बसपा का एकमात्र ब्राह्मण चेहरा भी नहीं कर सका कमाल, स्वामी प्रसाद मौर्या को मिली करारी हार, देखें कानपुर और लखनऊ में कितनी सीटें मिलीं भाजपा और सपा को
लखनऊ। गुरुवार को मतगणना जारी है। जहां एक बार फिर से भाजपा पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता पर काबिज होने जा रही है। तो वहीं सपा दूसरे नम्बर पर दिखाई दे रही है, तो वहीं कांग्रेस भी अच्छा प्रदर्शन नहीं कर सकी। बहुजन समाज पार्टी (BSP), जो कि एक दलित-केंद्रित पार्टी है। वो भी इस बार कोई खास कमाल नहीं कर सकी। बल्कि 2022 के विधानसभा चुनावों में सबसे अधिक खराब प्रदर्शन किया है। जबकि उसके पास ब्राह्मण चेहरे के रूप में सांसद सतीश चंद्र मिश्रा थे। तो दूसरी ओर भाजपा का हाथ छोड़कर सपा का दामन थामने वाले स्वामी प्रसाद मौर्या को करारी हार मिली है। उधर कानपुर से सभी विधानसभा क्षेत्रों के रिजल्ट सामने आ चुके हैं, जिसमें सबसे अधिक सीटें भाजपा के खाते में आई है।
गौरतलब है कि मायावती के चुनाव प्रचार में बहुत ही सीमित उपस्थिति के कारण अभियान को बसपा सांसद सतीश चंद्र मिश्रा ने ही संभाला था और इस तरह से वह ब्राह्मणों के बीच खासे चर्चित भी थे। बावजूद इसके बसपा के लिए कोई चमत्कार नहीं कर सके। बता दें कि कांशीराम ने 1984 में बसपा की स्थापना की थी। धार्मिक अल्पसंख्यकों के साथ अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) का जिक्र करते हुए उन्होंने बहुजन का प्रतिनिधित्व करने के लिए इसका गठन किया था।
फिर 2012 के बाद मायावती ने धीरे-धीरे मिश्रा को पार्टी के नए चेहरे के रूप में पदोन्नत कर दिया और पार्टी के सभी दलित नेताओं को निष्कासित कर दिया या फिर हाशिए पर डाल दिया। इस तरह से बसपा के पास अब कोई दूसरा नेतृत्व नहीं बचा है। यहां तक कि जाटव भी मायावती का साथ छोड़ चुका है, जो कि हमेशा मायावती के साथ खड़ा रहता था। मायावती खुद भी जाटव उप-जाति से ही ताल्लुक रखती हैं। तो वहीं बसपा की अनुसूचित जाति वर्ग में 14 फीसदी हिस्सेदारी थी। बसपा अब तक केवल 12.7 प्रतिशत वोट हासिल करने में सफल रही है जो स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि जाटव भी बसपा से दूर हो गए हैं।
इसका मतलब है कि पार्टी को अपने वोट शेयर का लगभग 10 फीसदी का नुकसान हुआ है। 2017 में बसपा को 22.2 फीसदी वोट और 19 सीटें मिली थीं। पार्टी फिलहाल सिर्फ दो सीटों पर आगे चल रही है। अगर राजनीतिक जानकारों की मानें तो चुनाव प्रचार के दौरान बसपा के परस्पर विरोधी रुख ने उत्तर प्रदेश में राजनीतिक केंद्र के मंच से इसे करीब करीब मिटा दिया है।
वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक प्रोफेसर आरके दीक्षित ने मीडिया को दिए बयान में कहा कि मायावती ने बार-बार ऐसे बयान जारी किए जो कहीं न कहीं भाजपा के समर्थन में ही दिखाई दिए। इसी बीच अमित शाह ने उत्तर प्रदेश की राजनीति में बसपा की प्रासंगिकता की गवाही भी दी थी। स्वाभाविक रूप से, भाजपा विरोधी वोट बसपा से दूर चले गए क्योंकि उन्होंने भाजपा के साथ चुनाव के बाद गठबंधन होने की संभावना देखी। इसके अलावा बसपा में दलित नेतृत्व की कमी देख कर दलितों ने अपने लिए अन्य विकल्प भी तलाशने शुरू कर दिए। इसका भी खामियाजा बसपा को भोगना पड़ा है। इसलिए कुछ भाजपा के साथ हो लिए तो कुछ सपा के साथ। इसका जीता जागता प्रमाण यही है कि इस बार बसपा के तमाम पूर्व नेता इस चुनाव में सपा के टिकट पर चुनाव लड़े। इस तरह से बसपा की अब राज्य विधानसभा में नगण्य उपस्थिति होगी और वह सत्तारूढ़ भाजपा का समर्थन या विरोध करने की स्थिति में भी नहीं होगी। इसी के साथ पार्टी के सूत्रों की माने तो मायावती की अब चुनावी राजनीति में कोई दिलचस्पी नहीं रह गई है और वह भारत के राष्ट्रपति के पद पर नजर गड़ाए हुए हैं। इसलिए वह भाजपा के खिलाफ बोलने से कतराती रहती हैं।
भाजपा प्रत्याशी से हारे स्वामी प्रसाद मौर्या
चुनाव से ठीक पहले भाजपा छोड़ कर समाजवादी पार्टी में शामिल होने वाले, पूर्व मंत्री और सपा प्रत्याशी स्वामी प्रसाद मौर्या फाजिलनगर विधानसभा से चुनाव हार गए हैं। उनको बीजेपी के सुरेंद्र कुशवाहा ने करारी शिकस्त दी है। फिलहाल उन्होंने ट्विट कर कहा है कि वह चुनाव हारे हैं हिम्मत नहीं। बता दें कि भाजपा के सुरेंद्र कुशवाहा ने स्वामी प्रसाद को 45633 वोट से हराया। इसी सीट पर बसपा के इलियास अंसारी को 45515 वोट मिले। वह तीसरे स्थान पर रहे हैं।
बता दें कि चुनाव से पहले, स्वामी प्रसाद सपा को जितवाने और अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री बनाने के बड़े-बड़े दावे कर रहे थे पर नतीजे उनके पक्ष में नहीं आए। पहले स्वामी प्रसाद पडरौना से चुनाव लड़ने वाले थे पर भाजपा ने उनके खिलाफ कांग्रेस छोड़ कर आए आरपीएन सिंह को मैदान में उतार दिया था। इस पर वह इस सीट को छोड़कर फाजिलनगर चले गए थे और वहीं से चुनाव लड़ा और हार गए।
लखनऊ
लखनऊ की पश्चिम विधानसभा सीट की मतगणना के अंतिम क्षणों में बड़ा उलटफेर देखने को मिला। सपा प्रत्याशी अरमान खान चुनाव जीत गए और भाजपा के अंजनी कुमार श्रीवास्तव को करीब 7000 वोटों से उन्होंने हरा दिया। इस तरह से लखनऊ की सभी 9 सीटों के अंतिम नतीजे सामने आने के बाद भाजपा को 7 और सपा को 2 सीटें मिलीं।
UP ELECTION-2022 RESULT:आजमगढ़ का किला भेदना भाजपा के लिए हुआ मुश्किल, सभी सीटों पर अखिलेश की साइकिल चल रही आगे
कानपुर
कानपुर कि 10 विधानसभा सीट के नतीजे में भारतीय जनता पार्टी ने 6 विधानसभा सीटों पर कब्जा किया और तीन सीट समाजवादी पार्टी के खाते में आई। एक सीट पर अपना दल ने कब्जा जमाया। कल्याणपुर विधानसभा से बीजेपी की नीलिमा कटियार, गोविन्द नगर से बीजेपी के सुरेन्द्र मैथानी, आर्य नगर से सपा के अमिताभ बाजपेई, किदवई नगर से बीजेपी के महेश त्रिवेदी, बिल्हौर से बीजेपी के राहुल काला बच्चा, कैंट विधान सभा से मो0 हसन रूमी सपा से, महाराज पुर विधान सभा सतीश महाना बीजेपी, बिठूर विधान सभा अभिजीत सिंह सांगा बीजेपी, घाटमपुर विधान सभा से सरोज कुरील अपना दल और सीसामऊ विधान सभा से इरफान सोलंकी सपा से जीत हासिल की।
खबरें और भी हैं-
UP ELECTION-2022 RESULT:शुरूआती तीन घंटे के रुझानों में भाजपा आगे, 250 के पार, सपा 125 पर
विधानसभा चुनाव मतगणना-2022: राजधानी की सुरक्षा चाक-चौबंद, देखें कितना पुलिस बल किया गया है तैनात