अब लगेगी सुई…लेकिन आप नहीं करेंगे उई उई उई…IIT बॉम्बे ने किया कमाल

December 27, 2024 by No Comments

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IIT Bombay News: अक्सर देखा जाता है कि अधिकांश बच्चे ही नहीं बल्कि बड़े भी डॉक्टर के पास इसलिए जाने से बचते हैं क्योंकि वो सुई लगा देगा. सबसे ज्यादा तो हालत बच्चों के साथ ही उनके माता-पिता की उस वक्त खराब हो जाती है जब बच्चों को टीका लगता है. बच्चे दर्द की वजह से रो-रो कर बुरा हाल कर देते हैं लेकिन अब भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) बॉम्बे के शोधकर्ताओं का धन्यवाद कहिए क्योंकि इन्होंने एक शॉकवेव आधारित सुई रहित सिरिंज विकसित की है। जो त्वचा को कम नुकसान पहुंचाते हुए दर्द रहित और सुरक्षित दवा शरीर में पहुंचाने का काम करती है.

ये तो सभी जानते हैं कि सुई की डर की वजह से छोटे से लेकर बड़े तक टीका लगवाने से डरते हैं लेकिन शॉक सिरिंज सुई से घबराने वालो के लिए काफी मददगार साबित हो सकती है. खासतौर पर शॉक सिरिंज उन रोगियों के लिए अधिक फायदेमंद हो सकता है जिन्हें मधुमेह है और उनको बार-बार इंसुलिन इंजेक्शन की आवश्यकता पड़ती है.

फिलहाल चूहों पर किए गए परीक्षण और से पता चला कि शॉक सिरिंज ने चूहे की त्वचा को सिरिंज की तुलना में कम नुकसान पहुंचाया। चूंकि शॉक सिरिंज कम सूजन पैदा करती हैं, इसलिए वह इंजेक्शन स्थल पर घाव को बहुत तेजी से ठीक करने में भी मदद करती है. इसी के साथ ही शोधकर्ताओं ने शॉक सिरिंज को कई ड्रग डिलीवरी शॉट्स (जैसे, 1,000 से अधिक शॉट्स का परीक्षण) के लिए भी डिज़ाइन किया है जो काफी भरोसेमंद है और इसकी लागत भी कम है.

बता दें कि टीम का जर्नल ऑफ बायोमेडिकल मैटेरियल्स एंड डिवाइसेस में अध्ययन प्रकाशित हुआ है। सोशल मीडिया पर वायरल खबरों के मुताबिक, आईआईटी बॉम्बे में एयरोस्पेस इंजीनियरिंग विभाग की टीम ने शॉक सिरिंज के बारे में बताया कि यह उच्च-ऊर्जा दबाव तरंगों (शॉक वेव्स) का उपयोग करती है. इसकी खास बात ये है कि ये त्वचा को ध्वनि की गति से भी तेज गति से भेदती हुई आगे बढ़ती है. सुई वाली सिरिंज के विपरीत, शॉक सिरिंज त्वचा में चुभती नहीं है।

शोधार्थी और प्रमुख लेखिका प्रियंका हंकारे का एक बयान सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है जिसमें वह इस नई सिरिंज की खासियत के बारे में जानकारी दी है. उन्होंने बताया है कि शॉक सिरिंज को इस तरह से डिजाइन किया गया है कि वह दवा को तेजी से पहुंचाने का काम करती है. अगर प्रतिदिन सिरिंज को बहुत तेजी से या अत्यधिक बल के साथ डाला जाए, तो इससे त्वचा या अंतर्निहित ऊतकों को अनावश्यक तरीके से चोट पहुंच सकता है। वह कहती हैं कि ऊतक यानी टिशू क्षति को कम करने और लगातार और सटीक दवा वितरण सुनिश्चित करने के लिए शॉक सिरिंज में दबाव की लगातार निगरानी की जाती है और “टिशू सिमुलेंट्स (उदाहरण- सिंथेटिक त्वचा) पर हार्ड परीक्षण जेट इंसर्शन के बल और गति को कैलिब्रेट करने में मदद करता है, जिससे सुरक्षा और आराम सुनिश्चित होता है।

इसलिए नहीं होगा दर्द

प्रियंका हंकारे ने अपने बयान में आगे बताया है कि इसकी नोजल डिजाइन को केवल 125 माइक्रोन (करीब एक मानव बाल की चौड़ाई) तक ही रखा है जो कि दर्द कम करने में सहायक है.

चूहों पर किया गया परीक्षण

शॉक सिरिंज कितनी अच्छी तरह से काम करती है इसको लेकर टीम ने तीन अलग-अलग परीक्षण किए जिसमें उन्होंने चूहों में तीन अलग-अलग प्रकार की दवाओं को इंजेक्ट यानी डाला गया. जब परीक्षणों के लिए चूहों की त्वचा के माध्यम से एक एनेस्थेटिक (केटामाइन-जाइलाजिन) इंजेक्ट किया गया, तो शॉक सिरिंज ने सुइयों के समान ही प्रभाव प्राप्त किया. दोनों मामलों में इंजेक्शन के तीन से पांच मिनट बाद एनेस्थेटिक प्रभाव शुरू हुआ और 20-30 मिनट तक चला लेकिन इससे पहले हाई परफॉर्मेंस लिक्विड क्रोमैटोग्राफी (एचपीएलसी) विधि का उपयोग करके शरीर में दवा को प्रवेश कराया गया और अवशोषण की निगरानी के लिए रक्त और ऊतकों में दवा के स्तर को मापा गया।

परीक्षण में किया बेहतर प्रदर्शन

फिलहाल परीक्षण के दौरान पाया गया कि शॉक सिरिंज ने नियमित सुइयों से बेहतर प्रदर्शन किया है। जब मधुमेह के चूहों को इंसुलिन दिया गया, तो शोधकर्ताओं ने पाया कि सुई की तुलना में शॉक सिरिंज का उपयोग करने पर रक्त शर्करा का स्तर प्रभावी रूप से कम हो गया और लंबे समय तक निचले स्तर पर बना रहा। तो वहीं चूहे की त्वचा के नमूनों से पता चला कि शॉक सिरिंज ने सुई की डिलीवरी की तुलना में त्वचा की परतों में अधिक गहराई तक टेर्बिनाफाइन जमा किया।

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