VAT SAVITRI VRAT: वट सावित्री व्रत की पढ़ें पूजा विधि और कथा
VAT SAVITRI VRAT: प्रत्येक वर्ष ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या को वट सावित्री व्रत की पूजा की जाती है। यह व्रत सुहागिनें अपने पति की दीर्घायु के लिए करती हैं। बता दें कि वट सावित्री व्रत सौभाग्यवती स्त्रियों का प्रमुख पर्व है। इस व्रत को कुवांरी लड़कियां भी सुयोग्य वर की चाहत के लिए कर सकती हैं। इस व्रत को करने का विधान शास्त्रों में त्रयोदशी के लेकर अमावस्या तक है।
हालांकि इस व्रत को अमावस्या को ही करने का विधान चला आ रहा है। इस दिन बरगद के पेड़ की विधि-विधान से पूजा करने का विधान शास्त्रों में बताया गया है। इस दिन सत्यवान-सावित्री की यमराज सहित पूजा की जाती है। मान्यता है कि यह व्रत रखने वाली स्त्रियों का सुहाग अटल रहता है। इस दिन सावित्री-सत्यवान की कथा सुननी चाहिए। मान्यता है कि सावित्री ने अपने मृत पति का जीवन यमराज के छीन लिया था और अपने पति को जीवित कराया था।
देखें व्रत की विधि
आचार्य सुशील कृष्ण शास्त्री के मुताबिक, सुहागिनों को चाहिए कि इस दिन प्रात:काल बालों को धोकर स्वच्छ जल से स्नान करें। तत्पश्चात बांस की टोकरी में रेत भरकर ब्रह्मा की मूर्ति की स्थापना करें। ब्राह्मा के वाम पार्श्व में सावित्री की मूर्ति स्थापित करें। इसी तरह से दूसरी टोकरी में सावित्री और सत्यवान की मूर्तियों की स्थापना करें। इसके बाद टोकरियों को वट वृक्ष के नीचे ले जाकर रख दें। ब्रह्मा और सावित्री के पूजन के बाद सावित्री तथा सत्यवान की पूजा करें।
इसके बाद वट वृक्ष में जल दें। जल, मौली रोली, कच्चा सूत, भिगोया हुआ चना, गुड़, फूल तथा धूप-दीप से वट वृक्ष की पूजा करें। जल से वट वृक्ष को सींच कर उसके तने के चारो ओर कच्चा धागा लपेटकर तीन बार परिक्रमा करनी चाहिए। इसके बाद वट वृक्ष के पत्तों के गहने पहनकर वट सावित्री की कथा सुनना चाहिए। तत्पश्चात भीगे हुए चने का बायना निकाल कर, उस पर रुपए रखकर सास के चरण छू कर आशिर्वाद लेना चाहिए। अगर सास दूर रहती हों तो उनको बायना बनाकर भेज देना चाहिए। बता दें कि धार्मिक पुस्तकों में वट सावित्री व्रत की पूजा के दिन से प्रतिदिन पान, सिंदूर तथा कुमकुम से सुवासिनी स्त्री के पूजना का भी विधान बताया गया है। पूजा समाप्त होने पर ब्राह्मणों को वस्त्र तथा फल आदि वस्तुएं बांस के पात्र में रखकर दान करने का भी विधान बताया गया है। हालांकि महिलाओं को व्रत व पूजन उसी अनुसार करना चाहिए, जैसे उनके घर में पूर्वजों से पूजा व व्रत का विधान चला आ रहा है।
पढ़ें कथा
DISCLAIMER:यह लेख धार्मिक मान्यताओं व धर्म शास्त्रों पर आधारित है। हम अंधविश्वास को बढ़ावा नहीं देते। पाठक धर्म से जुड़े किसी भी कार्य को करने से पहले अपने पुरोहित या आचार्य से अवश्य परामर्श ले लें। KhabarSting इसकी पुष्टि नहीं करता।)