Dev Uthani Ekadashi Katha: अकाल-मृत्यु से बचने के लिए देव उठनी एकादशी पर शाम को करें ये काम; पढ़ें कथा
Dev Uthani Ekadashi Katha: प्रत्येक वर्ष कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवउठनी एकादशी (Dev Uthani Ekadashi) के रूप में मनाई जाती है. इसे हरिप्रबोधिनी व देव प्रबोधिनी (Dev Prabodhini Ekadashi) एकादशी के साथ ही देवोत्थान एकादशी भी कहा जाता है. मान्यता है कि इसी दिन से चतुर्मास समाप्त हो जाता है और चार महीने से क्षीर सागर में सो रहे भगवान विष्णु (Lord Vishnu) उठते हैं और इसी दिन के बाद से सनातन धर्म को मानने वालों के घरों में शुभ व मांगलिक कार्य-विवाह आदि शुरू हो जाते है। इस बार देव उठनी एकादशी 12 नवम्बर यानी कल है.
आचार्य सुशील कृष्ण शास्त्री बताते हैं कि अगर अकाल मृत्यु से रक्षा चाहिए तो देवोत्थानी एकादशी के दिन संध्या के समय कपूर से आरती करें. ऐसा करने से आजीवन अकाल-मृत्यु से रक्षा होती है. एक्सीडेंट, आदि उत्पातों से रक्षा होती हैं. इसके अलावा आम दिनों में भी शाम को कपूर से आरती करना चाहिए. कपूर से आरती करने से पहले, अक्षत रखें और जिस देवता की आरती कर रहे हैं, उनका ध्यान करें. इसके बाद, कपूर को अक्षत के ऊपर रखकर जलाएं. कहा जाता है कि कपूर जलाने से पूजा में भगवान जल्दी प्रसन्न होते हैं और भक्तों की इच्छा पूरी करते हैं.
मान्यता है कि कपूर की आरती से घर में सकारात्मकता आती है और नकारात्मकता दूर होती है. कपूर की सुगंध से हमारा शरीर भी पवित्र होता है और दोष मुक्त होता है. तो वहीं कपूर जलाने से बुरी नज़र का असर भी कम होता है और रिश्तों में मधुरता बनी रहती है. कपूर को घर में आरती के तौर पर जलाने से घर में वास्तु दोष और पितृ दोष दूर होता है.
प्रचलित कथा
आचार्य सुशील कृष्ण शास्त्री बताते हैं कि देवउठनी एकादशी को लेकर एक पौराणिक कथा प्रचलित है। ऐसी मान्यता है कि भगवान नारायण जी (विष्णु जी) से एक दिन लक्ष्मी जी ने कहा कि हे नाथ, आप दिन-रात जागा करते हैं और अगर सो जाते हैं तो लाखों-करोड़ों वर्ष तक के लिए सो जाते हैं। इसी के साथ उस समय सभी चराचर का नाश भी कर डालते हैं। इसलिए आप प्रतिवर्ष नियम से सोया करें। इससे मुझे भी कुछ समय के लिए विश्राम करने का समय मिल जाएगा। यह बात सुनकर नारायण जी मुस्कुराए और बोले कि देवी तुमने ठीक कहा। मेरे जागने से सभी देवों, खासकर तुम्हें भी कष्ट होता है। मेरी सेवा से जरा भी अवकाश तुम्हें नहीं मिलता। इसलिए तुम्हारे कहने पर मैं प्रतिवर्ष चार महीने वर्षा ऋतु के समय शयन करुंगा उस समय तुमको और देवगणों को अवकाश होगा। मेरी यह निद्रा अल्पनिद्रा और प्रलयकालीन महानिद्रा कहलाएगी। भक्तों को मेरी यह निद्रा मंगलकारी होगी। इस दौरान जो भक्त मेरे शयन की भावना कर मेरी सेवा करेंगे मैं उनके घर में निवास करुंगा।
DISCLAIMER:यह लेख धार्मिक मान्यताओं व धर्म शास्त्रों पर आधारित है। हम अंधविश्वास को बढ़ावा नहीं देते। किसी भी धार्मिक कार्य को करते वक्त मन को एकाग्र अवश्य रखें। पाठक धर्म से जुड़े किसी भी कार्य को करने से पहले अपने पुरोहित या आचार्य से अवश्य परामर्श ले लें। KhabarSting इसकी पुष्टि नहीं करता।)
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