योगी सरकार में मंडरा रहा परिवहन निगम के अस्तित्व पर खतरा, चार साल में न तो खरीदी गईं नई बसें और न ही भरें गए सैंकड़ों रिक्त पद, आचार संहिता खत्म होने के बाद 1400 नई बसों के मिलने की उम्मीद
लखनऊ (कनिष्क शर्मा)। योगी सरकार के पूरे कार्यकाल में उत्तर प्रदेश में जिस तरह से परिवहन निगम की जरूरतों का अनदेखा किया गया है, उससे साफ जाहिर होता है कि सरकार निजीकरण को बढ़ावा देने के लिए इसके अस्तित्व को पूरी तरह से खत्म कर देना चाहती है। ये जगजाहिर है कि इसके अस्तित्व को बचाए रखने के लिए कर्मचारी नेता आंदोलन को भी मजबूर हुए हैं। अगर बात करें निगम की जरूरतों की तो प्रतिदिन निगम की सात बसें खराब होने की वजह से कटने के लिए चली जाती हैं, तो प्रतिदिन ही सात नई बसों की जरूरत भी होती है। ताकि बसों की कमी न हो सके और आम जनता का सफर भी सुखद व बजट के अंदर बना रहे। बावजूद इसके योगी सरकार के कार्यकाल में न तो नई बसें खरीदी गईं और न ही सैंकड़ों रिक्त पड़े पदों को भरा गया। हालांकि मिली जानकारी के मुताबिक चुनाव बाद आचार संहिता खत्म होने के तीन महीने बाद करीब 1400 नई बसों के मिलने की उम्मीद जताई जा रही है।
कर्मचारी ठोक-पीटकर चला रहे हैं बसों को
संविदा चालक परिचालक संघर्ष यूनियन के महामंत्री कन्हैया लाल पाण्डेय बताते हैं कि परिवहन निगम के अस्तित्व को बचाए रखने के लिए हम सभी कर्मचारी खराब बसों को ठोक-पीटकर सही करके चला रहे हैं। पिछले चार सालों में एक भी नई बस सरकार द्वारा नहीं खरीदी गई और न ही रिक्त पड़े चालक व परिचालक के करीब 10,544 पदों को ही भरा गया। जबकि खराब होने की वजह से प्रतिदिन करीब सात बसें कटने के लिए चली जाती हैं। इस लिहाज से प्रतिदिन सात नई बसों की जरूरत भी होती है, ताकि परिवहन की व्यवस्था ज्यों की त्यों बनी रहे, लेकिन सरकार की मंशा से साफ जाहिर होता है कि निजीकरण को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने निगम की जरूरतों पर ध्यान नहीं दिया और सैकड़ों निजी बसें सड़कों पर दौड़ा दी गईं। जबकि जब भी कोई प्राकृतिक आपदा आती है तो मदद के लिए परिवहन की बसों को ही लगाया जाता है। कोरोना काल में भी बिना अपनी जिंदगी की परवाह किए हुए परिवहन के कर्मचारी लोगों की मदद के लिए लगे रहे। इसी के साथ परिवहन की बसें महिलाओं और लोगों की सुरक्षा की भी पूरी जिम्मेदारी लेती हैं और लोगों का सफऱ सुरक्षित बनाती हैं। रात में कम सवारी होने के बावजूद पूरी बस भरने का इंतजार नहीं करते और लोगों सफर समय पर पूरा कराते हैं, जबकि प्राइवेट बसें जब तक पूरी भर नहीं जातीं, तब तक नहीं चलतीं और किराया भी अधिक वसूलती हैं।
चुनाव आयोग के एडवांस से खरीदी जाएंगी 1400 बसें
निगम के सूत्रों की मानें तो कर्मचारियों के आंदोलन को देखते हुए चुनाव से पहले ही 2400 बसों के खरीदने की अनुमिति मिली है, लेकिन आचार संहिता लागू हो जाने के कारण बसें नहीं खरीदी जा सकीं। आचार संहिता खत्म होने के करीब तीन महीने बाद 1400 बसें मिलने की उम्मीद है। बता दें कि चुनाव में 4800 बसें लगाई गई हैं, जिसका किराया चुनाव आयोग पहले ही दे चुका है। तो वहीं करीब सात सौ करोड़ का बजट भी इसके लिए पास हुए है। जैसे ही आचार संहिता खत्म होगी नई बसों के लिए काम शुरू कर दिया जाएगा। बता दें कि उत्तर प्रदेश में करीब 10500 कारपोरेशन और करीब साढ़े चार हजार अनुबंधित बसें हैं। करीब 210 बसें हर महीने खराब होने के कारण नीलाम कर दी जाती हैं। पिछले चार साल एक भी बस न खरीदे जाने के कारण प्रदेश में परिवहन की बसों का टोटा हो गया है। कर्मचारियों का आरोप है कि सरकार निजीकरण को बढ़ावा देने के लिए ही परिवहन की नई बसों के लिए कुछ नहीं कर रही है और न हीं खाली पड़े पदों को भर रही है। अगर आने वाली सरकार भी परिवहन के लिए सकारात्मक सोच नहीं रखेगी तो कर्मचारी निगम को बचाने के लिए आंदोलन करेंगे।
ये खबरें भी पढ़ें-
आजमगढ़ जहरीली शराब मामला: आरोपियों पर लगेगा गैंगेस्टर, खंगाले जाएंगे बैंक एकाउंट, देखें वीडियो