CHAITRA NAVRATRI 2022: मनचाहा जीवन साथी पाने और दाम्पत्य जीवन को सुखमय बनाने के लिए पूरी विधि से करें द्वितीय माता ब्रह्मचारिणी की पूजा, देखें क्या दान करें कन्याओं को, मंत्र व आरती
नवरात्र विशेष। यदि किसी युवक या युवती का विवाह नहीं हो रहा है या फिर रिश्ते आ रहे हैं, लेकिन मनमाफिक नहीं, तो नवरात्र के दूसरे दिन मां भगवती के द्वतीय रूप ब्राह्मचारिणी की पूजा करना न भूलें। आचार्य सुशील कृष्ण शास्त्री बताते हैं कि नवरात्र के दिनों में विधि-विधान से पूजा करने पर मां अविवाहितों की इच्छा तो पूरी करती ही हैं। साथ ही जिनका विवाह हो गया है, उनका दाम्पत्य जीवन भी सुखमय बना रहता है। इसी के साथ माता का मंत्र रोगों और महामारी को दूर भगाने में भी सहायक होता है। बस हमें केवल माँ ब्रम्ह्चारिणी की पूजा- अर्चना पूरी भक्ति भाव से करने की ज़रूरत है।
जानें कैसी है माता की छवि
आचार्य सुशील कृष्ण शास्त्री बताते हैं कि माता ब्रह्मचारिणी धवल वस्त्र धारण करती हैं और दाएं हाथ में अष्टदल की जपमाला और बाएं हाथ में कमंडल धारण किए हैं। माता ब्रह्मचारिणी को तप का आचरण करने वाली भी कहा गया है। इनकी पूजा नवरात्र के दूसरे दिन की जाती है। माता का स्वभाव सत, चित्त, आनंदमय ब्रह्म की प्राप्ति कराना है। माँ की आभा पूर्ण चंद्रमा के समान निर्मल और कांतिमय है। माँ की शक्ति का स्थान स्वाधिष्ठान चक्र में है। नवरात्र के दूसरे दिन भक्त माँ के इसी विग्रह की पूजा-अर्चना करते हैं। माँ अपने भक्तों को सभी कार्य में सफलता प्रदान करती हैं, उनके जीवन में सुख का संचार करती हैं। जो भी साधक या भक्त माँ की आराधना भक्ति भाव से करता है, उसे वह कभी गलत मार्गों पर भटकने नहीं देती। अर्थात माँ के उपासक सदैव अच्छे मार्ग पर चलते रहते हैं। जो भी मां की सच्चे ह्रदय से पूजा-पाठ करता है, वह जीवन के कठिन संघर्षों में भी अपने कर्तव्य का पालन बिना विचलित हुए करते रहते हैं। माँ के इस रूप के पूजन से लम्बी उम्र मिलती है। इसी के साथ जो सच्चे मन से माँ की पूजा करता है, स्त्री व पुरुष दोनों को ही मन चाहा जीवन साथी मिलता है।
ये सामग्री करें कन्याओं को दान
धर्म ग्रंथों की मानें तो मां ब्रह्मचारिणी को गुड़हल और कमल के फूल पसंद हैं, इसलिए भक्तों को चाहिए कि यही फूल माता को अर्पित करें। इसी के साथ चीनी, मिश्री और पंचामृत का भोग लगाएं। इसके बाद प्रसाद चढ़ाएं, आचमन करें, पान सुपारी भेंट कर प्रदक्षिणा करें। तत्पश्चात घी व कपूर मिलाकर देवी की आरती करें। साथ ही मां को प्रसन्न करने के लिए खुशबूदार तेल की शीशी कन्याओं को दान में दें। अंत में क्षमा याचना कर प्रार्थना करें।
मन्त्र
दधना कर पद्याभ्यांक्षमाला कमण्डलम
देवी प्रसीदमयी ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा
आरती
जय अंबे ब्रह्मचारिणी माता।
जय चतुरानन प्रिया सुखदाता।।
ब्रह्मा जी के मन भाती हो ।
ज्ञान सभी को सिख लाती हो।।
ब्रह्म मंत्र है जाप तुम्हारा।
जिसको जपे सरल संसारा।।
जय गायत्री वेद की माता ।
जो जन जिस दिन तुम्हें ध्याता।।
कमी कोई रहने ना पाए ।
उसकी विरति रहे ठिकाने ।।
जो तेरी महिमा को जाने।
रुद्रक्षा की माला लेकर।
जपे जो मंत्र श्रद्धा देकर।।
आलास छोड़ करे गुनगाना ।
मां तुम उसको सुख पहुंचाना।।
ब्रह्मचारिणी तेरो नाम ।
पूर्ण करो सब मेरे काम।।
भक्त तेरे चरणों का पुजारी।
रखना लाज मेरी महतारी।।
नोट: यह लेख धार्मिक मान्यताओं व धर्म शास्त्रों पर आधारित है। हम अंधविश्वास को बढ़ावा नहीं देते। पाठक धर्म से जुड़े किसी भी कार्य को करने से पहले अपने पुरोहित या आचार्य से अवश्य परामर्श ले लें। KhabarSting इसकी पुष्टि नहीं करता।)
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