MOTHER’S DAY SPECIAL:क, ख, ग, घ तुमसे सीखा, ज्ञ से ज्ञानी तब बन पाया…, एक मसीहा भी रहता है, घर की चार दीवारी में… देखें दिल को छू लेने वाली मां की कविताएं, भेजें अपनों को भी और बनाएं इस दिन को खास
मदर्स डे स्पेशल। पूरा विश्व पूरे जोश के साथ मदर्स डे (मातृ दिवस-MOTHER’S DAY) मना रहा है। सोशल मीडिया पर #mothersday2022 जमकर ट्रेंड हो रहा है। कोई कविता तो कोई शुभकामना संदेश के माध्यम से मां के प्रति अपनी भावनाओं को प्रस्तुत कर रहे हैं। इसी क्रम में भारत के जाने-माने कवियों ने अपनी लेखनी से मां के प्रति अपनी भावनाओं को उकेरा है। इन कविताओं को आप भी अपनों को भेज कर इस दिन को स्पेशल बना सकते हैं।
घर के बाहर से लापता हुई बच्ची का शव गंदे नाले में उतराता दिखा, मां नहीं रहती थी साथ
गजल गायक प्रदीप श्रीवास्तव
माँ ने सिर पर आंचल रखा, तब चैन मिला बीमारी में,
एक मसीहा भी रहता है, घर की चार दीवारी में ।
माँ से ही मिलता गुरु का ज्ञान है,
माँ से महके हर घर का गुलिस्तान है,
बच्चों की हर समस्या का माँ समाधान है,
माँ के सम्मान में सबका सम्मान है।।
कवि मुरली परिहार
सतरंगी सपनों सा बचपन, माँ का राजदुलारा बचपन, तुम बहुत याद आती हो माँ, हर बार मुझे रुलाती हो माँ।
मुझमे था संसार तुम्हारा, जबकी मै भटका करता था, तुम भूखी रह कर जगती थी, मै खा पीकर सो जाता था।
घोर गरीबी और विपन्नता, मैं तो कभी जान न पाया, खुद पीने को पानी न हो, मुझे हमेशा दूध पिलाया।
क, ख, ग , घ तुमसे सीखा, ज्ञ से ज्ञानी तब बन पाया, माँ तुम तो बिलकुल अनपढ़ थी, कैसे तुमने मुझे पढ़ाया।
पढ़ लिख कर विद्वान बना मैं, दुनियादारी मैंने सीखी, रुपया पैसा बहुत कमाया, लोगों से सम्मान भी पाया।
लेकिन माँ तुमसे जो सीखा, उसको मैं दोहरा ना पाया। लेकिन माँ तुमसे जो सीखा, उसको मैं दोहरा ना पाया।
जसप्रीत सिंह कानपुरी
बंद अंखियों में उपकार तेरे,और तूं ही नजर आती है। सोच मेरी बन गयी है तूं, कहां बिसर तूं पाती है।।
थोड़ा थोड़ा पैसा जो जोड़े, हम पर ही तो लुटाती मां। सोच रहा जीवन को अपने, दीया हम पर तूं बाती हैं।
संघर्ष तेरे थे अजब गजब, फिर भी पैसा बचाया था। सुंदर सा एक घरौंदा भी मां,वजह तेरी बन पाया था।।
नही पहने कोई नये नये सूट, न जेवरों संग कोई नाता था। बीस बीस वर्ष तक एक ही सूट, कैसे मन को भाता था।।
छोड़ा न भगवन का द्वार, मेरा हरपल साथ दिया। तेरी दुआओं के सदके ही, प्रभु ने जीत का हाथ दिया।।
मेरा झगड़ना तेरा दुलारना, सच याद बहुत सताती हैं। सोच मेरी बन गयी है तूं, कहां बिसर तूं पाती है।।
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