Sheetala Ashtami: इस तरह करें माता शीतला की पूजा दूर होगी घर की नकारात्मक शक्ति… पढ़ें दो कथा और मंत्र
Sheetala Ashtami: चैत्र मास की कृष्ण पक्ष की सप्तमी और अष्टमी तिथि दोनों ही दिन देवी शीतला की पूजा करने का विधान शास्त्रों में बताया गया है. कई लोग सप्तमी तिथि को तो तमाम लोग अष्टमी को माता शीतला की पूजा करते हैं। इसे बासोड़ा भी कहा जाता है. कुछ लोग होली के बाद के सोमवार को ठंडा वार मानकर माता की पूजा करते हैं। इस दिन शीतला देवी की उपासना अनेक संक्रामक रोगों से मुक्ति प्रदान करती है। माता पार्वती प्रकृति हैं और यह पर्व भी पर्यावरण और सेहत की सुरक्षा के भाव से जुड़ा हुआ है। इस पर्व पर जगत जननी माँ पार्वती का ही स्वरूप शीतला माता का व्रत एवं पूजन किया जाता है। प्रकृति के अनुसार शरीर निरोगी हो, इसलिए भी शीतला अष्टमी का व्रत करने का विधान शास्त्रों में दिया गया है. लोकभाषा में इस त्योहार को बासोड़ा भी कहा जाता है। इस दिन बासी खानी यानी एक दिन पहले का बना खाना खाने का विधान है.
जानें क्या है शीतला देवी की पूजा का महत्व
आचार्य सुशील कृष्ण शास्त्री बताते हैं कि माता शीतला स्वच्छता सेहत और सुख-समृद्धि की अधिष्ठात्री देवी हैं। मान्यता है कि नेत्र रोग, ज्वर, चेचक, कुष्ठ रोग, फोड़े-फुंसियां तथा अन्य चर्म रोगों से आहत होने पर मां की आराधना रोगमुक्त कर देती है. मां की अर्चना का स्त्रोत स्कंद पुराण में शीतलाष्टक के रूप में वर्णित है।धार्मिक पुस्तकों में ये भी कहा गया है कि माता की आराधना करने वाले भक्त के कुल में भी यदि कोई इन रोंगों से पीड़ित हो तो ये रोग-दोष दूर हो जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस स्त्रोत की रचना स्वयं भगवान शंकर ने जनकल्याण में की थी। जिस घर में सप्तमी-अष्टमी तिथि को शीतला सप्तमी-अष्टमी व्रत और पूजा के विधि-विधान का पालन किया जाता है, वहां घर में सुख, शांति बनी रहती है और रोगों से मुक्ति भी मिलती है।
इस तरह करें पूजा
बता दें कि शीतलाष्टमी के एक दिन पहले ही माता को भोग लगाने के लिए सनातन धर्म के घरों में अनेकों प्रकार के पकवान बनाए जाते हैं और पूजा वाले दिन महिलाएं सुबह मीठे चावल, दही, रोटी, हल्दी, चने की दाल और लोटे में पानी लेकर पूजा करती हैं। विधि के मुताबिक माता शीतला को जल अर्पित किया जाता है और फिर उसकी कुछ बूंदे अपने ऊपर भी डाल लेनी चाहिए. जो जल चढ़ाएं और चढ़ाने के बाद जो जल बहता है, उसमें से थोड़ा जल लोटे में डाल लें। मान्यता है कि यह जल पवित्र होता है। इसे घर के सभी सदस्य आंखों पर लगाएं। थोड़ा जल घर के हर हिस्से में छिड़क देना चाहिए. माना जाता है कि इससे घर के अंदर की नकारात्मक ऊर्जा दूर हो जाती है. इसके बाद सभी पकवान से माँ को भोग लगाना चाहिए और थाली में बचा हुआ भोजन कुम्हार को देना चाहिए. इसके बाद माता शीतला की कथा पढ़नी चाहिए. इसी के साथ ही माता के सामने अपने परिवार के सदस्यों के लिए सुख-शांति एवं आरोग्य की प्रार्थना करना चाहिए. रोगों को दूर करने वाली मां शीतला का वास वट वृक्ष में माना जाता है, अतः इस दिन वट की पूजा करने का भी विधान शास्त्रों मे बताया गया है.
मंत्र
इस दिन व्रत करने वालों को चाहिए कि माता शीतला को प्रसन्न करने के लिए शीतलाष्टक का पाठ करें. इसी के साथ ही माता के पौराणिक मंत्र ‘हृं श्रीं शीतलायै नमः’ का जाप करना चाहिए. मान्यता है कि इस मंत्र से व्यक्ति के सारे संकट मिट जाते हैं.
यहां पढ़ें कथा
DISCLAIMER:यह लेख धार्मिक मान्यताओं व धर्म शास्त्रों पर आधारित है। हम अंधविश्वास को बढ़ावा नहीं देते। पाठक धर्म से जुड़े किसी भी कार्य को करने से पहले अपने पुरोहित या आचार्य से अवश्य परामर्श ले लें। KhabarSting इसकी पुष्टि नहीं करता।