Kohinoor Diamond: जानें कौन था कोहिनूर हीरे का असली मालिक? किसने रखा था इसका नाम, पढ़ें रोचक इतिहास
Kohinoor Diamond: कोहिनूर हीरे के बारे में और अधिक जानने की जिज्ञासा हर किसी में होती है. इसे दुनिया का सबसे कीमती हीरा माना जाता है. अधिकत इस हीरे को लेकर यही जानकारी हर किसी के पास है कि ये हीरा भारत में पाया गया था और फिर अंग्रेज इसे उठा ले गए थे. ये हीरा अलाउद्धीन खिलजी, बाबर, अकबर, महाराजा रणजीत सिंह के पास भी रहा लेकिन इसका असली मालिक कौन है इसको लेकर हमेशा जवाब गोलमोल ही रहा. इस हीरे को लेकर सबसे खास बात ये है कि न तो इसे कभी बेचा गया और न ही इसे किसी ने खरीदा. बल्कि ये उपहार के तौर पर दिया जाता रहा या फिर जंग में इसे जीत लिया गया. फिलहाल ये हीरा हमेशा से ही चर्चा का विषय रहा है. इसे गर्व का भी प्रतीक माना जाता रहा है. यानी जिसके पास भी ये होता था वह खुद को बहुत ही गौरवशाली मानता था.
पहला मालिक
ये हीरा करीब 800 साल पहले गोलकुंडा के खदान से निकाला गया था. जानकार बताते हैं कि इस हीरे के पहले मालिक काकतिय राजवंश थे. माना जाता है कि काकतिय राजवंश ने इस हीरे को अपनी कुलदेवी भद्रकाली की बांईं आंख में लगाया था. इसके बाद 14वीं शताब्दी में अलाउद्दीन खिलजी ने इस हीरे को काकतिय से लूट लिया था और फिर पानीपत युद्ध में मुगल संस्थापक बाबर ने आगरा और दिल्ली किले को जीतकर इस हीरे पर कब्जा जमा लिया था.
पहली बार इस तरह गया ता भारत के बाहर
फिर ईरानी शासक नादिर शाह ने 1738 में मुगलों पर आक्रमण कर उन्हें हराया और 13वें मुगल बादशाह अहमद शाह से इस हीरे को छीनकर पहली बार भारत के बाहर ले गया. इतिहासकार बताते हैं कि मुगलों से नादिर शाह ने मयूर तख्त भी छीन लिया था. कहा जाता है कि इसी मयूर तख्त पर ही नादिर शाह ने कोहिनूर हीरे को जड़वा दिया था. नादिर शाह के दरबारी लेखक मोहम्मद काजिम मारवी ने इस हीरे बारे में कहा था कि अगर कोई ताकतवर आदमी चारों दिशाओं और ऊपर की ओर पत्थर फेंके और जहां-जहां पत्थर गिरे उस पूरे दायरे को सोने से भर दिया जाए तो भी इसकी कीमत कोहिनूर के बराबर नहीं होगी.
जानें कहां से निकला था ये हीरा
जानकारों के मुताबिक कोहिनूर हीरा आंध्रप्रदेश के गुंटूर जिले में स्थित गोलकुंडा की खदान से करीब 800 साल पहले निकला था. कहा जाता है ये हीरा जमीन से महज 13 फीट की गहराई में मिला था. उस समय से ही इसे दुनिया का सबसे बड़ा हीरा माना गया है. जिसका कुल वजन 186 कैरेट था लेकिन अब इसका कुल वजन 21.2 कैरेट रह गया है. क्योंकि इसे कई बार तराशा गया. जिसके बाद अब इसका मूल रूप 105.6 कैरेट है. बावजूद इसके अभी भी इसे दुनिया का सबसे बड़े तराशे हुए हीरे के रूप में खिताब प्राप्त है.
इस तरह पड़ा इसका नाम
कोहिनूर हीरे का नाम पहली बार नादिर शाह ने रखा था. कोहिनूर का अर्थ होता है‘रोशनी का पहाड़’.नादिर शाह की हत्या के बाद उनके पोते शाहरुख मिर्जा को ये हीरा मिला था. उन्होंने अफगान के शासक अहमद शाह दुर्रानी की मदद से खुश होकर उनको उपहार के रूप में इस हीरे को भेंट में दे दिया था.
इस तरह आया था भारत
इस हीरे की भारत आने की भी बड़ी रोचक कहानी है.1813 में महाराजा रणजीत सिंह ने सूजा शाह से छीनकर इस हीरे को वापस भारत लेकर आए थे. हालांकि इसके बदले रणजीत सिंह ने सूजा शाह को 1.25 लाख रुपए भी दिए थे. नादिर शाह के दरबारी लेखक मोहम्मद काजिम मारवी ने इस हीरे बारे में कहा था कि अगर कोई ताकतवर आदमी चारों दिशाओं और ऊपर की ओर पत्थर फेंके और जहां-जहां पत्थर गिरे उस पूरे दायरे को सोने से भर दिया जाए तो भी इसकी कीमत कोहिनूर के बराबर नहीं होगी.
फिर अंग्रेजों के सिर का बना ताज
और फिर जब भारत पर अंग्रेजों ने शासन कर लिया तो 29 मार्च, 1849 को सिखों और अंग्रेजों के बीच दूसरा युद्ध हुआ. फिर इस युद्ध में सिखों का शासन खत्म हो गया. इसी के बाद महाराजा गुलाब सिंह की अन्य संपत्तियों के साथ ही कोहिनूर हीरा भी क्वीन विक्टोरिया को देना पड़ा. इसके बाद इस हीरे को 1850 में बकिंघम पैलेस में लाकर महारानी विक्टोरिया के सामने प्रस्तुत किया गया था और डच फर्म कोस्टर ने 38 दिनों तक इस हीरे को तराशा फिर रानी के ताज में जड़ दिया गया था और तभी से ये ब्रिटेन में है.