दारोगा साहिब यह भूल गए हैं कि इनको यह तथाकथित “मज़ेदार” पद भी शिक्षकों के कारण ही मिला है।
उन्होंने बताया कि विभाग के लिपिक अथवा लेखाकार द्वारा सम्बन्धित विद्यालयों के कर्मचारियों के माध्यम से अथवा शिक्षक/शिक्षिकाओं को स्वंय फोन कर घूसखोरी की बात की जाती है.