वैशाखी पूर्णिमा का ब्राह्मण सुदामा से देखें क्या है कनेक्शन, ये दो वस्तुएं दान करने से मिलता है गोदान के समान फल, क्या एक ही हैं भगवान बुद्ध और गौतम बुद्ध, जानें क्या है सही
धर्म-अध्यात्म। वैशाखी पूर्णिमा को हिंदू धर्म में बहुत ही पवित्र तिथि माना गया है। शास्त्रों के अनुसार इस दिन धर्म-कर्म के पुण्य कार्यों को करने की मान्यता बताई गई है। कहते हैं कि वैशाखी पूर्णिमा स्नान लाभ की दृष्टि से अंतिम पर्व है। इस दिन कोई भी मीठी चीज, सत्तू, जलपात्र जैसे मटकी आदि, वस्त्र आदि दान करना चाहिए। इस दिन पितरों का तर्पण करने से पुण्य की प्राप्ति होती है।
सत्य विनायक पूर्णिमा
आचार्य सुशील कृष्ण शास्त्री बताते हैं कि इसे सत्य विनायक पूर्णिमा भी कहा जाता है। भगवान श्रीकृष्ण के बचपन के सहपाठी ब्राह्मण सुदामा जब दरिद्र होने के बाद भगवान श्रीकृष्ण से मिलने के लिए द्वारिका पहुंचे थे, भगवान ने उनको सत्य विनायक व्रत करने का विधान बताया था। इसी व्रत के प्रभाव से सुदामा की सारी दरिद्रता दूर हो गई थी और वह सर्वसम्पन्न, धनवान हो गए थे।
इसी दिन धर्मराज की पूजा करने का विधान भी शास्त्रों में बताया गया है। मान्यता है कि इस दिन व्रत रखकर धर्मराज की पूजा करने से अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता। धर्मराज के निमित्त जल से भरा कलश और पकवान दान करने से गोदान के समान फल की प्राप्ति होती है। पांच या सात ब्राह्मणों को मीठे तिल दान करने से पापों का क्षय हो जाता है। इसी के साथ इस दिन एक समय भोजन
जानें इसे भी
इसी दिन भगवान विष्णु के 23वे अवतार भगवान बुद्ध के रूप में हुआ था। इसी दिन भगवान बुद्ध का निर्वाण हुआ था। उनके अनुयायी इस दिन को बहुत ही धूमधान से मनाते हैं। मान्यता है कि बलि प्रथा की अनावश्यक जीव हिंसा को बंद करने के लिए ही भगवान बुद्ध का अवतार हुआ था। उनकी माता का नाम अंजना था और उनका प्रकट स्थान था ‘गया’ (बिहार), जो कि भारत में है, को माना गया है। अगर इतिहासकारों की मानें तो गौतम बुद्ध और भगवान बुद्ध एक नहीं हैं। शुद्धोदन व माया के पुत्र, शाक्यसिंह बुद्ध और भगवान बुद्ध एक नहीं हैं। श्री शाक्यसिंह बहुत ही ज्ञानी व्यक्ति थे, कठिन तपस्या के बाद जब उन्हें तत्त्वानुभूति हुई तो वे बुद्ध कहलाए। जबकि भगवान बुद्ध विष्णु के अवतार हैं। 1807 में रामपुर से प्रकाशित अमरकोश में श्रीमान एच टी कोलब्रुक ने इस बात को प्रमाणित किया है, जिसके बारे में अक्सर ही तमाम समाचार पत्रों आदि में इसका जिक्र होता रहा है।
श्रीललित विस्तार ग्रंथ के 21 वें अध्याय के 178 पृष्ठ पर बताया गया है कि संयोगवश गौतम बुद्ध जी ने उसी स्थान पर तपस्या की जिस स्थान पर भगवान बुद्ध ने तपस्या की थी। इसी कारण लोगों ने दोनों को एक ही मान लिया। जर्मन के वरिष्ठ स्कालर श्रीमैक्स मुलर के अनुसार शाक्यसिंह बुद्ध अर्थात गौतम बुद्ध, कपिला वस्तु के लुम्बिनी के वनों में 477 बीसी में पैदा हुए थे। गौतम बुद्ध के पिता का नाम शुद्धोदन तथा माता का नाम मायादेवी था। जबकि भगवान बुद्ध की माता का नाम अंजना था और पिता का नाम हेमसदन था व उनकी प्रकट स्थली ‘गया’ है।
इस सम्बंध में एक और तथ्य मिलता है, जिसमें कहा गया है कि श्रीमद् भागवत महापुराण (1.3.24) तथा श्रीनरसिंह पुराण (36/29) के अनुसार भगवान बुद्ध आज से लगभग 5000 साल पहले इस धरातल पर आए थे, जबकि Max Muller के अनुसार गौतम बुद्ध 2491 साल पहले आए थे। अगर इस तथ्य को मानें तो गौतम बुद्ध और भगवान बुद्ध एक नहीं हैं।
DISCLAIMER:यह लेख धार्मिक मान्यताओं व धर्म शास्त्रों पर आधारित है। हम अंधविश्वास को बढ़ावा नहीं देते। पाठक धर्म से जुड़े किसी भी कार्य को करने से पहले अपने पुरोहित या आचार्य से अवश्य परामर्श ले लें। KhabarSting इसकी पुष्टि नहीं करता।)
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