इस खतरनाक बीमारी के कारण गई तबला वादक जाकिर हुसैन की जान…जानें क्या है ये फेफड़े की बीमारी IPF

December 16, 2024 by No Comments

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Zakir Hussain: भारत के महान तबला वादक “उस्ताद” जाकिर हुसैन का निधन 73 वर्ष की आयु में हो गया है. वह फेफड़े की खतरनाक बीमारी इडियोपैथिक पल्मोनरी फाइब्रोसिस यानी Idiopathic Pulmonary Fibrosis (IPF-आईपीएफ) से जूझ रहे थे. विशेषज्ञों की मानें तो ये एक खतरनाक व क्रॉनिक बीमारी है. मालूम हो कि उस्ताद जाकिर हुसैन का सैन फ्रांसिस्को में इलाज चल रहा था, जहां स्थिति गंभीर होने के कारण डॉक्टर उन्हें बचाने में असफल रहे और आज निधन हो गया. उनका जन्म 9 मार्च 1951 को हुआ था.

चिकित्सक बताते हैं कि आईपीएफ फेफड़ों में वायुकोषों या एल्वियोली के आस-पास के ऊतकों को प्रभावित करती है। फेफड़ों के ऊतक मोटे और कठोर हो जाते हैं और समय के साथ ये बीमारी गम्भीर रूप धारण करती जाती है. इस बीमारी से पीड़ित व्यक्ति को सांस लेने में काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है. फिर धीरे-धीरे इस बीमारी के कारण एक समय ऐसा आता है, जब फेफड़ों में स्थायी निशान बन जाते हैं, जिसे फाइब्रोसिस कहते हैं. इसी वजह से पीड़ित व्यक्ति सांस लेने में काफी समस्याओं का सामना करता है.

इस तरह की दिनचर्या से मिलता है कुछ आराम

एक्सपर्ट बताते हैं कि इस बीमारी में आपकी दिनचर्या भी मदद करती है. यानी पोषण युक्त खानपान, व्यायाम और प्रदूषण से बचाव करके पीड़ित खुद को इस बीमारी के दौरान काफी ठीक रख सकता है और उसके जीवन की गुणवत्ता में सुधार किया जा सकता है।

जानें क्या है लक्षण?

इस बीमारी का सबसे बड़ा लक्षण सांस लेने में तकलीफ होना है और लगातार खांसी आना है। इसी के साथ ही हाई ब्लड प्रेशर भी होता है. हालांकि शुरू में इसके लक्षण बहुत दिखाई नहीं देते लेकिन जैसे-जैसे यह बीमारी बढ़ती जाती है, लक्षण बढ़ने के साथ ही पीड़ित की सेहत खराब होती जाती है.

नहीं है कोई इलाज

फिलहाल इस बीमारी को लेकर दावा है कि अभी तक इसका कोई इलाज नहीं है। हालांकि लगातार इलाज कराते रहने से इस बीमारी के बढ़ने की गति को धीमा किया जा सकता है और उपचार की ही मदद से फेफड़ों को बेहतर काम करने में मदद मिल सकती है.

इन लोगों को बना रहता है खतरा

एक्सपर्ट बताते हैं कि यदि आपके परिवार का कोई सदस्य इस बीमारी से ग्रस्त रह चुका है या फिर आप धूम्रपान करते हैं तो इस बीमारी की चपेट में आने का खतरा अधिक होता है. हालांकि ये बीमारी कम उम्र की तुलना में बड़े उम्र के लोगों को अधिक निशाना बनाती है.

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