Putrada Ekadashi: पुत्रदा एकादशी पर करें श्री सुदर्शन अष्टकम का पाठ…दूर होगी नकारात्मक शक्ति; मिटेगी हर बाधा
Putrada Ekadashi: श्रावण (सावन) शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन पुत्रदा एकादशी मनाते हैं. मान्यता है कि सावन के इस पवित्र महीने में पड़ने वाली पुत्रदा एकादशी का सब एकादशियों में अधिक महत्व है. इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से जीवन में शुभ फल की प्राप्ति होती है।
इस दिन व्रत रखना भी अच्छा माना गया है. मान्यता है कि इस दिन व्रत-पूजा करने से जीवन में सुख-समृद्धि का वास होता है। पुत्रदा एकादशी का दिन भगवान विष्णु को समर्पित माना जाता है। भगवान विष्णु की पूजा करने से जीवन की समस्याएं दूर हो जाती हैं और जातक को सुख-समृद्धि प्राप्त होगी।
शास्त्रों के मुताबिक गुरुवार के दिन भगवान विष्णु को समर्पित वैदिक मंत्रों का जाप करने से विशेष भक्ति फल की प्राप्ति होती है। उनमें से एक है श्री सुदर्शन अष्टकम स्तोत्र, जिसके नियमित पाठ से जीवन में आने वाली सभी प्रकार की बाधाएं दूर हो जाती हैं और नकारात्मक शक्तियां भी खत्म होती हैं, तो वहीं पुत्रदा एकादशी पर भी इसका पाठ करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है.
श्री सुदर्शन अष्टकम स्तोत्र
प्रतिभटश्रेणि भीषण वरगुणस्तोम भूषण
जनिभयस्थान तारण जगदवस्थान कारण ।
निखिलदुष्कर्म कर्शन निगमसद्धर्म दर्शन
जय जय श्री सुदर्शन जय जय श्री सुदर्शन ।।
शुभजगद्रूप मण्डन सुरगणत्रास खन्डन
शतमखब्रह्म वन्दित शतपथब्रह्म नन्दित ।
प्रथितविद्वत् सपक्षित भजदहिर्बुध्न्य लक्षित
जय जय श्री सुदर्शन जय जय श्री सुदर्शन ।।
स्फुटतटिज्जाल पिञ्जर पृथुतरज्वाल पञ्जर
परिगत प्रत्नविग्रह पतुतरप्रज्ञ दुर्ग्रह ।
प्रहरण ग्राम मण्डित परिजन त्राण पण्डित
जय जय श्री सुदर्शन जय जय श्री सुदर्शन ।।
निजपदप्रीत सद्गण निरुपधिस्फीत षड्गुण
निगम निर्व्यूढ वैभव निजपर व्यूह वैभव ।
हरि हय द्वेषि दारण हर पुर प्लोष कारण
जय जय श्री सुदर्शन जय जय श्री सुदर्शन ।।
दनुज विस्तार कर्तन जनि तमिस्रा विकर्तन
दनुजविद्या निकर्तन भजदविद्या निवर्तन ।
अमर दृष्ट स्व विक्रम समर जुष्ट भ्रमिक्रम
जय जय श्री सुदर्शन जय जय श्री सुदर्शन ।।
प्रथिमुखालीढ बन्धुर पृथुमहाहेति दन्तुर
विकटमाय बहिष्कृत विविधमाला परिष्कृत ।
स्थिरमहायन्त्र तन्त्रित दृढ दया तन्त्र यन्त्रित
जय जय श्री सुदर्शन जय जय श्री सुदर्शन ।।
महित सम्पत् सदक्षर विहितसम्पत् षडक्षर
षडरचक्र प्रतिष्ठित सकल तत्त्व प्रतिष्ठित ।
विविध सङ्कल्प कल्पक विबुधसङ्कल्प कल्पक
जय जय श्री सुदर्शन जय जय श्री सुदर्शन ।।
भुवन नेत्र त्रयीमय सवन तेजस्त्रयीमय
निरवधि स्वादु चिन्मय निखिल शक्ते जगन्मय ।
अमित विश्वक्रियामय शमित विश्वग्भयामय
जय जय श्री सुदर्शन जय जय श्री सुदर्शन ।।
फलश्रुति
द्विचतुष्कमिदं प्रभूतसारं पठतां वेङ्कटनायक प्रणीतम् ।
विषमेऽपि मनोरथः प्रधावन् न विहन्येत रथाङ्ग धुर्य गुप्तः ।।
DISCLAIMER:यह लेख धार्मिक मान्यताओं व धर्म शास्त्रों पर आधारित है। हम अंधविश्वास को बढ़ावा नहीं देते। पाठक धर्म से जुड़े किसी भी कार्य को करने से पहले अपने पुरोहित या आचार्य से अवश्य परामर्श ले लें। KhabarSting इसकी पुष्टि नहीं करता।)