Allahabad University: जानें क्या है मानवविज्ञान विभागों का उत्तरदायित्व? इलाहाबाद विश्वविद्यालय में जनजातीय समाज को लेकर दिया गया ये संदेश

August 15, 2024 by No Comments

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Allahabad University: मानवविज्ञान (Anthropology) विभाग इलाहाबाद विश्वविद्यालय में “अंतर्राष्ट्रीय विश्व मूलनिवासी/जनजाति दिवस” का आयोजन 09 अगस्त 2024 को मानवविज्ञान विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय तथा आई. क्यू. ए. सी. प्रकोष्ठ इलाहाबाद विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में किया गया.

इस कार्यक्रम को आयोजित किये जाने का आधार जनजातीय समाजों की संस्कृति और विश्व में उनके महत्त्व के प्रति लोगों के मन में जागरूकता उत्पन्न किया जाना था. इस वर्ष के आयोजन की मूल विषयवस्तु “आरम्भिक संपर्क अथवा संक्रमण तथा स्वैच्छिक पृथक्करण की अवस्था में मूलनिवासियों/ जनजातियों के अधिकारों का संरक्षण” से संबंधित था। आयोजन की इस श्रृंखला में विद्यार्थियों और शोधार्थियों को केंद्र में रखकर उनके शैक्षणिक उन्नयन के लिए निबंध प्रतियोगिता जिसका विषय “भारत की जनजातियों की समस्याएं एवं उनके अधिकार” था. “वन अधिकार अधिनियम 2006 आदिवासियों का पक्षधर है” विषयक वाद-विवाद प्रतियोगिता और विभिन्न जनजातीय समस्याओं पर आधारित आशु भाषण प्रतियोगिता का आयोजन किया गया।

कार्यक्रम के प्रारम्भ में मानवविज्ञान विभाग इलाहाबाद विश्वविद्यालय के विभागाध्यक्ष प्रो. राहुल पटेल ने विद्वान अतिथियों, शोधार्थियों और विद्यार्थियों का स्वागत करते हुए बताया कि कैसे इस प्रकार के विद्यार्थी-केंद्रित आयोजन विद्यार्थियों एवं शोधार्थियों के सर्वांगीण/समग्र विकास के लिए जरूरी हैं। कार्यक्रम की उपादेयता के बारे में चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि मानववैज्ञानिक लेंस जनजातीय/मूलनिवासी लोगों की समस्याओं को समझने तथा उनका निराकरण करने का एक सशक्त माध्यम है और इसीलिए दुनियाभर में स्थापित मानवविज्ञान विभागों का ये उत्तरदायित्व है कि वे जनजातीय मुद्दों पर अपनी अपेक्षित भूमिका का निर्वहन करें।

मुख्य अतिथि के रूप में पधारे अधिष्ठाता, कला संकाय, इलाहाबाद विश्वविद्यालय आचार्य संजय सक्सेना ने अपने विचार प्रस्तुत करते हुए ‘इंडीजीनस’ के सिद्धांत को ‘पॉपुलर कल्चर’ के सन्दर्भ में समझने पर जोर दिया। उन्होंने वर्तमान विषयगत चिंतनों तथा वृत्तांतों में इंडीजीनस साहित्य की महत्ता पर भी प्रकाश डाला।

उन्होंने कहा कि पहले अन्य समाजों के लोग या शोधकर्ता उनके विषय में लिखते थे लेकिन अब वे स्वयं अपने साहित्य का विकास और लेखन कर रहे हैं। उन्होंने फ्रांसीसी मानवविज्ञानी क्लाउड लेवी-स्ट्रॉस तथा साइको- एनालिस्ट फ्रायड का संदर्भ प्रस्तुत करते हुए इंडीजीनस समाजों के मिथकों तथा उनके जीवन में इनके महत्व की चर्चा की।

कार्यक्रम के विजेता प्रतिभागियों को आचार्य सक्सेना ने सर्टिफिकेट देकर सम्मानित किया। कार्यक्रम में निर्णायक मंडल के सदस्य के रूप में डॉ सुमित सौरभ श्रीवास्तव, डॉ मीनाक्षी शुक्ला, डॉ अपर्णा तथा डॉ शैलेन्द्र मिश्र (सभी इलाहाबाद विश्वविद्यालय से) ने अपनी भूमिका का निर्वहन किया। इन सभी ने अपने वक्तव्य में जनजातीय/ मूलनिवासी समाज को समझने के लिए अन्तर्विधायी शोध के महत्व पर बल दिया।

वाद-विवाद प्रतियोगिता में प्रथम स्थान अलका पाल, द्वितीय स्थान पर संयुक्त रूप से करिश्मा सिंह, साक्षी यादव और आनंद मिश्रा, तृतीय स्थान पर कनुप्रिया तथा सुधीर कुमार, चतुर्थ स्थान पर महिमा सिंह और पांचवें स्थान पर शशि रंजन कुमार रहे। निबंध प्रतियोगिता में शिखा मौर्य प्रथम, अर्चिता तिवारी द्वितीय, अंकित मौर्य तृतीय, मंजीत कुमार यादव चतुर्थ तथा हर्षित कौशल पंचम स्थान पर रहे। आशु भाषण प्रतियोगिता शिखा मौर्य ने पहला स्थान, प्रियोदित त्रिपाठी ने दूसरा, महिमा सिंह और अर्चिता तिवारी ने संयुक्त रूप से तीसरा, सुधीर कुमार ने चौथा और मयंक मिश्रा ने पाँचवा स्थान अर्जित किया।

कार्यक्रम के अंत में विभागाध्यक्ष प्रो. राहुल पटेल, डॉ शैलेंद्र मिश्रा, डॉ खिरोद मोहराना, तथा डॉ संजय द्विवेदी ने अतिथियों को मुंशी प्रेमचंद रचित “राम चर्चा” नामक पुस्तक स्मृतिचिह्न के रूप में भेंट किया। धन्यवाद ज्ञापन डॉ खिरोद चंद्र मोहराना और इस कार्यक्रम का संचालन डॉ. संजय कुमार द्विवेदी, पोस्ट डॉक्टोरल फ़ेलो आईसीएसएसआर,नई दिल्ली ने किया। आयोजन का समापन राष्ट्रगान से किया गया।