Yogini Ekadashi: योगिनी एकादशी पर विधि से करें पूजा, जानें क्या होते हैं एकादशी व्रत के 6 लाभ? पढ़ें कथा

June 11, 2023 by No Comments

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Yogini Ekadashi: आषाढ़ कृष्ण पक्ष की एकादशी को योगिनी एकादशी कहते हैं। आचार्य सुशील कृष्ण शास्त्री बताते हैं कि इस दिन भगवान नारायण की पूजा का विधान बताया गया है। भगवान विष्णु को ही नारायण कहते हैं। मान्यता है कि भगवान नारायण की पूजा करें तो माता लक्ष्मी खुद ही खुश हो जाती हैं और अपने भक्तों पर धन की वर्षा करती हैं. इस दिन चावल के साथ ही साबुदाना नहीं खाना चाहिए।

इस तरह करें पूजन
आचार्य विनोद कुमार मिश्र बताते हैं कि इस दिन व्रती को चाहिए कि भगवान नारायण की मूर्ती को स्नान कराके भोग लगाते हुए पुष्प, धूप, दीप से आरती उतारनी चाहिए। अन्य एकादशियों के समान ही भगवान विष्णु अथवा उनके लक्ष्मीनारायण रूप की पूजा-अर्चना और दान आदि की क्रियाएं करें। इस दिन गरीब ब्राह्मणों को दान देना परम श्रेयस्कर है। इस एकादशी का व्रत करने से सम्पूर्ण पाप नष्ट हो जाते हैं। इसी के साथ इस व्रत को करने से पीपल वृक्ष काटने जैसा पाप तक से मुक्ति मिल जाती है। साथ ही किसी के श्राप का निवारण भी हो जाता है। इस व्रत को करने से व्रती इस लोक में सुख भोगकर अंत में मोक्ष प्राप्त कर स्वर्गलोक की प्राप्ति करता है। यह एकादशी देह की समस्त आधि-व्याधियों को नष्ट कर सुंदर रूप, गुण और यश देने वाली हैं।

एकादशी व्रत के लाभ

एकादशी व्रत के पुण्य के समान और दूसरा कोई पुण्य शास्त्रों में नहीं बताया गया है।
जो पुण्य सूर्यग्रहण में दान से होता है, उससे कई गुना अधिक पुण्य एकादशी के व्रत से होता है।
जो पुण्य गौ-दान सुवर्ण-दान, अश्वमेघ यज्ञ से होता है, उससे अधिक पुण्य एकादशी के व्रत से होता है।
एकादशी करने वालों के पितर नीच योनि से मुक्त हो जाते हैं और अपने परिवारवालों पर प्रसन्नता बरसाते हैं। इसलिए यह व्रत करने वालों के घर में सुख-शांति बनी रहती है।
धन-धान्य, पुत्रादि की वृद्धि होती है।
कीर्ति बढ़ती है, श्रद्धा-भक्ति बढ़ती है, जिससे जीवन रसमय बनता है।

कथा
इस एकादशी को लेकर एक कथा प्रचलित है। प्राचीनकाल में अलकापुरी में राजा कुबेर के घर पर हेमू नाम का एक माली रहता था। उसका कार्य प्रतिदिन मानसरोवर से फूल लाना था, जिससे भगवान शंकर की पूजा की जाती थी। एक दिन वह अपनी पत्नी के साथ था। इस कारण उसे फूल लाने में देरी हो गई। वह दरबार में देर से पहुंचा। इससे अप्रसन्न होकर कुबेर ने माली को कोढ़ी होने का श्राप दे दिया। इस पर माली कोढ़ी हो गया और इधर-उधर भटकने लगा। एक दिन वह दैवयोग से मार्कण्डेय ऋषि के आश्रम में जा पहुंचा। ऋषि ने अपने योगबल से उसके कोढ़ी होने का कारण जान लिया। इस पर ऋषि ने उसे योगिनी एकादशी का व्रत करने की सलाह दी। इस पर माली यह व्रत करने लगा। इसके बाद कुछ ही समय में माली कोढ़ से मुक्त हो गया और दिव्य शरीर धारण कर स्वर्ग लोक चला गया।

DISCLAIMER:यह लेख धार्मिक मान्यताओं व धर्म शास्त्रों पर आधारित है। हम अंधविश्वास को बढ़ावा नहीं देते। पाठक धर्म से जुड़े किसी भी कार्य को करने से पहले अपने पुरोहित या आचार्य से अवश्य परामर्श ले लें। KhabarSting इसकी पुष्टि नहीं करता।)