गनगौर पूजा- 4 अप्रैल: पति से छिपाकर करें गनगौर व्रत, प्रसाद भी घर के पुरुषों को न देने की है परम्परा, जाने पूजन सामग्री, पूजन विधि, देखें गनगौर कथा
गनगौर स्पेशल। गनगौर व्रत भारतीय हिंदू स्त्रियों का सबसे प्रिय त्योहार है। इस दिन सुहागिनें व्रत रखती हैं। यह व्रत विवाहिता लड़कियों के लिए पति का अनुराग उत्पन्न करने वाला और कुमारियों को उत्तम पति देने वाला है। इससे सुहागिनों का सुहाग अखण्ड रहता है। यही कारण है कि हिंदू स्त्री समाज में यह दिन एक पर्व के रूप में मनाया जाता है।
बता दें कि होली के दूसरे दिन (चैत्र कृष्ण प्रतिपदा) से कुमारी और विवाहित लड़कियां अर्थात नवविवाहिताएं प्रतिदिन गनगौर पूजती हैं। वे चैत्र शुक्ल द्वितीया (सिंजारे) के दिन किसी नदी, तालाब या सरोवर पर जाकर अपनी पूजी हुई गनगौर को पानी पिलाती हैं। फिर दूसरे दिन सायंकाल के समय उनका विसर्जन कर देती है। गौरी पूजन का यह त्योहार भारत के सभी प्रांतों में थोड़े-बहुत नाम भेद से पूर्ण धूमधाम के साथ मनाया जाता है। राजस्थान का तो यह अत्यंत विशिष्ट त्योहार है। इस दिन भगवान शिव ने पार्वती जी को तथा पार्वती जी ने पूरे स्त्री समाज को सौभाग्य का वरदान दिया था।
पूजन सामग्री, पुरुष न खाएं गनगौर का प्रसाद
इस दिन स्त्रियां सुंदर वस्त्र और आभूषण धारण करती हैं और दोपहर तक व्रत रखती हैं। व्रत धारण करने से पूर्व रेणुका गौरी की स्थापना करती हैं। इसके लिए घर के किसी कमरे में एक पवित्र स्थान पर चौबीस अंगुल चौड़ी और चौबीस अंगुल लम्बी वर्गाकार बेदी बनाकर हल्दी, चंदन, कपूर, केसर आदि से उस पर चौक पूरा जाता है। फिर उस पर बालू से गौरी अर्थात पार्वती बनाकर (स्थापना करके) इस स्थापना पर सुहाग की वस्तुएं, कांच की चूड़ियां, महावर, सिंदूर, रोली, मेंहदी, टीका, बिंदी, कंघा, शीशा, काजल आदि चढ़ाया जाता है। चंदन, अक्षत, धूप, दीप, नैवेद्य आदि से गौरी का विधि पूर्वक पूजन करके सुहाग की इस सामग्री का अर्पण किया जाता है। फिर भोग लगाने के बाद गौरी जी की कथा कही जाती है। कथा के बाद गौरी जी पर चढ़ाए हुए सिंदूर से महिलाएं अपनी मांग भरती हैं। गौरी का पूजन दोपहर को होता है। इसके बाद केवल एक बार भोजन करके व्रत का पारण किया जाता है। गनगौर का प्रसाद पुरुषों को नहीं खाना चाहिए।
शादी के बाद पड़ी पहली गनगौर मायके में मनाती हैं सुहागिनें
गनगौर पर विशेष रूप से मैदी के गुने बनाए जाते हैं। अगर किसी युवती की शादी के बाद पहली गनगौर पड़ती है तो, उसे वह अपने मायके में मनाती है। इसी के साथ गुनों के साथ ही सास के लिए कपड़ों का बायना निकालकर ससुराल भेज देती है। ऐसा केवल शादी के बाद पड़ी पहली गनगौर पर ही होता है। इसके बाद प्रतिवर्ष ससुराल में ही गनगौर की पूजा की जाती है। ससुराल में गनगौर का उद्यापन करने के बाद सास को बायना, कपड़े तथा सुहाग का पूरा सामान दिया जाता है। इसी के साथ सोलह सुहागिन स्त्रियों को श्रंगार का पूरा सामान व दक्षिणा दी जाती है। गनगौर पूजन के समय गौरी जी की कथा भी कही जाती है।
गौरी जी की प्रचलित कथा
नोट: यह लेख धार्मिक मान्यताओं व धर्म शास्त्रों पर आधारित है। हम अंधविश्वास को बढ़ावा नहीं देते। पाठक धर्म से जुड़े किसी भी कार्य को करने से पहले अपने पुरोहित या आचार्य से अवश्य परामर्श ले लें। KhabarSting इसकी पुष्टि नहीं करता।)
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