Ramadan: क्या मुस्लिम नौजवानों का टैटू बनवाना सही नहीं है? जानें रोजे के दौरान क्या करें और क्या न करें
March 17, 2025
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Ramadan: मुस्लिम समाज का रमजान का दिन चल रहा है. इस दौरान मुस्लिम समाज के लोग प्रतिदिन रोजा (Roza) यानी पूरे दिन का व्रत रखते हैं. भोर पहर में उठकर सहरी की जाती है तो वहीं दिन डूबने के बाद रोजा इफ्तार किया जाता है. इस दौरान समाज के तमाम लोगों को रोजे के दौरान क्या करना है क्या नहीं, कि जानकारी ठीक से नहीं होती है. इसके लिए कार्यालय आयतुल्लाह अल उज़मा सैयद सादिक़ हुसैनी शिराज़ी की ओर से हेल्प लाइन नम्बर जारी किया गया है.
नीचे दिए गये नम्बरों पर फोन करके रोजे से जुड़े सवालों को मौलाना सैयद सैफ अब्बास नक़वी से पूछ सकते हैं. महिलाओं के लिए अलग हेल्प लाइन शुरू की गई है. महिलाओं के प्रश्नों के उत्तर खातून आलेमा ही देती हैं. इस लिए महिलाएं 6386897124 नम्बर पर सम्पर्क करें. तो वहीं शिया हेल्प लाइन में तमाम मराजए के मुकल्लदीन के दीनी मसायल जानने के लिए सुबह 10 -12 बजे तक 9415580936- 9839097407 इस नम्बर पर संपर्क किया जा सकता है.
यहां कुछ सवालों के जवाब दिए गए हैं
सवाल- अगर कोई रोज़ेदार जानबूझकर या भूल से एक मासूम (अ.स.) का क़ौल दूसरे मासूम (अ.स.) से जोड़कर बयान कर दे तो क्या रोज़ा टूट जाएगा?
जवाब- अगर जानबूझकर यह काम किया जाए, तो एहतियात के तौर पर रोज़ा टूट जाएगा, और अगर भूल से किया हो तो रोज़ा सही है।
सवाल- अगर मरीज़ खुद फैसला न कर सके और रोज़ा रखने या न रखने के सिलसिले में भरोसेमंद डॉक्टर की सलाह पर अमल करना उसकी शरीयत की ज़िम्मेदारी हो, तो क्या उस डॉक्टर का मोमिन या मुसलमान होना ज़रूरी है?
जवाब- डॉक्टर किसी भी मज़हब का हो, उसकी बात पर अमल करना ज़रूरी है।
सवाल- क्या कफ़्फ़ारे के साठ रोज़े लगातार रखने होंगे?
जवाब- अगर किसी व्यक्ति पर कफ़्फ़ारा वाजिब हो जाए तो इकतीस (31) रोज़े लगातार रखना ज़रूरी है, उसके बाद अंतराल कर सकता है।
सवाल- अगर रोज़े की हालत में किसी व्यक्ति की नकसीर फूट जाए और नाक या मुंह से खून निकलने लगे, तो ऐसे में रोज़े का क्या हुक्म है?
जवाब- इससे रोज़े पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा और रोज़ा नहीं टूटेगा।
सवाल- क्या जब कोई व्यक्ति खुम्स या ज़कात निकाले तो उस समय नीयत करना ज़रूरी है?
जवाब- इस्लाम में हर इबादत के लिए नीयत होती है, और जब खुम्स और ज़कात निकालें तो दिल और दिमाग में होना काफी है, ज़बान से कहना ज़रूरी नहीं है।
सवाल-अगर नमाज़ पढ़ने वाला व्यक्ति नमाज़ ख़त्म करने के बाद किसी हिस्से में संदेह करे कि पता नहीं सही पढ़ा कि नहीं या भूल गया तो क्या हुक्म है?
जवाब- नमाज़ी अगर नमाज़ ख़त्म करने के बाद किसी भी हिस्से में संदेह करेगा तो उसकी कोई परवाह नहीं की जाएगी और नमाज़ सही होगी।
सवाल- नमाज़ जुमा जहाँ क़ायम की गई है उससे कितने फ़ासले पर दूसरी नमाज़ जुमा क़ायम की जा सकती है?
जवाब- दूसरी नमाज़ जुमा क़ायम करने के लिए एक फरसख का फ़ासला होना चाहिए जिसको अगर किलोमीटर में हिसाब किया जाए तो लगभग 5 किलोमीटर होगा।
सवाल- नौजवान का टैटू बनवाना कैसा है?
जवाब- मुस्लिम नौजवानों का टैटू बनवाना सही नहीं है उस वक़्त जबकि वुज़ू और गुस्ल में टैटू रुकावट बने यानी वुज़ू और गुस्ल का पानी खाल तक न पहुँचे।
सवाल- अगर कोई व्यक्ति रमज़ानुल मुबारक की पहली तारीख़ को पूरे महीने के रोज़े की नीयत करे और बाद में किसी मजबूरी के कारण उसको एक रोज़ा छोड़ना पड़ जाए तो वह रोज़े का कफ़्फ़ारा देगा?
जवाब- अगर रोज़ेदार ने उज़्र-ए-शरई की बिना पर रोज़ा नहीं रखा तो कफ़्फ़ारा वाजिब नहीं होगा।
सवाल- क्या ज़कात के माल से छात्र को किताबें खरीद कर दी जा सकती हैं?
जवाब-छा़त्र को ज़कात के माल से किताबें खरीद कर देने में कोई हरज नहीं है।
सवाल- अगर कोई गैर-मुस्लिम, जो इफ्तार के महत्व को जानता है, किसी मस्जिद में इफ्तार कराने के लिए कुछ पैसे देता है, तो क्या हुक्म है?
जवाब- अगर कोई गैर-मुस्लिम व्यक्ति मस्जिद में इफ्तार के लिए कुछ पैसे देता है, तो उसे खुशी से स्वीकार करना चाहिए।
सवाल- अगर कोई रोजेदार किसी मृत व्यक्ति को नहलाता है, तो क्या श्गुस्ल-ए-मस्से-मैय्यतश् अनिवार्य होने से रोजा टूट जाएगा?
जवाब-मृत व्यक्ति को नहलाने से रोजा नहीं टूटेगा।
सवाल- अगर कोई महिला हैज़ या नेफास के गुस्ल को भूल जाती है और उसे कई दिनों बाद याद आता है, तो बीच में जो रोजे रखे हैं, उनका क्या हुक्म है?
जवाब-उसके रोजे सही होंगे। और अएनदा के लिए गुस्ल करेगी।
सवाल- अगर कोई रोजेदार जिस पर कफ्फारा वाजिब है, और वह तीनों कफ्फारो (प्रायश्चितों) को अदा करने में असमर्थ है, तो क्या हुक्म है?
जवाब- अगर 60 रोजे रखने की शक्ति न हो और न ही 60 गरीबों को खाना खिलाने की हैसियत हो, न ही एक गुलाम आजाद करने की हैसियत हो, तो इस्तिगफार करें और अपनी हैसियत के अनुसार कुछ दान करें। अलबत्ता, बाद में जब हैसियत पैदा हो जाए, तो एहतियात के तौर पर कफ्फारो को अदा किया जाए।
सवाल- तकलीद के लिए नीयत करना जरूरी है?
जवाब- हर बालिग और समझदार व्यक्ति के ऊपर यह जरूरी है कि वह नीयत करे कि मैं फलां मुजतहिद का तकलीद करता/करती हूँ।
प्रश्न- रोज़े की हालत में दाँत निकलवाने से क्या रोज़ा टूट जाता है?
उत्तर- रोज़ा दाँत निकलवाने से नहीं टूटेगा, लेकिन हर वह काम जिससे इंसान में कमज़ोरी हो, मकरूह है।
प्रश्न- अगर किसी ने बालिग होने के बाद कई वर्षों तक रोज़ा नहीं रखा क्योंकि उसे पता ही नहीं था कि रोज़ा रखना वाजिब होता है, तो ऐसे में क्या हुक्म है?
उत्तर- ऐसे में अपने रोज़ों की कज़ा करेगा लेकिन कफ़्फ़ारा वाजिब नहीं होगा। लेकिन अगर रोज़े का हुक्म मालूम था तो रोज़ों की कज़ा भी करनी होगी और कफ़्फ़ारा भी देना होगा।
प्रश्न- अगर किसी व्यक्ति को रोज़े का कफ़्फ़ारा या रोज़ा न रखने के बदले फ़िदया दिया जाए तो क्या उस व्यक्ति को बताना ज़रूरी है?
उत्तर- उस व्यक्ति को बताना ज़रूरी नहीं है।
प्रश्न- अगर किसी व्यक्ति पर बहुत ज़्यादा रमज़ान के कफ़्फ़ारे हों और फ़िलहाल एक मुश्त भी अदा करने की हैसियत न रखता हो तो क्या किश्तों में अदा कर सकता है?
उत्तर- किश्तों में भी अदा कर सकता है।
प्रश्न-खुम्स सिर्फ़ साल की बची रकम पर अदा किया जाएगा?
उत्तर- खुम्स साल की बची रकम के अलावा वे चीज़ें जो इस्तेमाल नहीं आई हैं, जैसे सूट का पीस, जूता, सेंट, आदि पर भी अनुमान लगाकर खुम्स अदा किया जाएगा।
प्रश्न- अगर कोई व्यक्ति नमाज़ जमात से पढ़ रहा है तो क्या उसको दोहराना ज़रूरी है?
उत्तर- जमात से नमाज़ पढ़ने वाले व्यक्ति के लिए ज़रूरी नहीं है कि वह सूरों की तिलावत करे। अलबत्ता रुकू और सजदे का ज़िक्र और क़ुनूत दोहराना बेहतर है।
सवाल- अगर कोई गैर-मुस्लिम, जो इफ्तार के महत्व को जानता है, किसी मस्जिद में इफ्तार कराने के लिए कुछ पैसे देता है, तो क्या हुक्म है?
जवाब- अगर कोई गैर-मुस्लिम व्यक्ति मस्जिद में इफ्तार के लिए कुछ पैसे देता है, तो उसे खुशी से स्वीकार करना चाहिए।
सवाल- अगर कोई रोजेदार किसी मृत व्यक्ति को नहलाता है, तो क्या श्गुस्ल-ए-मस्से-मैय्यतश् अनिवार्य होने से रोजा टूट जाएगा?
जवाब-मृत व्यक्ति को नहलाने से रोजा नहीं टूटेगा।
सवाल- अगर कोई महिला हैज़ या नेफास के गुस्ल को भूल जाती है और उसे कई दिनों बाद याद आता है, तो बीच में जो रोजे रखे हैं, उनका क्या हुक्म है?
जवाब-उसके रोजे सही होंगे। और अएनदा के लिए गुस्ल करेगी।
सवाल- अगर कोई रोजेदार जिस पर कफ्फारा वाजिब है, और वह तीनों कफ्फारो (प्रायश्चितों) को अदा करने में असमर्थ है, तो क्या हुक्म है?
जवाब- अगर 60 रोजे रखने की शक्ति न हो और न ही 60 गरीबों को खाना खिलाने की हैसियत हो, न ही एक गुलाम आजाद करने की हैसियत हो, तो इस्तिगफार करें और अपनी हैसियत के अनुसार कुछ दान करें। अलबत्ता, बाद में जब हैसियत पैदा हो जाए, तो एहतियात के तौर पर कफ्फारो को अदा किया जाए।
सवाल- तकलीद के लिए नीयत करना जरूरी है?
जवाब- हर बालिग और समझदार व्यक्ति के ऊपर यह जरूरी है कि वह नीयत करे कि मैं फलां मुजतहिद का तकलीद करता/करती हूँ।
सवाल-अगर नमाज़ पढ़ने वाला व्यक्ति नमाज़ ख़त्म करने के बाद किसी हिस्से में संदेह करे कि पता नहीं सही पढ़ा कि नहीं या भूल गया तो क्या हुक्म है?
जवाब- नमाज़ी अगर नमाज़ ख़त्म करने के बाद किसी भी हिस्से में संदेह करेगा तो उसकी कोई परवाह नहीं की जाएगी और नमाज़ सही होगी।
सवाल- नमाज़ जुमा जहाँ क़ायम की गई है उससे कितने फ़ासले पर दूसरी नमाज़ जुमा क़ायम की जा सकती है?
जवाब- दूसरी नमाज़ जुमा क़ायम करने के लिए एक फरसख का फ़ासला होना चाहिए जिसको अगर किलोमीटर में हिसाब किया जाए तो लगभग 5 किलोमीटर होगा।
सवाल- नौजवान का टैटू बनवाना कैसा है?
जवाब- मुस्लिम नौजवानों का टैटू बनवाना सही नहीं है उस वक़्त जबकि वुज़ू और गुस्ल में टैटू रुकावट बने यानी वुज़ू और गुस्ल का पानी खाल तक न पहुँचे।
सवाल- अगर कोई व्यक्ति रमज़ानुल मुबारक की पहली तारीख़ को पूरे महीने के रोज़े की नीयत करे और बाद में किसी मजबूरी के कारण उसको एक रोज़ा छोड़ना पड़ जाए तो वह रोज़े का कफ़्फ़ारा देगा?
जवाब- अगर रोज़ेदार ने उज़्र-ए-शरई की बिना पर रोज़ा नहीं रखा तो कफ़्फ़ारा वाजिब नहीं होगा।
सवाल- क्या ज़कात के माल से छात्र को किताबें खरीद कर दी जा सकती हैं?
जवाब-छा़त्र को ज़कात के माल से किताबें खरीद कर देने में कोई हरज नहीं है।
सवाल- क्या होंठों को जीभ से गीला करके, उस गीलेपन को वापस मुंह में लेने से रोज़ा टूट जाएगा?
जवाब- यदि कोई होंठों को गीला करता है, तो रोज़ा नहीं टूटेगा।
सवाल- क्या उधार दी गई रकम पर खुम्स वाजिब होगा?
जवाब- खुम्स केवल उस रकम पर वाजिब होगा जो आपके पास है, उधार दी गई रकम पर नहीं।
सवाल- क्या नमाज़ पढ़ाने वाले का आगे खड़े होकर नमाज़ पढ़ाना ज़रूरी है, तभी जमात होगी?
जवाब- जमात की नमाज़ के लिए, इमाम का थोड़ा आगे खड़ा होना भी काफी है।
सवाल- रमज़ान में इमाम हसन (अ.स.) की जन्म तिथि और हिजरी वर्ष क्या है?
जवाब- मौला इमाम हसन (अ.स.) का जन्म 15 रमज़ान, 3 हिजरी को मदीना मुनव्वरा में हुआ था।
सवाल- यदि किसी व्यक्ति पर रमज़ान में कई बार कफ्फारा वाजिब हो जाए, तो उसे अदा करने के लिए क्या हुक्म है?
जवाब- जिस व्यक्ति पर कई कफ्फारे वाजिब हों, वह चाहे तो एक साथ अदा कर सकता है, और किश्तों में भी अदा कर सकता है।
सवाल- अगर कोई रोज़ेदार जानबूझकर या भूल से एक मासूम (अ.स.) का क़ौल दूसरे मासूम (अ.स.) से जोड़कर बयान कर दे तो क्या रोज़ा टूट जाएगा?
जवाब- अगर जानबूझकर यह काम किया जाए, तो एहतियात के तौर पर रोज़ा टूट जाएगा, और अगर भूल से किया हो तो रोज़ा सही है।
सवाल- अगर मरीज़ खुद फैसला न कर सके और रोज़ा रखने या न रखने के सिलसिले में भरोसेमंद डॉक्टर की सलाह पर अमल करना उसकी शरीयत की ज़िम्मेदारी हो, तो क्या उस डॉक्टर का मोमिन या मुसलमान होना ज़रूरी है?
जवाब- डॉक्टर किसी भी मज़हब का हो, उसकी बात पर अमल करना ज़रूरी है।
सवाल- क्या कफ़्फ़ारे के साठ रोज़े लगातार रखने होंगे?
जवाब- अगर किसी व्यक्ति पर कफ़्फ़ारा वाजिब हो जाए तो इकतीस (31) रोज़े लगातार रखना ज़रूरी है, उसके बाद अंतराल कर सकता है।
सवाल- अगर रोज़े की हालत में किसी व्यक्ति की नकसीर फूट जाए और नाक या मुंह से खून निकलने लगे, तो ऐसे में रोज़े का क्या हुक्म है?
जवाब- इससे रोज़े पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा और रोज़ा नहीं टूटेगा।
सवाल- क्या जब कोई व्यक्ति खुम्स या ज़कात निकाले तो उस समय नीयत करना ज़रूरी है?
जवाब- इस्लाम में हर इबादत के लिए नीयत होती है, और जब खुम्स और ज़कात निकालें तो दिल और दिमाग में होना काफी है, ज़बान से कहना ज़रूरी नहीं है।