनम वर्मा

मथुरा की कवयित्री पूनम वर्मा ने कन्हा की बांसुरी पर प्रेममयी कविता पढ़कर खूब वाहवाही बटोरी।
किसी की याद की ख़ुशबू में भीगे केश लायी हूँ।
दिलों को जोड़ने वाले अमिट उपदेश लायी हूँ।
कभी कान्हा के होठों पर सजी रहती थी गोकुल में,
मै ब्रज की बांसुरी हूँ प्रेम का संदेश लायी हूँ।

कवि मुकेश ने नयी सदी लाने की बात कुछ यूं कही कि हाल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा-
नेकियों की कैद में
सारी बदी ले आऊंगा।
पनघटों की प्यास तक
गहरी नदी ले आउंगा।
ला सका ना यदि सुनहरा
दौर मैं इतिहास का।
तो तुम्हारे द्वार तक
एक नयी सदी ले आउंगा।

लखनऊ के कवि अमित अनपढ़ ने चुटकुले नूमा कविता पढ़कर, लोगों को ठहाके लगाने के लिए मजबूर कर दिया-
अमरीका संग पाक तुझको भी पीस देंगे ,
हम लोगों को ना और उकसाइए ,
पत्नी ये बोली तीन दिन से पड़ा है गेंहू,
हो सके तो उसे पिसवा के लाइए ।

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