कामदा एकादशी 12 अप्रैल को, इस दिन न खाएं ये चार चीजें, जानें क्या हैं इस व्रत के पांच लाभ, पढ़ें प्रेमिका की याद करने पर राक्षस बने गंधर्व की रोचक कथा

April 11, 2022 by No Comments

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एकादशी स्पेशल। हर महीने की एक से 30 तारीख के बीच में हिंदू कैलेंडर के अनुसार दो एकादशी पड़ती है, लेकिन चैत्र शुक्ल एकादशी का महत्व अलग होने के कारण ही इसे कामदा एकादशी कहा गया है। इस बार यह एकादशी 12 अप्रैल को पड़ रही है। मान्यता है कि इस दिन भगवान वासुदेव का पूजन करना चाहिए।

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धर्म शास्त्रों की मानें तो एकदशी की सुबह ही स्नान आदि के बाद व्रत का संकल्प लेकर भगवना की विधि-विधान से पूजा करनी चाहिए। इसके बाद भजन-कीर्तन और रात्रि जागरण करने से इस व्रत का विशेष फल प्राप्त होता है। मन एकाग्र कर पूजा व्रत करने से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और भक्तों को पापों से छुटकारा मिलता है। इस दिन उन सभी लोगों को चावल नहीं खाना चाहिए, जो हिंदू धर्म और परम्परा से जुड़े हुए हैं। इसी के साथ जो लोग व्रत करते हैं वो सेंधा नमक भी न खाएं। इसी के साथ अगर ब्रह्मवैवर्त पुराण की मानें तो साबूदाना नहीं खाना चाहिए। इसी के साथ एकादशी को शिम्बी (सेम) भी नहीं खाना चाहिए, इससे पुत्र को हानि पहुंचती है। भारतीय ज्योतिष अनुसन्धान संस्थान के निदेशकआचार्य विनोद कुमार मिश्र बताते हैं कि इस व्रत के पुण्य के समान दूसरा कोई पुण्य नहीं है।

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एकादशी व्रत के लाभ
जो पुण्य सूर्यग्रहण में दान से होता है, उससे कई गुना अधिक पुण्य एकादशी के व्रत से होता है।
जो पुण्य गौ-दान सुवर्ण-दान, अश्वमेघ यज्ञ से होता है, उससे अधिक पुण्य एकादशी के व्रत से होता है ।
एकादशी करने वालों के पितर नीच योनि से मुक्त होते हैं और अपने परिवारवालों पर प्रसन्न रहते हैं। इसलिए यह व्रत करने वालों के घर में सुख-शांति बनी रहती है।
धन-धान्य, पुत्रादि की वृद्धि होती है।
कीर्ति,श्रद्धा-भक्ति बढ़ती है, जिससे जीवन सुखद बीतता है।

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प्रचलित कथा
प्राचीनकाल में भोगीपुर नगर में पुण्डरीक नाम का राजा राज्य करता था। उनका दरबार किन्नरों व गंधर्वों से भरा रहता था, जो गायन व वादन में निपुण थे और राजा के दरबार में उनका गायन वादन होता रहता था। एक दिन पुण्डरीक के दरबार में ललित नाम का गंधर्व गा रहा था, कि उसे प्रियतमा की याद आ गई और उसका ध्यान भंग हो गया। जिसके कारण उसके सुर और ताल बिगड़ गए, जिसे उसके कर्कट नाम के प्रतिद्वंद्वी ने पकड़ लिया और राजा से शिकायत कर दी। इस पर राजा ने ललित को राक्षस बन जाने का श्राप दे दिया।

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इस पर ललित राक्षस बनकर इधर-उधर भटकने लगा। पति की यह हालत देखकर पत्नी ललिता दुखी रहने लगी। वह सोचती रहती कि पति को कैसे श्राप से मुक्ति दिलाए। एक दिन घूमते-घूमते ललिता विन्ध्य पर्वत पर रहने वाले ऋष्यमूक ऋषि के पास जा पहुंची और अपने पति के उद्धार के लिए उपाय पूछा। इस पर ऋषि ने उसे कामदा एकादशी व्रत का महत्व बताते हुए व्रत की विधि भी बताई। इसके बाद वह ऋषि का आशीर्वाद लेकर लौट आई और पूरी श्रद्धा से कामदा एकादशी का व्रत किया, जिसके प्रभाव से उसका पति श्रापमुक्त हो गया और फिर से गंधर्व स्वरूप को प्राप्त कर लिया।

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नोट: यह लेख धार्मिक मान्यताओं व धर्म शास्त्रों पर आधारित है। हम अंधविश्वास को बढ़ावा नहीं देते। पाठक धर्म से जुड़े किसी भी कार्य को करने से पहले अपने पुरोहित या आचार्य से अवश्य परामर्श ले लें। KhabarSting इसकी पुष्टि नहीं करता।)

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