बाराबंकी कोर्ट की अवमानना मामला: भूमि विवाद में पुलिस ने फाड़ दी थी स्टे की कॉपी, जाने पूरा घटनाक्रम कब क्या हुआ
लखनऊ/बाराबंकी। उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले में कोतवाल अमर सिंह औऱ नायब तहसीलदार के जेल जाने की खबर से पूरा जिला प्रशासन सोमवार को हिल गया। हालांकि बाद में प्रभारी जिला जज द्वारा सिविल जज जूनियर डिवीजन के आदेश पर रोक लगा देने से सभी ने राहत की सांस ली, लेकिन इस पूरे प्रकरण ने कहीं न कहीं नगर कोतवाल की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़ा कर दिया है। जानें मामले का पूरा घटनाक्रम-
आलापुर मोहल्ले में है दो पक्षों में भूमि को लेकर विवाद
उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले के शहर कोतवाली क्षेत्र के आलापुर मोहल्ले में मोहम्मद आलम और मुबीन के बीच जमीन को लेकर विवाद चल रहा था। इस पर मोहम्मद आलम ने न्याय के लिए कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। इस पर सिविल जज जूनियर डिवीजन की अदालत ने गत सात जुलाई को मोहम्मद आलम के पक्ष में स्टे आर्डर दे दिया और जमीन पर किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप करने पर पूरी तरह से रोक लगा दी।
मो. आलम ने दाखिल किया अवमानना वाद
पूरे मामले की जानकारी देते हुए मो. आलम ने बताया कि उसने 12 अगस्त को सिविल जज की अदालत में अवमानना का वाद दाखिल किया। जिसमें बताया कि कोर्ट के स्टे के बावजूद पांच अगस्त को विपक्षी के साथ शहर कोतवाल आए और उसका निर्माण कार्य को रोक दिया। छह अगस्त को विपक्षी के साथ फिर से नायब तहसीलदार केशव प्रताप सिंह व लेखपाल प्रहलाद नरायण तिवारी आए। ये लोग कोर्ट के स्टे के बावजूद विवादित भूमि की नापजोख करने लगे। इस पर उनको जब स्टे कापी दिखाई गई तो पुलिसकर्मियों ने यह कहते हुए आदेश की कॉपी फाड़ दी कि ऐसे आदेश तो हम रोज देखते हैं। फिर इसके बाद इन लोगों ने मिलकर विवादित भूमि की दीवार गिरा दी गई और विपक्षियों के खूंटे गड़वा दिए गए।
पूरी जानकारी को ध्यान में रखते हुए सिविल जज जूनियर डिवीजन कोर्ट संख्या 13 खान जीशान मसूद ने सोमवार को आदेश की तारीख मुकर्रर की। इस पर सोमवार को सबसे पहले शहर कोतवाल अमर सिंह पहुंचे तो सिविल जज ने न्यायिक अभिरक्षा में लेते हुए उनको कटघरे में खड़ा कर दिया। उसके बाद ही नायब तहसीलदार पहुंचे तो उन्हें भी अभिरक्षा में लेते हुए कटघरे में खड़ा करवा दिया गया। इसके बाद सिविल जज ने आदेश जारी करते हुए कहा कि दोनों को अवमानना का दोषी पाया जाता है। इसलिए शहर कोतवाल अमर सिंह को तीन दिन की सिविल कारावास की सजा सुनाई थी। पुलिस अधिकारी होने के कारण उन्हें उच्च कोटि में रखने का आदेश दिया थी। इसी तरह से अभिरक्षा में लिए गए नायब तहसीलदार केशव प्रसाद को भी अवमानना का दोषी करार देते हुए उन्हें एक महीने का सिविल कारावास की सजा सुनाई थी और फिर दोनों को ही अभिरक्षा में कचहरी हवालात भेज दिया गया। इतना ही नहीं सिविल जज ने जेल अधीक्षक को भी पत्र लिख दिया था।
आनन-फानन में खटखटाया प्रभारी जिला जज का दरवाजा, मिली राहत
इससे पूरे पुलिस-प्रशासन में हड़कम्प मच गया था और फिर आनन-फानन में सरकारी अधिवक्ताओं व वरिष्ठ अधिकारियों से विधिक राय ली गई। फिर तत्काल ही प्रभारी जिला जज नित्यानंद श्रीनेत्र की कोर्ट में सिविल जज के आदेश को लेकर एक अपील डाली गई। शासकीय अधिवक्ताओं ने अपना तर्क न्यायालय के सामने रखा। इसके बाद प्रभारी जिला जज द्वारा सिविल जज जूनियर डिवीजन के आदेश पर रोक लगा दी गई। इस तरह शासन प्रशासन को राहत मिली और कोतवाल के साथ ही नायब तहसीलदार जेल जाते बचे। फिलहाल मामले की सुनवाई 28 सितम्बर को है।
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