Siddhidatri Mata Puja In Navratri: नवम माता सिद्धिदात्री को करें इस तरह से प्रसन्न, मिलेगा पूरे नवरात्र का फल, कन्याभोज के बाद करें ये “प्रार्थना”, देखें मंत्र और आरती
Siddhidatri Mata Puja In Navratri: शारदीय हो या चैत्र नवरात्र की नवमी अर्थात नवरात्र की पूर्णता के दिन माँ भगवती के नवें और सबसे शक्तिशाली स्वरूप सिद्धिदात्री की पूजा करने का विधान शास्त्रों व पुराणों में बताया गया है। मान्यता है की जो भक्त किसी वजह से नवरात्र के नौ दिन तक माता की पूजा नहीं कर पाते तो वह सिर्फ नवमी को ही माता के सभी रूपों की पूजा पूरे विधि-विधान से कर लें और कन्या भोज करा दें तो उनको पूरे नवरात्र का फल प्राप्त हो जाता है। भक्तों को ये याद रखना होगा कि इस दिन कन्या भोज अवश्य कराएं, तभी नवरात्र की पूजा पूर्ण मानी जाएगी, क्योंकि कन्या को मां शक्ति का साक्षात स्वरूप माना गया है।
जानें कैसा है माता का स्वरूप
शास्त्रों की मानें तो माँ के इस स्वरूप की पूजा संसारी लोगों के साथ ही देव, यक्ष, किन्नर, दानव, ऋषि, मुनि, साधक आदि सभी करते हैं। मान्यता है कि नवरात्र के सिर्फ नवें दिन भी यदि कोई भक्त एकाग्रता और निष्ठा से पूजा कर लेता है तो उसे सभी सिद्धियां प्राप्त हो जाती हैं और मां का भक्त हर तरह से सांसारिक संकटों से लड़ने के लिए मजबूत हो जाता है। माँ की कृपा प्राप्त करने वाले को सभी लौकिक तथा परालौकिक कामनाओं की पूर्ति हो जाती है। पुराणों की मानें तो माँ शक्ति के इसी रूप को जगत का संचालन करने वाला माना गया है।
पुष्प आसन पर बैठी हैं मां
आचार्य सुशील कृष्ण शास्त्री बताते हैं कि चतुर्भुज सिंह वाहिनी सिद्धिदात्री माता सिंह के साथ ही कमल पुष्प के आसन पर बैठती हैं। माँ की छवि की बात करें तो उनके दाहिनी ओर के निचले वाले हाथ में चक्र और ऊपर वाले दाहिने हाथ में गदा दिखाई देता है। बाईं ओर के नीचे वाले हाथ में शंख तथा ऊपर वाले हाथ में कमल पुष्प विद्यमान रहता है। मान्यता है कि अपने इस शक्ति विग्रह में माँ अपने भक्तों को ब्रह्मांड की सभी सिद्धियां प्रदान करती हैं। नवरात्र पूजन के अंतिम दिन अर्थात नवमी पर भक्त और योगी साधक माँ शक्ति के इसी रूप की शास्त्रीय विधि-विधान से पूजा करते हैं।
कन्याओं को उपहार में दें ये सामग्री
माता भगवती को प्रसन्न करने के लिए उनके साक्षात रूप कन्याओं का पूजन करने के बाद ही नवरात्र का समापन करना चाहिए। नवरात्र के दिनों में 9, 11, 21 कन्याओं का पूजन करके भोज कराने के मनवांछित फल की प्राप्ति होती है। वैसे तो नवरात्र की प्रथम तिथि से ही कन्याओं को भोजन कराने व दक्षिणा देने के बारे में शास्त्रों में बताया गया है, लेकिन अगर प्रथम दिन से नहीं कर सके तो मात्र अष्टमी व नवमी को भी कन्या भोज करा कर पूरे नवरात्र की फल प्राप्त कर सकते हैं। नवमी पर कन्याओं की ठीक उसी तरह पूजा करनी चाहिए, जैसे हम माता की पूजा करते हैं।
अवश्य लगाएं जयकारे
इसके बाद जो माता को भोग लगाया है, उसी तरह का भोजन कन्याओं को कराना चाहिए। इसके बाद कन्याओं को वस्त्र (लाल चुनरी), रूपये, भोज्य पदार्थ, खिलौने, पुस्तकें-किताबें आदि, जो भी आपके सामर्थ्य में हो, उपहार में देकर विदाई करनी चाहिए। ऐसी मान्यता है कि कन्याएं अगर खुशी-खुशी आपके घर पर भोजन ग्रहण करती हैं, तो मानो माता ने भी आपका भोग स्वीकार कर लिया। कन्याओं से आशीर्वाद लेते हुए कहें, “हे मां आपकी कृपा सदैव हमारे और हमारे परिवार के ऊपर बनी रहे। सभी स्वस्थ्य रहें, समाज, देश का कल्याण हो।” इसके बाद जयकारे जरूर लगाएं।
जरूरी है हवन
माँ शक्ति का यह स्वरूप सब प्रकार की सिद्धियां देने वाला है। इसीलिए माता के इस स्वरूप को सिद्धिदात्री कहा गया है। नवरात्र के नौवें दिन मां के सिद्धिदात्री रूप की पूजा-अर्चना की परम्परा सदियों से चली आ रही है। नवरात्र के समापन व नवमी पर हवन करने के बाद ही व्रत का पारण करना शास्त्रों में बताया गया है। कुछ लोग तो नवमी वाले दिन ही पारण कर लेते हैं तो कुछ दशमी को। इस सम्बंध में सबकी अपनी अलग-अलग राय है। माता को हलवा, पूड़ी, चना, खीर, पुवे आदि पसंद हैं, इसलिए नवमी पर माता को इन्ही सब का भोग लगाना चाहिये या जो भी परम्परागत आप भोग लगाते हो। अपने सामर्थ्य अनुसार माता को भोग लगाकर कन्या भोज कराएं।
मंत्र
सिद्धगन्धर्वयक्षादौर सुरैरमरै रवि
सेव्यमाना सदभूयात सिद्धिदा सिद्धिदायनी
आरती
जय सिद्धिदात्री मां तू सिद्धि की दाता।
तू भक्तों की रक्षक तू दासों की माता।।
तेरा नाम लेते ही मिलती है सिद्धि।
तेरे नाम से मन की होती है शुद्धि।।
कठिन काम सिद्ध करती हो तुम।
जब भी हाथ सेवक के सिर धरती हो तुम ।।
तेरी पूजा में तो ना कोई विधि है।
तू जगदंबे दाती तू सर्व सिद्धि है।।
रविवार को तेरा सुमिरन करे जो।
तेरी मुर्ति को मन में धरे जो।।
तू सब काज उसके करती है पूरे।
कभी काम उसके रहे ना अधूरे ।।
तुम्हारी दया और तुम्हारी यह माया।
रखे जिसके सिर पे मैया अपनी छाया।।
सर्व सिद्धि देती वह है भाग्यशाली।
जो है तेरे दर का ही अम्बे सवाली ।।
हिमाचल है पर्वत जहां वास तेरा।
महानंदा मंदिर में है वास तेरा।।
मुझे आसरा है तुम्हारा ही माता।
भक्ति है सवाली तू जिसकी दाता।।
DISCLAIMER:यह लेख धार्मिक मान्यताओं व धर्म शास्त्रों पर आधारित है। हम अंधविश्वास को बढ़ावा नहीं देते। किसी भी धार्मिक कार्य को करते वक्त मन को एकाग्र अवश्य रखें। पाठक धर्म से जुड़े किसी भी कार्य को करने से पहले अपने पुरोहित या आचार्य से अवश्य परामर्श ले लें। KhabarSting इसकी पुष्टि नहीं करता।)