कुशोत्पाटनी अमावस्या आज:  देखें पुरोहित क्यों उखाड़ते हैं आज के दिन जंगल से कुशा

November 27, 2021 by No Comments

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हिंदू धर्म ग्रंथों में भादों मास की कृष्ण पक्ष की अमावस्या को कुशोत्पाटनी अमावस्या कहा जाता है। पितृपक्ष से 15 दिन पहले पड़ने वाली इस अमावस्या का एक अलग ही महत्व बताया गया है। पितृ पक्ष तो पितरों के लिए तर्पण करने के लिए जाना जाता है, लेकिन यह अमावस्या तपर्ण के साथ ही पितरों का पूजन करने के लिए भी जानी जाती है। बता दें कि हिंदू धर्म में मृत्यु को प्राप्त कर चुके पूर्वजों की पूजा और उनको किसी नदी में जाकर जल अर्पित करने का विधान है। 

आचार्य सुशील कृष्ण शास्त्री बताते हैं कि यह दिन एक खास काम के लिए भी जाना जाता है। इस दिन पुरोहित नदी, घाटियों व जंगलों से कुशा नामक घास उखाड़ कर लाते हैं, ताकि पूरे साल कर्मकाण्ड आदि पूजा कराई जा सके। कुशा उखाड़ते वक्त “हूं फट्” मंत्र बोला जाता है। इस हरी कुशा को सुखाकर रख लिया जाता है, इसके बाद पूरे साल इसकी इस्तेमाल पूजा-पाठ में किया जाता है। बता दें कि मंगलवार को पड़ी अमावस्या को भौमावस्या भी कहते हैं। यह साल की आखरी भौमावस्या है। अब अगले साल ही भौमावस्या पड़ेगी। इस नजर से भी 7 सितम्बर को पड़ने वाली अमावस्या पूजा-पाठ व तर्पण के लिए खास बन गई है। मालूम हो कि इस बार 6 और 7 सितम्बर, दोनों दिन ही अमावस्या का योग बना है। 

देखिए किस कुशा से पितरों व देवों की होती है पूजा
शास्त्रों में दस प्रकार का कुश बताया गया है। इसमें जो मिल जाए वही श्रेष्ठ होता है। हालांकि जिस कुश का मूल सुतीक्ष्ण हो। अर्थात जिसमें सात पत्तियां हों, आगे का भाग कटा न हो, तथा हरा हो, वह कुश देवताओं के साथ ही पितरों की पूजा आदि कार्यों में भी उपयोग में लाई जा सकती है। 

इस तरह होती है कुशा की अंगुठी

जानिए पूजा में क्या काम होता है कुशा का
कुशा नामक घास से एक छल्ला बनाया जाता है, जिसे पूजा-पाठ के दौरान अंगूठी की तरह दाहिने हाथ की उंगली में पहना जाता है। इसके बाद हाथों की दोनो हथेलियों को जोड़कर (अंजलि) में जल भरकर पितरों को तर्पण किया जाता है। इसी तरह उंगली में इसे पहन कर देवताओं की पूजा भी की जाती है। ऐसा माना जाता है कि कुशा पहनने से पूजा करने वाला व्यक्ति पवित्र हो जाता है। अर्थात पूजा करने लायक हो जाता है। कुश की इस अंगुठी को आम बोलचाल की भाषा में पैंती भी कहा जाता है। 

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