Harishayani Ekadashi: देवशयनी एकादशी की पढ़ें कथा; जानें पूजन विधि, देखें क्या महत्व लिखा है ब्रह्मवैवर्त पुराण में
Harishayani Ekadashi: आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयनी एकादशी कहते हैं। इस एकादशी को पद्मनाभा और हरिशयनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है. शास्त्रों व पुराणों की मानें तो इस दिन भगवान विष्णु चार मास के लिए बलि के द्वार पर पाताल लोक में निवास करने के लिए चले जाते हैं. इसे ये भी कहा जाता है कि भगवान विष्णु सो जाते हैं और कार्तिक शुक्ल एकादशी को लौटते हैं. यानी कार्तिक शुक्ल एकादशी को जगते हैं जिसे प्रबोधिनी एकादशी या देवउठनी एकादशी भी कहते हैं.
बता दें कि देवशयनी एकादशी से ही चौमासा की शुरूआत हो जाता है और चार माह तक सनातन धर्म को मानने वाले लोग किसी भी प्रकार का वैवाहिक आदि मांगलिक कार्य नहीं करते हैं.
पूजन विधि
आचार्य सुशील कृष्ण शास्त्री बताते हैं कि इस दिन भगवान विष्णु की विशेष पूजा इस तरह की जाती है। इस व्रत रखना चाहिए। भगवान विष्णु की प्रतिमा को आसन पर बिठाएं। इसके बाद षोडशोपचार सहित पूजन करे। उनके हाथ में शंख, चक्र, गदा, पद्म सुशोभित कर उन्हें पीताम्बर, पीत वस्त्र व पीले दुपट्टे से सजाएं। पंचामृत से स्नान कराएं। इसके बाद धूप-दीप प्रज्जवलित कर पुष्प आदि अर्पित करें व आरती उतारें। याद रखें कि भगवान को पान, सुपारी अवश्य अर्पित करें। इसके बाद नीचे दिए मंत्र की स्तुति करें-
“सप्ते त्वयि जगन्नाथ जमत्सुप्तं भवेदिदम् ।
विबुद्धे त्वयि बुद्धं च जगत्सर्व चराचरम।। “
मंत्र का अर्थ है-
हे जगन्नाथ जी। आपके निद्रित हो जाने पर सम्पूर्ण विश्व निद्रित हो जाता है और आपके जाग जाने पर सम्पूर्ण विश्व तथा चराचर भी जाग्रत हो जाते हैं।
इस तरह से पूजन कर भगवान विष्णु का पूजन करना चाहिए। इसके बाद ब्राह्मणों को भोजन कराने के बाद खुद भी फलाहार करें। रात में भगवान के मंदिर में ही शयन करें। इससे पहले भजन व स्तुति जरूर करें। खुद सोने से पहले भगवान को सुला देना चाहिए। इस दिन महिलाएं परम्परानुसार भगवान को शयन कराती हैं।
बृज की केवल कर सकते हैं यात्रा
मान्यता है कि चौमासा के दौरान तपस्वी भ्रमण नहीं करते हैं और एक स्थान पर रहकर ही तपस्या करते हैं, जिसे चातुर्मास कहा जाता है। कहते हैं इस दौरान केवल ब्रज की यात्रा की जा सकती है, क्योंकि इन चार महीनों में पृथ्वी के सभी तीर्थ ब्रज में आकर निवास करते हैं। ब्रह्मवैवर्त पुराण में इस एकादशी को लेकर विशेष महत्व लिखा गया है। कहते हैं इस व्रत को करने से प्राणी की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। साथ ही सारे पाप भी नष्ट हो जाते हैं। भगवान ह्रषीकेश प्रसन्न होते हैं। सभी एकादशियों को भगवान विष्णु की पूजा की जाती है, लेकिन देवशयनी के दिन उनके निद्रा में जाने के कारण विशेष पूजा करने का विधान शास्त्रों में बताया गया है।
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