अगर कन्या का विवाह नहीं हो रहा है तो महाशिवरात्रि पर करें ये उपाए, जानें विवाह के दिन शिव जी ने ससुरालवालों को क्यों बता दिया था खुद को ही स्वंय का परदादा
महाशिवरात्रि विशेष। इस बार महाशिवरात्रि एक मार्च दिन मंगलवार को पड़ रही है। ज्योतिषाचार्यों की मानें तो इस दिन सुख, सुविधा व सम्पन्नता के लिए किए गए उपायों का पूरा फल मिलता है। आचार्य विनोद मिश्र कहते हैं कि गौरीशंकर रुद्राक्ष शिव-पार्वती का स्वरूप है। परिवार की सुख-शांति के लिए इसे महाशिवरात्रि के दिन धारण करना चाहिए।

आचार्य सुशील कृष्ण शास्त्री बताते हैं कि अगर किसी घर की कन्या का विवाह नहीं हो रहा है और तमाम अड़चनें आ रही हैं तो महाशिवरात्रि के दिन विवाह की इच्छुक कन्या के हाथों से किसी गरीब लड़की को पीली साड़ी और बेसन के लड्डू दिलाएं। पूरे मन और श्रद्धा से ये विधि करने से साल भर के भीतर ही विवाह का योग बनेगा और मनचाहा वर भी मिलेगा, लेकिन ध्यान रखें कि ये कार्य पूरे मन व एकाग्रता से किया गया हो, मन में किसी तरह का नकारात्मक भाव न हो।
हिंदु मान्यता है कि महाशिवरात्रि के दिन महादेव की आराधना से भाग्य बदल जाता है। शास्त्रों में कहा गया है कि भावी मेट सकहिं त्रिपुरारि। अर्थात अगर जीवन में ग्रहों या प्रारब्ध के कारण कुछ भी न हो पा रहा हो तो महाशिवरात्रि के दिन शिव-पार्वती उपासना करके ग्रहों की चाल को बदला जा सकता है।
भारतीय ज्योतिष की मानें तो अगर किसी को अपनी ग्रह दशा की जानकारी ही न हो तो भी वह महाशिवरात्रि के दिन शिव जी पर नाग-नागिन का चांदी का जोड़ा चढ़ा दे तो भगवान शिव की कृपा से उसके सभी कष्ट दूर हो जाते हैं।

कथा
विवाह के समय जब भगवान शंकर से उनका नाम और उनके पूर्वजों के बारे में पूछा गया तो उन्होंने अपना नाम शिव बताया, तो वहीं ब्रह्मा जी ने स्वयं को उनका पिता बता दिया। इस पर भी कन्या पक्ष की जिज्ञासा शांत नहीं हुई और शिव जी के दादा जी का नाम पूछा तो भगवान शिव ने जवाब देते हुए कहा कि इस सृष्टि का पालन करने वाले भगवान विष्णु ही मेरे दादा जी हैं। इस पर कन्या पक्ष उनके परदादा के बारे में पूछ बैठ तो शिव जी की जोर से हंसी फूटी। फिर उन्होंने बड़े ही प्रेम से कहा कि, सभी के परदादा तो वह स्वयं हैं। ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव को आदिदेव देवाधिदेव अर्थात सभी देवों का देव कहा गया है।
भगवान शिव को उत्तम पति और माता पार्वती को आदर्श नारी के रूप में पूजा जाता है। ऐसी मान्यता है कि शिव और शक्ति की समन्वित ऊर्जा महाशिवरात्रि पर भक्तों का कल्याण करती है। मानव शरीर के अंदर शिव और शक्ति, दोनों की तत्व मौजूद हैं। इनको एकाकार करने के लिए महाशिवरात्रि पर ध्यान, पूजन, उपासना और व्रत करना अनिवार्य है। महाशिवरात्रि के दिन प्राकृतिक ऊर्जा भक्त के मन को सही दिशा में ले जाती है। शुभ संयोग पर साधना, उपासना करने से रोग-शोक की निवृत्ति होती है।

त्योहार मात्र नहीं है महाशिवरात्रि
पुराणों की मानें तो महाशिवरात्रि कोई त्योहार मात्र नहीं है। यह सौभाग्यवर्द्धक विशिष्ट महापर्व है। ऐसी मान्यता है कि सृष्टि के प्रारम्भ में भगवान शिव का केवल निराकार रूप था। धर्मशास्त्रों की मानें तो फाल्गुन मास कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी की मध्यरात्रि में भगवान शिव निराकार से साकार रूप में आए थे। मान्यता है कि भगवान शिव इस दिन करोड़ों सूर्य के समान तेजस्वी अग्नि लिंग रूप में प्रकट हुए थे। बता दें कि फाल्गुन मास कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को सूर्य, चंद्रमा अधिक नजदीक रहते हैं। अमावस्या के दिन सूर्य और चंद्रमा का मिलन होता है। इस तरह शीतल चंद्रमा और रौद्र रूपी सूर्य का मिलन प्राकृतिक ऊर्जाओं को संतुलित करता है। मान्यता है कि महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव बुरी शक्तियों का संहार करते हैं। फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को शिव-पार्वती के विवाह का दिन भा माना जाता है।
शिवरात्रि और महाशिवरात्रि में अंतर
वैसे तो शिवरात्रि प्रत्येक महीने पड़ती है, जिसका अर्थ है शिव की रात्रि, लेकिन महाशिवरात्रि साल में एक बार ही आती है। हिंदू पंचांग की मानें तो प्रत्येक माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को शिवरात्रि मनाई जाती है और जब फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी आती है तो उसे महाशिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है, क्योंकि इसी दिन भगवान शिव का विवाह माता पार्वती से हुआ था। इस दिन किया गया व्रत सभी व्रतों में अत्यधिक कल्याणकारी और उत्तम माना गया है। कहते हैं जैसे गंगा के समान कोई तीर्थ नहीं, ठीक उसी तरह भगवान शिव के समान कोई देवता नहीं और महाशिवरात्रि से बढ़कर कोई दूसरा व्रत एवं तप नहीं।
नोट: यह लेख धार्मिक मान्यताओं व धर्म शास्त्रों पर आधारित है। हम अंधविश्वास को बढ़ावा नहीं देते। पाठक धर्म से जुड़े किसी भी कार्य को करने से पहले अपने पुरोहित या आचार्य से अवश्य परामर्श ले लें। KhabarSting इसकी पुष्टि नहीं करता।)
ये खबरें भी पढ़ें-