अमेरिकी लॉ प्रोफेसर ने की भारतीय डाक्टरों की आलोचना, ब्राह्मण महिलाओं पर साधा निशाना, भारत को गंदा देश कहते हुए कहा चले आते हैं यहां, पढ़ें क्या-क्या कहा
फिलाडेल्फिया/ नई दिल्ली। गाहे-बगाहे भारत या फिर ब्राह्मणों को लेकर देश विदेश में नेता, मंत्रियों द्वारा टिप्पणी करने की खबरें तो सामने आती ही रही हैं, लेकिन अब एक खबर अमेरिका से सामने आई है। यहां की पेन्सिलवेनिया यूनिर्वसिटी में कानून की प्रो. एमी वैक्स ने एक राष्ट्रीय रूढ़िवादी (national conservative) टॉक शो में अमेरिका की आलोचना करने वालों के खिलाफ एक के बाद एक कई भड़काऊ टिप्पणियां बिना सोचे-समझे कर दी, जिसमें भारत को भी शामिल कर लिया।
सोशल मीडिया पर वायरल बयान और मीडिया सूत्रों की माने तो फिलाडेल्फिया इन्क्वायरर (philadelphia enquirer
) की रिपोर्ट में कहा गया है कि वैक्स ने एक राजनीतिक टिप्पणीकार टकर कार्लसन से कहा, पश्चिमी देशों के लोगों के योगदान के लिए पश्चिमी लोगों के खिलाफ गैर-पश्चिमी लोगों की नाराजगी शर्म की बात है। सही में यह असहनीय है। इसी के साथ वैक्स ने एशियाई और दक्षिण एशियाई भारतीय डॉक्टरों की आलोचना की। साथ ही कहा कि ये लोग नस्लवाद विरोधी पहल करने यहां (अमेरिका) चले आते हैं। इसी के साथ भारत की ब्राह्मण महिलाओं को तीखे शब्द कहे।
रिपोर्ट के मुताबिक उन्होंने कहा कि समस्या यहां है, उन्होंने कहा, उन्हें सिखाया जाता है कि वे हर किसी से बेहतर हैं क्योंकि वे ब्राह्मण हैं और फिर भी उनका देश गंदा है, उन्हें पता है कि हमने उन्हें हर तरह से पछाड़ दिया है, जिससे वे क्रोधित महसूस करते हैं, ईर्ष्या महसूस करते हैं, शर्म महसूस करते हैं..आदि-आदि, यह बहुत खराब स्तर की कृतघ्नता पैदा करता है।
दूसरी लॉ टीचर ने वैक्स को कहा मूर्ख
यूनिवर्सिटी की एक लॉ टीचर नील मखीजा ने वैक्स की आलोचना करते हुए कहा कि यह बहुत ही शर्म और दुख की बात है कि देश के सबसे अच्छे लॉ स्कूलों में से एक की ये प्रोफेसर मूर्ख हैं। इसके बाद ही उन्होंने वैक्स की एक बात को सही कहते हुए कहा कि अमेरिका में रहने वाले भारतीय लोग नस्लीय समानता की परवाह करते हैं।
हालांकि अगर मीडिया रिपोर्टस की माने तो वैक्स सालों से अपने बयानों से लोगों को भड़काती रही हैं। उन्होंने काले रंग के छात्रों की शैक्षणिक क्षमता पर सवाल उठाया है और कहा है कि अमेरिका तब बेहतर होगा जब एशिया से कम लोग यहां आएंगे। फिलाडेल्फिया इन्क्वायरर ने बताया कि यूनिवर्सिटी ने पहले भी उनके बयानों की निंदा की है, और 2018 में उन्हें पढ़ाने से हटा दिया था, लेकिन अकादमिक स्वतंत्रता का हवाला देकर फिर उन्हें रख लिया गया।
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