CHAITRA NAVRATRI: षष्ठी मां कात्यायनी को लगाएं शहद का भोग, विवाह की इच्छा रखने वाली युवतियां इस विधि से करें पूजा, जल्द बनेगा विवाह का योग, कन्याओं को दान करें फल और फूल, देखें भजन व वीडियो
नवरात्र स्पेशल। नवरात्र की षष्ठी (7 अप्रैल) को माँ शक्ति के छठे स्वरुप माता कात्यायनी की पूजा का विधान शास्त्रों में वर्णित है। अगर किसी वजह से षष्ठी को माता की पूजा न कर सकें, तो नवरात्र की अष्टमी व नवमी के दिन अगर माता के सभी स्वरूपों की पूजा कर लें तो पूरे नवरात्र का फल प्राप्त हो जाता है। इस सम्बंध में आचार्य पुष्पलता पाण्डेय और आचार्य सुशील कृष्ण शास्त्री बताते हैं कि माँ शक्ति के छठे स्वरुप माँ कात्यायनी कि पूजा-अर्चना करने की परम्परा नवरात्र की षष्ठी को है। नवरात्र की षष्ठी को माता की पूजा एकाग्र होकर करें। ध्यान रहे कि नवरात्र के दौरान पूजा करते वक्त मन में किसी तरह का छल या कपट न रखें। तभी पूजा का पूरा फल प्राप्त होता है।
भक्त जान लें कैसी है मां की छवि
अगर हम मां कात्यायनी की छवि का बात करें तो सुनहरे और चमकीले वर्ण वाली माता की चार भुजाएं हैं। वह सदैव रत्न आभूषण से अलंकृत रहती हैं। इस रूप में माँ खूंखार और दानवों पर झपट पड़ने वाली मुद्रा में भी दिखाई देती हैं, जो कि सिंह पर सवार रहती हैं। माँ का आभामंडल विभिन्न देवो के तेज अंशों से मिश्रित इंद्रधनुषी छटा देने वाला है। माँ का यह छठवां विग्रह रूप है। नवरात्र की षष्ठी को भक्तों में माँ के इसी रूप की पूजा-अर्चना व आराधना करने की परम्परा सदियों से चली आ रही है। प्राणियों में माँ का वास आज्ञा चक्र में होता है, और योग साधक इस दिन अपना ध्यान आज्ञा चक्र में लगाकर माता की कृपा प्राप्ति करते हैं।
माँ के इस स्वरूप में दाहिनी ओर की ऊपर वाली भुजा अभय देने वाली मुद्रा में तथा नीचे वाली भुजा वर देने वाली मुद्रा में दिखाई देती है। बाईं ओर की ऊपर वाली भुजा में माँ ने चंद्रहास तलवार धारण किया है, तो वहीं नीचे वाली भुजा में कमल का फूल माता लिए हुए हैं। एकाग्रचित्त और पूर्ण समर्पित भाव से माँ की उपासना करने वाला भक्त बड़ी सहजता से धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष अर्थात इन चारों पुरुषार्थो की प्राप्त कर लेता है। इस तरह वह इस लोक में रहकर भी अलौकिक तेज और प्रभाव को प्राप्त कर लेने में सक्षम होता है। मान्यता है कि जो नवरात्र के दिन माता को पूरे मन और श्रद्धा के साथ जप लेता है, उसे रोग, शोक, संताप, भय से धीरे-धीरे मुक्ति मिलती जाती है। माता अपने बच्चों पर सदैव अपना आशीर्वीद रखती हैं।
माता ऐसे होंगी प्रसन्न
नवरात्र की षष्ठी तिथि पर मां कात्यायनी की पूजा और ध्यान गोधूलि बेला में करने का विधान पुराणों में बताया गया है। मान्यता है कि अगर अविवाहित बेटियां मां कात्यायनी देवी की पूजा पूरे ध्यान और मन से करें तो विवाह का योग जल्दी बनता है और योग्य वर की प्राप्ति होती है। विवाह की इच्छा रखने वाली बेटियों को चाहिए कि नवरात्र से माता कात्यायनी की पूजा शुरू कर प्रत्येक गुरुवार को भी उनकी पूजा पूरे विधि-विधान से करें। माता को प्रसन्न करने के लिए शहद का भोग लगाएं। इसी के साथ कन्याओं को फूल और फल भेंट में दें।
मंत्र
चन्द्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहना
कात्यायनी शुभं दद्यादेवी दानव घातिनी
आरती
जय जय अंबे जय कात्यानी।
जय जग माता जग की महारानी।।
बैजनाथ स्थान तुम्हारा।
वहां वरदानी नाम पुकारा।।
कई नाम है कई धाम है।
यह स्थान भी तो सुखधाम है।।
हर मंदिर में जोत तुम्हारी।
कहीं योगेश्वरी महिमा न्यारी।।
हर जगह उत्सव होते रहते।
हर मंदिर में भक्त है कहते।।
कात्यायनी रक्षक काया की ।
ग्रंथ काटे मोह माया की ।।
झूठे मोह से छुड़ाने वाली ।
अपना नाम जपने वाली ।।
बृहस्पति वार को पूजा करियो ।
ध्यान कात्यायनी का धरियो ।।
हर संकट को दूर करेगी।
भंडारे भरपूर करेगी ।।
जो भी मां को भक्त पुकारे।
कात्यायनी सब कष्ट निवारे।।
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