CHAITRA NAVRATRI-2022: शोहरत पाने के लिए चतुर्थ मां कुष्मांडा को चढ़ाएं मालपुआ, कन्याओं को उपहार में दें कोल्ड क्रीम, देखें आरती व मंत्र
नवरात्र स्पेशल। नवरात्र की चतुर्थ अर्थात चौथे दिन मां शक्ति के चौथे स्वरूप कुष्मांडा की पूजा करने का विधान शास्त्रों में वर्णित है। आचार्य सुशील कृष्ण शास्त्री बताते हैं कि धर्म ग्रंथों की मानें तो जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था और चारो ओर अंधकार था, तब माँ ने महा शून्य में अपने मंद हास से उजाला करते हुए अंड की उत्पत्ति की थी, इसी बीज रूप में ब्रह्म तत्व के मिलने से ब्रह्मांड का निर्माण हुआ। यही माँ का अजन्मा और आदि शक्ति का रूप है।

मान्यता है कि जीवों में माँ का स्थान अनाहत चक्र में माना गया है। नवरात्र की चतुर्थी पर योगीजन इसी चक्र में अपना ध्यान लगाकर मां की आराधना करते हैं और शक्ति प्राप्त करते हैं। माँ का निवास स्थान सूर्य लोक में माना गया है, जहां निवास करने की क्षमता और शक्ति केवल माँ कुष्मांडा में ही मानी गई है। माँ के स्वरूप की कांति और तेज मंडल भी सूर्य के समान ही अतुलनीय है। माँ का तेज़ व प्रकाश दसों दिशाओं के साथ ही ब्रह्मांड के चराचर में भी व्याप्त रहता है।

ऐसी है मां कुष्मांडा की छवि
आचार्य पुष्पलता पाण्डेय बताती हैं कि अगर मां की छवि का वर्णन करें तो माँ की अष्टभुजा है। उनके हाथों में क्रमशः कमंडल, धनुष बाण, कमल का फूल, अमृत कलश, चक्र तथा गदा है स्थापित है। जबकि आठवें हाथ में सर्व सिद्धि और सर्वनिधि देने वाली जपमाला है। मां का वाहन बाघ है। उनकी उपासना करने से गम्भीर से गम्भीर रोगों से भी मुक्ति मिल जाती है। साथ ही भक्तों के सभी कष्ट दूर होते हैं।

कन्याओं को दें उपहार
नवरात्र की चतुर्थी पर पवित्र और शांत मन से मां कूष्मांडा की उपासना पूरी विधि-विधान से करनी चाहिए। ऐसी मान्यता है कि मां कुष्मांडा को लाल गुलाब अति प्रिय है। यह फूल चढ़ाने से माँ रोगों से निजात तो दिलाती ही हैं साथ ही दीर्घआयु भी देती हैं। अगर आप प्रसिद्धि व शोहरत पाना चाहते हैं तो माता को मालपुए का भोग लगाएं। इस उपाय से बुद्धि कुशाग्र होती है। यह प्रसाद मां को अर्पित करने के बाद खुद भी ग्रहण करें और दूसरों को दान भी करें। इस दिन कन्याओं को मिठाई, कोल्ड क्रीम आदि भेंट करना शुभ माना गया है। बता दें कि देवी कुष्मांडा की पूजा करने से पहले हाथों में फूल लेकर देवी को प्रणाम कर इस मंत्र का जाप करें। ध्यान रहे कि माता की पूजा करने के दौरान मन में किसी तरह का छल-कपट न हो और मन एकाग्र हो। अर्थात शरीर व मन, दोनों ही शुद्ध होता है, तभी मां की कृपा भक्तों पर होती है।
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मंत्र
सुरा सम्पूर्ण कलशं रुधिराप्लुतमेव च
दधानाहस्तपद्याभ्यां कुष्मांडा शुभदास्तु मे
आरती
कुष्मांडा जय जग सुखदानी।
मुझ पर दया करो महारानी ।।
पिंगला ज्वालामुखी निराली ।
शाकंबरी मां भोली भाली ।।
लाखों नाम निराले तेरे।
भक्त कई मतवाले तेरे ।।
भीमा पर्वत पर है डेरा ।
स्वीकारो प्राणम ये मेरा ।।
सब की सुनती हो जगदंबे।
सुख पहुंचाती हो माँ अंबे ।।
तेरे दर्शन का मै प्यासा ।
पूर्ण कर दो मेरी आशा।।
मां के मन में ममता भारी।
क्यों न सुनेगी अरज हमारी।।
तेरे दर पर किया है डेरा।
दूर करो मां संकट मेरा।।
मेरे कारज पूरे कर दो।
मेरे तुम भंडारे भर दो।।
तेरा दास तुझे ही ध्याय।
भक्त तेरे दर शीश झुकाये।।
नोट: यह लेख धार्मिक मान्यताओं व धर्म शास्त्रों पर आधारित है। हम अंधविश्वास को बढ़ावा नहीं देते। पाठक धर्म से जुड़े किसी भी कार्य को करने से पहले अपने पुरोहित या आचार्य से अवश्य परामर्श ले लें। KhabarSting इसकी पुष्टि नहीं करता।)