Uttarkashi Tunnel Rescue: सुरंग से 17 दिन बाद बाहर निकले 41 मजदूरों ने बताया कैसे काटे ये दिन… एक नजर में पढ़ें 12 नवम्बर से लेकर अब तक का पूरा घटनाक्रम, देखें वीडियो
Uttarkashi Tunnel Rescue: दिवाली के दिन जब पूरा देश अपने-अपने परिवार के साथ दीवाली मना रहा था, तब 41 मजदूर एक अंधेरी सुरंग में कैद हो गए थे और जीवन और मौत के बीच जूझ रहे थे. ये मजदूर चार धाम के लिए नया रास्ता बना रहे थे। उत्तरकाशी की सिल्क्यारा-डंडालगांव टनल का एक हिस्सा अचानक ढह गया और सभी मजदूर बाहरी दुनिया से कट गए और फिर इनकी सुरक्षा के लिए प्रार्थना शुरू हुई थी.
तो दूसरी ओर रेस्क्यू एजेंसियों ने मजदूरों को बचाने को लेकर तमाम प्रयास शुरू किए. एक प्लान फेल हुआ, तो दूसरे पर काम शुरू हुआ। कभी सुरंग के मुहाने से तो कभी पहाड़ के ऊपर से खुदाई करके मजदूरों को निकालने की कोशिश की जाती रही। बता दें कि 12 नवंबर की सुबह 5.30 से 28 नवंबर की शाम 8.35 बजे तक यानी 17 दिन, करीब 399 घंटे बाद पहला मजदूर शाम 7.50 बजे बाहर निकाला गया। 45 मिनट बाद रात 8.35 बजे सभी को बाहर निकाल लिया गया। मजदूर खुद ही क्रॉल करके (घुटनों के बल) बाहर आए। सभी को एम्बुलेंस से अस्पताल भेजा गया। बता दें कि उत्तरकाशी टनल में फंसा हिमाचल प्रदेश के मंडी का विशाल भी 41 मजदूरों के साथ बाहर आ गया है। इस तरह से सभी के परिवार में खुशी की लहर दौड़ गई है. उत्तर प्रदेश के 8 मजदूर भी इसी में फंसे थे. इनके सुरक्षित बाहर निकलने के बाद घरों में दीवाली मनाई गई. इस दौरान मजदूरों ने बताया कि वह योगा औऱ एक्सरसाइज करते थे, ताकि खुद को मजबूत कर सकें.
इस तरह काटे दिन
सबा अहमद ने पीएम मोदी से अपने अनुभव शेयर करते हुए कहा कि, सर हम 17 दिन तक टनल में फंसे थे, लेकिन हमें एक बार भी कमजोरी या दिक्कत महसूस नहीं होती थी. ऐसा इसलिए हो पाया कि क्योंकि हम 41 लोग एक साथ थे. सब अलग-अलग राज्य से थे, लेकिन हम सब एक साथ थे. श्रमिकों ने कहा कि हम टनल के अंदर ही योग करते थे और मॉर्निंग वॉक भी करते थे. श्रमिकों ने कहा कि हम उत्तराखंड सरकार का शुक्रिया अदा करते हैं. तो वहीं पीएम ने सभी का जमकर तारीफ की.
सवेतन मिलेगा अवकाश
रेस्क्यू टीम के सदस्य हरपाल सिंह ने मीडिया को जानकारी दी कि, शाम 7 बजकर 5 मिनट पर पहला ब्रेक थ्रू मिला था। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने बाहर निकाले गए श्रमिकों से बात की। उनके साथ केंद्रीय मंत्री वीके सिंह भी थे। तो वहीं सीएम धामी ने कहा- सभी मजदूरों को उत्तराखंड सरकार की ओर से कल एक-एक लाख रुपए की मदद दी जाएगी। उन्हें एक महीने का सवेतन अवकाश भी दिया जाएगा, जिससे वह अपने परिवार वालों से मिल सकें। पीएम मोदी ने भी फोन पर सभी मजदूरों से बात की। वहीं रेट स्नेपर्स वाली कंपनी नवयुग के मैन्युअल ड्रिलर नसीम ने कहा कि सभी मजदूर स्वस्थ्य हैं।
टनल से अस्पताल तक बनाया गया ग्रीन कॉरिडोर
मीडिया सूत्रों के मुताबिक, रेस्क्यू के बाद मजदूरों को 30-35 KM दूर चिन्यालीसौड़ ले जाया गया। वहां 41 बेड का स्पेशल हॉस्पिटल बनाया गया है। टनल से चिन्यालीसोड तक की सड़क को ग्रीन कॉरिडोर घोषित किया गया था, जिससे रेस्क्यू के बाद मजदूरों को लेकर एम्बुलेंस जब अस्पताल जाए तो ट्रैफिक में न फंसे। बता दें कि यह करीब 30 से 35 किलोमीटर की दूरी है। इसको करीब 40 मिनट में तय किया गया।
बीच में रोकना पड़ा था रेस्क्यू ऑपरेशन
खबरों के मुताबिक, इससे पहले, सिल्क्यारा साइड से हॉरिजॉन्टल ड्रिलिंग में लगे रैट माइनर्स, हादसे के 17वें दिन दोपहर 1.20 बजे खुदाई पूरी कर पाइप से बाहर आ गए। उन्होंने करीब 21 घंटे में 12 मीटर की मैन्युअल ड्रिलिंग की। 24 नवंबर को मजदूरों की लोकेशन से महज 12 मीटर पहले ऑगर मशीन टूट गई थी। जिससे रेस्क्यू रोकना पड़ा था। इसके बाद सेना और रैट माइनर्स को बाकी के ड्रिलिंग के लिए बुलाया गया था। मीडिया सूत्रों के मुताबिक मंगलवार सुबह 11 बजे श्रमिकों के परिजनों के चेहरों पर तब खुशी दिखी, जब अधिकारियों ने उनसे कहा कि उनके कपड़े और बैग तैयार रखिए। जल्द ही अच्छी खबर आने वाली है।
देखें कैसे किया काम
मीडिया सूत्रों के मुताबिक, रैट माइनर्स 800MM के पाइप में घुसकर ड्रिलिंग की। ये बारी-बारी से पाइप के अंदर जाते, फिर हाथ के सहारे छोटे फावड़े से खुदाई करते थे। ट्राली से एक बार में तकरीबन 2.5 क्विंटल मलबा लेकर बाहर आते थे। पाइप के अंदर इन सबके पास बचाव के लिए ऑक्सीजन मास्क, आंखों की सुरक्षा के लिए विशेष चश्मा और हवा के लिए एक ब्लोअर भी मौजूद रहता था। इसी के सहारे रैट माइनर्स आगे बढ़ रहे थे.
जानें क्या है रैट होल माइनिंग?
ये तो सभी जानते हैं कि रैट का मतलब है चूहा होता है औऱ होल का मतलब है छेद और माइनिंग मतलब खुदाई। मतलब से ही साफ है कि छेद में घुसकर चूहे की तरह खुदाई करना। जानकारों के मुताबिक, इसमें पतले से छेद से पहाड़ के किनारे से खुदाई शुरू की जाती है और पोल बनाकर धीरे-धीरे छोटी हैंड ड्रिलिंग मशीन से ड्रिल किया जाता है और हाथ से ही मलबे को बाहर निकाला जाता है। बता दें कि रैट होल माइनिंग नाम की प्रकिया का इस्तेमाल आमतौर पर कोयले की माइनिंग में खूब होता रहा है। झारखंड, छत्तीसगढ़ और उत्तर पूर्व में रैट होल माइनिंग जमकर होती है, लेकिन रैट होल माइनिंग काफी खतरनाक काम है, इसलिए इसे कई बार बैन भी किया जा चुका है।
PM मोदी ने की बात
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फोन पर श्रमिकों से बात की और कहा कि आप लोगों के हौसले को नमन. आप लोगों ने साहस का परिचय देते हुए एक-दूसरे का हौसला बढ़ाया और किसी के मनोबल को टूटने नहीं दिया. आप लोगों के इसी हौसले और जुनून ने रेस्क्यू टीम को भी ताकत दी. श्रमिकों से पीएम ने पूछा कि “मैंने सुना कि आप लोगों में कुछ लोग योगा भी अंदर करते थे. जिस पर एक श्रमिक ने बताया कि रोज सुबह सभी लोग मिलकर योगा करते थे. उससे हमारे अंदर एक ऊर्जा का संचार होता था. यही वो ताकत थी, जो हमारी उम्मीदों को बांधे रखी थी.
देखें पूरी घटना एक नजर में
27 नवंबर- मीडिया सूत्रों के मुताबिक सुबह 3 बजे सिल्क्यारा की तरफ से फंसे ऑगर मशीन के 13.9 मीटर लंबे पार्ट्स निकाल लिए गए. फिर देर शाम तक ऑगर मशीन का हेड भी मलबे से निकाल लिया गया। तो इसके बाद रैट माइनर्स ने मैन्युअली ड्रिलिंग शुरू कर दी और फिर रात 10 बजे तक पाइप को 0.9 मीटर आगे पुश भी किया गया। साथ ही 36 मीटर वर्टिकल ड्रिलिंग हो गई थी।
26 नवंबर- उत्तरकाशी की सिल्क्यारा टनल में फंसे 41 मजदूरों को बाहर निकालने के लिए पहाड़ की चोटी से वर्टिकल ड्रिलिंग शुरू की गई. रात 11 बजे तक 20 मीटर तक खुदाई हुई। वर्टिकल ड्रिलिंग के तहत पहाड़ में ऊपर से नीचे की तरफ बड़ा होल करके रास्ता बनाया जा रहा है। तो वहीं इस सम्बंध में अधिकारियों ने कहा- अगर कोई रुकावट नहीं आई तो हम 100 घंटे यानी 4 दिन में मजदूरों तक पहुंच जाएंगे।
25 नवंबर: शुक्रवार को ऑगर मशीन टूटने के चलते रुका रेस्क्यू का काम शनिवार को भी रुका रहा और सभी को अगले कदम के लिए इंतजार करना पड़ा. इंटरनेशनल टनलिंग एक्सपर्ट अरनॉल्ड डिक्स ने कहा है कि अब ऑगर से ड्रिलिंग नहीं होगी, न ही दूसरी मशीन बुलाई जाएगी। तो वहीं मजदूरों को बाहर निकालने के लिए दूसरे विकल्पों की मदद ली जाएगी। बी प्लान के तहत टनल के ऊपर से वर्टिकल ड्रिलिंग की तैयारी हो रही है। इसी के साथ NDMA का कहना है कि मजदूरों तक पहुंचने के लिए करीब 86 मीटर की खुदाई करनी होगी।
24 नवंबर: सुबह ड्रिलिंग का काम शुरू हुआ तो ऑगर मशीन के रास्ते में स्टील के पाइप आ गए, जिसके चलते पाइप मुड़ गया। स्टील के पाइप और टनल में डाले जा रहे पाइप के मुड़े हुए हिस्से को बाहर निकाल लिया गया। ऑगर मशीन को भी नुकसान हुआ था, उसे भी ठीक कर लिया गया। इस तरह से रेस्क्यू ऑपरेशन आगे बढ़ता रहा. इसके बाद ड्रिलिंग के लिए ऑगर मशीन फिर मलबे में डाली गई, लेकिन टेक्निकल ग्लिच के चलते रेस्क्यू टीम को ऑपरेशन रोकना पड़ा। उधर, NDRF ने मजदूरों को निकालने के लिए मॉक ड्रिल की।
23 नवंबर: अमेरिकी ऑगर ड्रिल मशीन तीन बार रोकनी पड़ी। देर शाम ड्रिलिंग के दौरान तेज कंपन होने से मशीन का प्लेटफॉर्म धंस गया। तो वहीं इसके बाद ड्रिलिंग अगले दिन की सुबह तक रोक दी गई। इससे पहले 1.8 मीटर की ड्रिलिंग हुई थी।
22 नवंबर: मजदूरों को नाश्ता, लंच और डिनर भेजने में सभी को सफलता मिल गई। सिल्क्यारा की तरफ से ऑगर मशीन से 15 मीटर से ज्यादा ड्रिलिंग की गई। मजदूरों के बाहर निकलने के मद्देनजर 41 एंबुलेंस मंगवाई गईं। डॉक्टरों की टीम को टनल के पास तैनात किया गया। चिल्यानीसौड़ में 41 बेड का हॉस्पिटल तैयार करवाया गया।
21 नवंबर: मिली जानकारी के मुताबिक, एंडोस्कोपी के जरिए कैमरा अंदर भेजा गया और फंसे हुए मजदूरों की तस्वीर पहली बार सामने आई। उनसे बात भी की गई। सभी मजदूर ठीक हैं। मजदूरों तक 6 इंच की नई पाइपलाइन के जरिए खाना पहुंचाने में सफलता मिली। ऑगर मशीन से ड्रिलिंग शुरू हुई। तो वहीं केंद्र सरकार की ओर से 3 रेस्क्यू प्लान बताए गए। पहला- ऑगर मशीन के सामने रुकावट नहीं आई तो रेस्क्यू में 2 से 3 दिन लगेंगे। दूसरा- टनल की साइड से खुदाई करके मजदूरों को निकालने में 10-15 दिन लगेंगे। तीसरा- डंडालगांव से टनल खोदने में 35-40 दिन लगेंगे।
21 नवंबर- इस दिन पहली बार टनल के अंदर 6 इंच की पाइप के जरिए एंडोस्कॉपिक कैमरा भेजा गया था। पहली बार 41 मजदूरों को देखा गया। इसी पाइप से मजदूरों को खाना और जरूरी सामान भेजा जा रहा है।
20 नवंबर: इंटरनेशनल टनलिंग एक्सपर्ट ऑर्नल्ड डिक्स ने उत्तरकाशी पहुंचकर सर्वे किया और वर्टिकल ड्रिलिंग के लिए 2 स्पॉट फाइनल किए। मजदूरों को खाना देने के लिए 6 इंच की नई पाइपलाइन डालने में सफलता मिली। ऑगर मशीन के साथ काम कर रहे मजदूरों के रेस्क्यू के लिए रेस्क्यू टनल बनाई गई। BRO ने सिल्क्यारा के पास वर्टिकल ड्रिलिंग के लिए सड़क बनाने का काम पूरा किया।
19 नवंबर: इस दिन सुबह केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी और उत्तराखंड CM पुष्कर धामी उत्तरकाशी पहुंचे, रेस्क्यू ऑपरेशन का निरीक्षण किया और फंसे लोगों के परिजन को आश्वासन दिया और मजदूरों को सेफ निकाल लिए जाने की बात कही. शाम चार बजे सिल्क्यारा एंड से ड्रिलिंग दोबारा शुरू हुई। खाना पहुंचाने के लिए एक और टनल बनाने की शुरुआत हुई। टनल में जहां से मलबा गिरा है, वहां से छोटा रोबोट भेजकर खाना भेजने या रेस्क्यू टनल बनाने का प्लान बना।
18 नवंबर: दिनभर ड्रिलिंग का काम रुका रहा। खाने की कमी से फंसे मजदूरों ने कमजोरी की शिकायत की। तो वहीं PMO के सलाहकार भास्कर खुल्बे और डिप्टी सेक्रेटरी मंगेश घिल्डियाल उत्तरकाशी पहुंचे। पांच जगहों से ड्रिलिंग की योजना बनी।
17 नवंबर: सुबह दो मजदूरों की तबीयत बिगड़ने की खबर सामने आई. इस पर उन्हें दवा दी गई। दोपहर 12 बजे हैवी ऑगर मशीन के रास्ते में पत्थर आने से ड्रिलिंग रुकी रही। मशीन से टनल के अंदर 24 मीटर पाइप डाला गया। नई ऑगर मशीन रात में इंदौर से देहरादून पहुंची, जिसे उत्तरकाशी के लिए भेजा गया। रात में टनल को दूसरी जगह से ऊपर से काटकर फंसे लोगों को निकालने के लिए सर्वे किया गया।
16 नवंबर: मीडिया सूत्रों के मुताबिक, 200 हॉर्स पावर वाली हैवी अमेरिकन ड्रिलिंग मशीन ऑगर का इंस्टॉलेशन पूरा हुआ। शाम 8 बजे से रेस्क्यू ऑपरेशन दोबारा शुरू हुआ। रात में टनल के अंदर 18 मीटर पाइप डाले गए। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने रेस्क्यू ऑपरेशन की रिव्यू मीटिंग की. इस तरह से कार्रवाई आगे जारी रही.
15 नवंबर: इस दिन रेस्क्यू ऑपरेशन के तहत कुछ देर ड्रिल करने के बाद ऑगर मशीन के कुछ पार्ट्स खराब हो गए। इस पर टनल के बाहर मजदूरों के परिजन की पुलिस से झड़प भी हो गई और वे रेस्क्यू ऑपरेशन में देरी के कारण नाराजगी जताने लगे. इस पर PMO के हस्तक्षेप के बाद दिल्ली से एयरफोर्स का हरक्यूलिस विमान हैवी ऑगर मशीन लेकर चिल्यानीसौड़ हेलीपैड पहुंचा। ये पार्ट्स विमान में ही फंस गए, जिन्हें तीन घंटे बाद निकाला जा सका।
14 नवंबर: टनल में लगातार मिट्टी धंसने से नॉर्वे और थाईलैंड के एक्सपर्ट्स से इस सम्बंध में सलाह ली गई। ऑगर ड्रिलिंग मशीन और हाइड्रोलिक जैक को काम में लगाया, लेकिन दूसरी ओर लगातार मलबा आने से 900 एमएम यानी करीब 35 इंच मोटे पाइप डालकर मजदूरों को बाहर निकालने का प्लान बना। इसके लिए ऑगर ड्रिलिंग मशीन और हाइड्रोलिक जैक की मदद ली गई, लेकिन ये मशीनें भी कोई कमाल नहीं दिखा सकीं और असफर हो गईं.
13 नवंबर: इस दिन शाम तक टनल के अंदर से 25 मीटर तक मिट्टी के अंदर पाइप लाइन डाली जाने लगी और दोबारा मलबा आने से 20 मीटर बाद ही काम रोकना पड़ा। तो दूसरी ओर मजदूरों को पाइप के जरिए लगातार ऑक्सीजन और खाना-पानी मुहैया कराया जाना शुरू हुआ।
12 नवंबर: यही वो दिन है जब सुबह 4 बजे टनल में मलबा गिरना शुरू हुआ तो 5.30 बजे तक मेन गेट से 200 मीटर अंदर तक भारी मात्रा में जमा हो गया और मजदूर अंदर फंस गए. फिर टनल से पानी निकालने के लिए बिछाए गए पाइप से ऑक्सीजन, दवा, भोजन और पानी अंदर भेजा जाने लगा। बचाव कार्य में NDRF, ITBP और BRO टीम को लगाया गया। 35 हॉर्स पावर की ऑगर मशीन से 15 मीटर तक मलबा हटाया गया.
मालूम हो कि 12 नवंबर को सिलक्यारा सुरंग का एक हिस्सा धंस जाने से अंदर काम कर रहे 41 मजदूर फंस गए थे. उन्हें निकालने के लिए युद्ध स्तर पर रेस्क्यू ऑपरेशन 12 नवम्बर से ही जारी रहा और 28 नवंबर को सफलता मिली और सभी को सुरक्षित बाहर निकाल लिया गया.
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