होली का गुलेरियों से देखें क्या है कनेक्शन, जानें वैदिक काल में क्या नाम था होली का, क्यों कहते हैं इस त्योहार को मन्वादितिथि, जानें होली के दिन किन देवताओं की पूजा करना रहता है श्रेष्ठकर, देखें पूजन सामग्री, पूजा विधि

March 17, 2022 by No Comments

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होली विशेष। होलिका दहन 17 मार्च 2022, दिन गुरुवार की रात 01 बजे के बाद और सूर्योदय से पहले होगा। इसके बाद सूर्योदय के साथ ही होली के रंगों का त्योहार शुरू हो जाएगा। लोग एक-दूसरे को अबीर-गुलाल लगाकर होली की शुभकामनाएं देंगे, लेकिन होली खेलने से पहले उन देवताओं की पूजा कर लें, जिससे आपका पूरा साल श्रेष्ठ बन जाए। इसी के साथ होली क्यों मनाते हैं और क्या है गुलेरियां, इसकी भी जानकारी कर लें। ताकि होली क्या है और क्यों मनाई जाती है, इसकी भी जानकारी आप सभी को हो सके।

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होली के त्योहार को वैदिक काल में नवान्नेष्टि यज्ञ कहा जाता था। यह त्योहार नई फसल के आने का सूचक है। इस दिन खेत के अधपके व अधकच्चे अन्न को यज्ञ में हवन करके प्रसाद लेने का भी विधान है। इसी अन्न को होला कहते हैं। इसी वजह से होली का नाम होलिकोत्सव पड़ा।

क्यों मनाई जाती है होली
होली क्यों मनाई जाती है, इसके सम्बंध में कई मान्यताएं प्रचलित हैं। कुछ लोग इस पर्व को अग्निदेव का पूजन मात्र मानते हैं। कुछ लोगों का कहना है कि इसे नवसंवत्सर की शुरूआत माना जाता है और बसंत ऋतु आगमन के उपलक्ष्य में किया गया महयज्ञ है, जिसमें कई अन्नों का हवन किया जाता है। इसी दिन मनु का जन्म हुआ था, इसलिए इसे मन्वादितिथि भी कहते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस पर्व का सम्बंध कामदहन से है। जब शंकर जी ने अपनी क्रोध की अग्नि से कामदेव को भस्म कर दिया था, तभी से इस त्योहार का प्रचलन हुआ। हालांकि प्रमुख तौर पर इस त्योहार को प्रहलाद से सम्बंधित माना जाता है। भक्त प्रहलाद की स्मृति और असुरों के नष्ट होने की खुशी में इस त्योहार को मनाते हैं। ऐसी मान्यता है कि मंत्रोच्चारण से पापी आत्माओं और राक्षसों का नाश होता है। इसलिए होलिका दहन के समय ऊंचे स्वर में मंत्रोच्चारण किया जाता है। इस तरह से कह सकते हैं कि होली प्रमुख रूप से आनन्द, उल्लास, सद्मिलन, मित्रता तथा एकता का पर्व है। इस दिन द्वेष भाव त्य़ागकर सबसे प्रेम से मिलना चाहिए।

जानें क्या है होलाष्टक की परम्परा
फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से पूर्णिमा के बीच आठ दिन तक होलाष्टक मनाया जाता है। भारत के कई प्रदेशों में होलाष्टक के शुरू होने पर एक पेड़ की शाखा काटकर उसमें रंग बिरंगे कपड़ों के टुकड़े बांधकर जमीन में गाड़ दिया जाता है। इसे भक्त प्रहलाद का प्रतीक माना जाता है। होलिका वाले दिन इसी के चारो ओर घूम कर लोग गाते व नाचते हैं। इस दिन आम्रमंजरी के साथ चंदन मिलाकर खाने का बड़ा महत्व है।

क्या होते हैं बल्ले
गोबर के पतले-पतले डिजाइन दार उपले, जो कि छोटे-छोटे होते हैं, उनको बल्ले व गुलेरियां कहते हैं। इनको बनाते समय बीच में छेद कर दिया जाता है और सूख जाने पर इन्हें रस्सियों में पिरोकर मालाएं बनाई जाती हैं। परम्परा के अनुसार होलिका दहन के दो-तीन दिन पहले ही जहां पर लकड़ियों के ढेर की मदद से प्रतीक स्वरूप होलिका का निर्माण किया जाता है, वहां पर इन गुलेरियों की मालाओं को रख दिया जाता है, लेकिन अब इन गुलेरियों की माला की परम्परा खत्म होती सी दिखाई दे रही है। शहरों में तो लोगों ने इसे अपने घरों में भी बनाना बंद कर दिया है। ये गुलेरियां अब बाजार में बिकने लगी हैं। तो वहीं अगर इन गुलेरियों को होलिका में डालना होता है तो लोग उसी दिन डालते हैं, जिस दिन होलिका जलती है।

ये हैं लोक मान्यताएं
लोक मान्यता के अनुसार नवविवाहिता महिलाओं को शादी के बाद पड़ने वाली पहली होली ससुराल में जलती हुई नहीं देखनी चाहिए।

इन देवताओं की करें पूजा
होली के दिन स्नान करने के बाद सुबह हनुमान जी, भैरोजी की पूजा प्रमुख रूप से करनी चाहिए। इन पर जल, रोली, मौली, चावल, फूल, प्रसाद, गुलाल, नारियल, चंदन आदि चढ़ाएं। घी के दीपक से आरती करें और फिर दण्डवत प्रणाम करें। फिर सभी को रोली लगाकर तिलक करें। इसके बाद जिन देवताओं को आप मानते हों, उनकी पूजा करें। फिर थोड़े से तेल को सब बच्चों के हाथ में लगाकर किसी चौराहे पर भैरोजी के नाम पर ईंट पर चढ़ा दें।

पलाश के फूलों से पहले खेली जाती थी होली
आचार्य विनोद कुमार मिश्र बताते हैं कि प्राचीन समय में लोग पलाश के फूलों से बने रंग अथवा अबीर-गुलाल,कुम-कुम-हल्दी से होली खेलते थे। किन्तु वर्त्तमान समय में रासायनिक तत्त्वों से बने रंगोंका उपयोग किया जाता है। ये रंग त्वचा पे चकत्तों के रूप में जम जाते हैं। अतः ऐसे रंगों से बचना चाहिये। यदि किसी ने आप पर ऐसा रंग लगा दिया हो तो तुरन्त ही बेसन, आटा, दूध, हल्दी व तेल के मिश्रण से बना उबटन रंगे हुए अंगों पर लगाकर रंग को धो डालना चाहिये। यदि उबटन करने से पूर्व उस स्थान को नींबू से रगड़कर साफ कर लिया जाए तो रंग छूटने में और अधिक सुगमता आ जाती है। बता दें कि होली मात्र लकड़ी के ढ़ेर जलाने का त्योहार नहीं है। यह तो चित्त की दुर्बलताओं को दूर करने का, मन की मलिन वासनाओं को जलाने का पवित्र दिन है। अपने दुर्गुणों, व्यसनों व बुराईयों को जलाने का पर्व है होली अच्छाईयाँ ग्रहण करने का पर्व है होली समाज में स्नेह का संदेश फैलाने का पर्व है होली।

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