…तो इसलिए लता मंगेशकर हैं देश की धरोहर, देखें वीडियो
लखनऊ। स्वर कोकिला लता मंगेशकर (Lata Mangeshkar,लतादीदी)को इसलिए देश की धरोहर नहीं कहा जाता है कि उन्होंने हजारों गाने गाए, या फिर वह बेहतर गायिका थीं। उनका राजकीय सम्मान और उनके निधन पर दो दिन का राष्ट्रीय शोक सिर्फ इसलिए नहीं किया गया, कि वह कला जगत से जुड़ी एक बड़ी हस्ती थीं। आपको बता दें कि सात दशकों से बेहतरीन गायिका होने के साथ ही देश भक्त भी थीं और महान व्यक्तित्व की धनी भी थीं। भारत के हर एतिहासिक पल पर वह गर्व के साथ उपस्थित रहीं और उस समय देश के युवाओं, नागरिकों और सेना के जवानों का हौसला बढ़ाया था, जब इसकी उनको बहुत जरूरत थी। लता दीदी भारत के हर एतिहासिक पल पर गर्व के साथ मौजूद रहती थीं और देश हित में अपने बयान भी देती थीं, जबकि उनके समय के अन्य कलाकार इससे बचते थे।
इसलिए कहा जाता है देश की धरोहर
1- जब 1962 के युद्ध में भारत, चीन से हार गया था, जिसका जख्म आज भी भारत और भारतीय सेना के सीने में हरा है। इस युद्ध में सैकड़ों भारतीय फौजी शहीद हुए थे और न जाने कितने ही लापता हो गए थे और युद्धबंदी बनाए गए थे। इस हार के बाद भारत में चौतरफा शोक की लहर थी। सैनिकों की याद में दिल्ली में एक श्रद्धांजलि समारोह रखा गया था। इस समारोह का संचालन दिलीप कुमार कर रहे थे। इस कार्यक्रम में लता दीदी को कवि प्रदीप का लिखा हुआ गीत ‘ऐ मेते वतन के लोगों’ गाना था। लता जी ने संगीतकार सी. रामचंद्र के ऑर्केस्ट्रा पर ‘ऐ मेरे वतन के लोगों, जरा आंख में भर लो पानी’ गाना शुरू किया, तो गीत की एक-एक लाइन वहां मौजूद लोगों के दिल में उतरती चली गई और लोग सुबक-सुबक कर रो पड़े। इस गाने ने न केवल उस समय लोगों के जख्म पर मरहम की तरह काम किया था बल्कि युवाओं में दुश्मनों के खिलाफ लड़ने के लिए जोश भी भर दिया था। इस गाने को सुनकर तत्कालीन प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और बाला साहब ठाकरे भी रो पड़े थे। इस गाने की एक-एक पंक्ति को उन्होंने अपनी आवाज से इस कदर सजाया था कि आज भी इस गाने को सुनने के बाद आंखें नम हो जाती हैं। लता दीदी की आवाज ऐसी थी कि उसके दीवाने न केवल युवा बल्कि बच्चे और बूढ़े भी रहे हैं। देश के राष्ट्रीय पर्व 15 अगस्त और 26 जनवरी उनके द्वारा गाए देशभक्ति गीतों के बिना नहीं जा सकता। तत्कालीन समय में हर देशभक्ति गीत में अपनी आवाज का जादू डालकर उन्होंने युवाओं को देश प्रेम करना सीखाया था।
2-जब भारत ने पहली बार क्रिकेट विश्वकप जीता था, तब इस ऐतिहासिक पल पर वह शामिल होने पहुंच गईं थीं। उनके निधन के बाद एक फोटो तेजी से सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है, जिसमें वह कपिल देव के साथ ही प्रधानमंत्री राजीव गांधीं के साथ मौजूद हैं। तत्कालीन समय से लेकर अभी तक, जब तक वह स्वस्थ्य थीं और कहीं आ जा सकती थीं, तब तक वह हमेशा ही भारत के हर एतिहासिक पल पर मौजूद रहीं थीं और देश हित के लिए हमेशा ही बेबाकी से अपनी राय भी रखतीं थीं, जबकि उनके समय के अन्य कलाकार इससे बचते नजर आते थे।
3-लता मंगेशकर ने 1983 वर्ल्ड कप जीत के बाद टीम इंडिया के लिए पैसे तक एकत्र किए थे। उन्होंने एक स्पेशल कॉन्सर्ट किया था, जिससे प्राप्त 20 लाख रुपये को BCCI को सौंप दिया था। कपिल देव (Kapil Dev) की अगुवाई वाली भारतीय क्रिकेट टीम ने जब पहली बार वर्लड कप जीतकर स्वदेश लौटी थी तो BCCI (भारतीय क्रिकेट बोर्ड) के पास पुरस्कार के लिए देने को पैसे नहीं थे। क्योंकि बीसीसीआई उस समय दो से तीन करोड़ के कर्जे में लदा था। ऐसे में लता मंगेशकर उनकी मदद को आगे आईं और स्पेशल कांसर्ट से प्राप्त पूरे पैसे को बीसीसीआई को सौंप दिया था। इसकी जानकारी मीडिया से वर्ल्ड कप में खेलने वाले ऑलराउंडर और सबसे सफल गेंदबाजों में एक कीर्ति आजाद (Kirti Azad) ने दी। उन्होंने बताया कि लता दीदी ने भारत विश्व विजेता गा कर पूरे देश के युवाओं में जोश भर दिया था और इस तरह से लोगों में क्रिकेट को लेकर प्रेम भरा था। इस कॉन्सर्ट से प्राप्त पैसे में से सभी खिलाड़ियों को 1-1 लाख रुपये दिए गए थे। तो वहीं लता मंगेशकर ने इस कॉन्सर्ट के लिए एक रुपया भी चार्ज नहीं किया था। तो ऐसी थीं हमारी लता दीदी।
4-लता दीदी का स्वभाव इतना सरल था कि वह हर एक व्यक्ति व बच्चे से मिलने व बात मानने में भी गुरेज नहीं करती थीं। इस सम्बंध में कीर्ति आजाद ने बताया कि जब वह बीसीसीआई की मदद के लिए कांसर्ट करने वाली थीं तो उनसे उन्होंने आ लग जा गले…गाने के लिए निवेदन किया था। इस पर उन्होंने सबसे पहले यही गाना गाया था, जिससे उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा था।
5-लता दीदी जब भी कोई धार्मिक गाना रिकार्ड करती थीं, तो चप्पल आदि नहीं पहनती थीं। वह न केवल मन बल्कि कर्म से भी धार्मिक थीं। अगर कोई उनके घर जाता तो वह अपने माता-पिता की तस्वीर और घर में बना अपने आराध्य का मंदिर दिखाती थीं। मानों इन्ही में उनकी दुनिया बसती हो या इसे ही वह किसी को दिखाने लायक समझती हों। वह बेहद धार्मिक और दार्शनिक भी थीं। (फोटो सोशल मीडिया से ली गई है)