वामन द्वादशी आज: व्रत-पूजा करने से भगवान वामन करते हैं हर मनोकामना पूरी, इन चीजों का करें दान
भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष की द्वादशी तिथि को वामन द्वादशी या वामन जयंती कहते हैं। श्रीमद्भागवत के अनुसार, इसी तिथि पर भगवान वामन का प्राकट्य हुआ था। धर्म ग्रंथों में वामन को भगवान विष्णु का पाचवां अवतार माना गया है। आध्यात्म,ज्योतिष,वास्तु रत्न मर्मज्ञ आचार्य, प्रमोद द्विवेदी कहते हैं कि भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष द्वादशी को अभिजित मुहूर्त में श्रवण नक्षत्र में माता अदिति व कश्यप ऋषि के पुत्र वामन रूप में भगवान विष्णु ने जन्म लिया था। इस दिन भगवान वामन की व्रत और पूजा करने से हर मनोकामना पूरा होती है।
ऐसे करें पूजा
धर्म ग्रंथों के अनुसार वैष्णव भक्तों को इस दिन व्रत करना चाहिए। सुबह स्नान के बाद वामन द्वादशी व्रत का संकल्प लेना चाहिए। मध्याह्न 11:30 से 12:30 (अभिजित मुहूर्त) में भगवान वामन की पूजा करनी चाहिए। इसके बाद एक बर्तन में चावल, दही और शक्कर रखकर किसी योग्य ब्राह्मण को दान करना चाहिए। शाम को व्रत करने वाले को चाहिए कि फिर से स्नान करने के बाद भगवान वामन का पूजन करे और व्रत कथा सुने। इसके बाद ब्राह्मण को भोजन कराना चाहिए और स्वयं फलाहार करना चाहिए। इस तरह व्रत व पूजन करने से भगवान वामन प्रसन्न होते हैं और व्रती की हर मनोकामना पूरी करते हैं। (भगवान वामन की फोटो सोशल मीडिया से ली गई है)
ब्राह्मणों को ये सामान करें दान
व्रत का उद्यापन करने के बाद ब्राह्मणों को माला, गऊमुखी कमण्डल, लाठी, आसन, श्रीमद्भागवत गीता, छाता, फल, खड़ाऊं आदि का दान कर अपने सामर्थ्य के अनुसार दक्षिणा देनी चाहिए। मान्यता है कि इस तरह से भगवान वामन का व्रत करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।
भगवान वामन की कथा
आध्यात्म,ज्योतिष,वास्तु रत्न मर्मज्ञ आचार्य, प्रमोद द्विवेदी कहते हैं कि भागवत पुराण की कथा की अगर मानें तो दैत्य राजा बलि ने अपने तप बल से इन्द्र देव को पराजित कर स्वर्ग पर अपना अधिकार कर लिया था। भगवान विष्णु के परम भक्त प्रहलाद का वह पौत्र था और दानवीर था। इसके बाद वह स्वर्ग लोक, भू लोक तथा पाताल लोक का स्वामी बन बैठा। स्वर्ग से इंद्र देव का जब अधिकार छिन गया तो वह अन्य देवताओं के साथ भगवान विष्णु के पास पहुंचे और अपनी पीड़ा सुनाई। इस पर विष्णु भगवान ने वामन ब्रह्मचारी का रूप धारण कर बलि के यहां जाकर तीन पग भूमि दान में माँगी। राजा बलि तीन पग भूमि देने के लिए दैत्य गुरु शुक्राचार्य के मना करने पर भी वे वचनबद्ध हो गए और वामन रूपी विष्णु ने एक पग से धरती, दूसरे पग से स्वर्ग और ब्रह्म लोक नाप लिया तथा तीसरा पैर बली की पीठ पर रखकर उसे पाताल भेज दिया। यह कथा आज भी बहुत प्रचलित है।
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