जानें महाशिवरात्रि का काले तिल से क्या है कनेक्शन, शिव जी को चढ़ाएं पका आम, अश्वमेघ के समान मिलेगा फल, देखें पूजन विधि और पूजन सामग्री, मार्केश की शांति के लिए करें ये उपाए

February 28, 2022 by No Comments

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इस बार महाशिवरात्रि एक मार्च को पड़ रही है। एक मार्च 2022 को फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी है। मान्यता है कि सृष्टि के प्रारम्भ में इसी दिन मध्य रात्रि को शंकर जी का ब्रह्मा से रूद्र रूप में अवतरण हुआ था। प्रलय की बेला में इसी दिन प्रदोष के समय भगवान शिव ने सती के वियोग में महाताण्डव करते हुए ब्राह्माण्ड को तीसरे नेत्र की ज्वाला से समाप्त कर दिया था। इसीलिए इसे महाशिवरात्रि व कालरात्रि कहते हैं।

ज्योतिष की मानें तो काले तिल से स्नान करके रात्रि में विधि पूर्वक शिव पूजन करना चाहिए। शिव जी को सबसे प्रिय पुष्पों में मदार, कनेर, बेलपत्र तथा मौलसिरी है, लेकिन पूजन में बिल्वपत्र सबसे प्रमुख है। मान्यता है कि शिव जी पर पका आम चढ़ाने से विशेष फल की प्राप्ति होती है। आचार्य सुशील कृष्ण शास्त्री बताते हैं कि महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव का मन में ध्यान कर विधिपूर्वक व्रत रखना चाहिए। घर के साथ ही स्वयं को भी स्वच्छ और साफ करें। स्नान आदि के बाद शिव पूजन, शिव कथा, शिव स्तोत्रों का पाठ करें। साथ ही ओम नम: शिवाय का पाठ करते हुए रात्रि जागरण करें। ऐसा करने से अश्वमेघ के समान फल प्राप्त होता है।

महाकाल मंदिर लखनऊ

व्रत के दूसरे दिन पारण से पहले ब्राह्मणों को अपनी आर्थिक क्षमता के अनुसार वस्त्र सहित भोजन कराना चाहिए और दक्षिणा देना चाहिए। इस दिन व्रत का प्रारम्भ संकल्प के साथ करना चाहिए। संवत नाम, मास, पक्ष, तिथि-नक्षत्र, अपने नाम और गोत्र आदि का उच्चारण करते हुए ही व्रत की पूजा करनी चाहिए। महाशिवरात्रि पर सूर्योदय से रात्रि के करीब साढ़े 12 बजे तक, अर्थात इस अवधि के चार प्रहर में चार बार पूजन और चार बार रुद्राभिषेक करें। पहले प्रहर में दूध से शिव के ईशान स्वरूप को, दूसरे प्रहर में दही से अघोर स्वरूप को, तीसरे प्रहर में घी से वामदेव रूप को और चौथे प्रहर में शहद से सद्योजात स्वरूप को अभिषेक कर पूजन करना चाहिए। अगर चार बार पूजन और अभिषेक न कर सकें तो पहले प्रहर में पूजन जरूर करें। इस समय की गई उपासना विशेष फलदाई होती है।

इस दिन होती है मार्केश की भी शांति
महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव जी की आराधना और व्रत करने से जो भी अनिष्ट ग्रह होते हैं, उनसे शांति मिलती है। ज्योतिष शास्त्र में वर्णित है कि मार्केश की दशा से लेकर कोई भी अनिष्ट कुयोग क्यों न हो, सभी कुयोगों का शमन महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव की आराधना करने से बड़ी ही सरलता से हो जाता है। जन्म कुंडली में अगर कालसर्प दोष विद्यमान हो या राहु-केतु की महादशा अथवा अंतर्दशा परेशान कर रही हो या शनि की साढ़े साती या ढैया कष्ट दे रही हो तो महाशिवरात्रि के दिन शिव जी के पूजन और व्रत से राहत मिलती है। ध्यान रखें कि इस दिन की पूजा या व्रत किसी आचार्य के सानिध्य में ही करें।

पूजन विधि व सामग्री
इस दिन सुबह ही स्नान के बाद कलश में जल को भरकर किसी शिव मंदिर में जाकर रोली, मौली, अक्षत (चावल), पान, सुपारी, गंगाजल, बिल्व पत्र, पुष्प (अगर हो सके तो पीला कनेर), धतूरे का फल, आक का फल, पुष्प, पत्र, इलायची, लौंग, दूध, घी, शहद, चीनी, कमलगट्टा, चंदन, दही, मकौआ, प्रसाद भोग आदि शिव को अर्पित कर पूजा करें। रात्रि जागरण कर शिव चालीसा व शिव सहस्त्रनाम का पाठ करें। ओम नम: शिवाय व ओम महेश्ववराय नम: का अधिक से अधिक जाप करें। रात्रि जागरण में शिव जी की चार आरती का विधान जरूरी है। शिव पुराण का पाठ करना शुभकारी रहता है। दूसरे दिन सुबह जौ, तिल, खीर, तथा बेलपत्रों का हवन करके ब्राह्मणों को भोजन कराकर व्रत का पारण करना चाहिए।

जो प्रसाद चढ़ाएं उसे न खाएं
इस दिन शिव जी पर जो भी प्रसाद चढ़ाएं उसका सेवन न करें। अगर इस दिन शिव जी की मूर्ती के पास शालिग्राम जी की मूर्ती रखी है तो चढ़े प्रसाद को खाने से कोई दोष नहीं होगा। इस दिन व्रत करने वाले को दिन भर कुछ भी नहीं खाना चाहिए। शाम को एक समय ही फलाहार करना चाहिए। इसी के साथ इस दिन बेड आदि पर नहीं सोना चाहिए।

नोट: यह लेख धार्मिक मान्यताओं व धर्म शास्त्रों पर आधारित है। हम अंधविश्वास को बढ़ावा नहीं देते। पाठक धर्म से जुड़े किसी भी कार्य को करने से पहले अपने पुरोहित या आचार्य से अवश्य परामर्श ले लें। KhabarSting इसकी पुष्टि नहीं करता।)

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