Lucknow University: छात्रा शिवांगी दुबे को मिली लॉरा बासी छात्रवृत्ति, मिलेगी इतनी धनराशि; ट्रिपल-नेगेटिव ब्रेस्ट कैंसर पर कर रही हैं शोध कार्य
Lucknow University: लखनऊ विश्वविद्यालय के जैवरसायन विभाग की पीएचडी स्कॉलर शिवांगी दुबे को लॉरा बासी छात्रवृत्ति शीतकालीन 2024 सत्र पुरस्कार के लिए चुना गया है। पुरस्कार स्वरूप उन्हें एक हजार अमरीकी डालर की संपादकीय सहायता दी जाएगी। लॉरा बासी छात्रवृत्ति के लिए दुनिया भर में लगभग एक हजार आवेदन प्रस्तुत किए गए थे, जिनमें से केवल 14 उम्मीदवारों को दुनिया भर में फेलोशिप प्रदान की गई थी। उनमें से केवल 2 पुरस्कार विजेता भारत से हैं।
लॉरा बासी छात्रवृत्ति की स्थापना 2018 में स्नातकोत्तर और जूनियर शिक्षाविदों को संपादकीय सहायता प्रदान करने के उद्देश्य से की गई थी, जिनका शोध अध्ययन के उपेक्षित विषयों पर केंद्रित है। छात्रवृत्ति हर विषय के लिए खुली है और प्रति वर्ष तीन बार प्रदान की जाती है। लॉरा बासी (1711-1778) यूरोप में प्रोफेसर बनने वाली पहली और डॉक्टरेट की उपाधि पाने वाली दूसरी महिला थीं।
उन्होंने इटली के बोलोग्ना विश्वविद्यालय में प्रोफेसरों के समक्ष 49 शोध प्रबंधों के साथ 21 साल की उम्र में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की। उनके जीवन ने शोध में हजारों महिलाओं को प्रेरित किया है और इस प्रकार अनुसंधान के दायरे को बढ़ाने वाली नींव रखी। लॉरा बासी फाउंडेशन ने शोध में हजारों महिलाओं को प्रेरित किया है और शोध का दायरा बढ़ाया है।

प्रो. सिद्धार्थ मिश्रा
शिवांगी जैव रसायन विभाग में प्रोफेसर सिद्धार्थ मिश्र के साथ कैंसर जीवविज्ञान और चिकित्सा के क्षेत्र में योगदान देने वाले एक प्रोजेक्ट पर पीएचडी कर रही हैं। वह कैंसर जैवसूचना विज्ञान और दवा अनुसंधान के क्षेत्र में कार्य कर रही हैं। ट्रिपल-नेगेटिव ब्रेस्ट कैंसर (टीएनबीसी) स्तन कैंसर का एक उपप्रकार है जिसका इलाज करना मुश्किल है और महिलाओं में उच्च मृत्यु दर का कारण बनता है।
भारत में टीएनबीसी का स्तर कुल स्तन कैंसर के मामलों का लगभग 30% है जो विश्वव्यापी अनुपात (25%) के स्तर से अधिक है। टीएनबीसी उपप्रकार का निदान कठिन है और इसके लिए विशिष्ट उपचार की आवश्यकता होती है। शिवांगी इसके निदान एवं प्रबंधन में महत्वपूर्ण शोध चुनौतियों का समाधान कर रही हैं। इस अध्ययन का उद्देश्य जैवसूचना विज्ञान और इन-सिलिको कम्प्यूटेशनल जीवविज्ञान दृष्टिकोण का उपयोग करके आणविक तंत्र की उन्नत समझ के लिए टीएनबीसी-विशिष्ट हब जीन और मार्गों की पहचान करना है।
कुछ हब जीन की पहचान की गई है जो स्तन कैंसर की प्रगति में योगदान करते हैं। अध्ययन ने प्राकृतिक फ्लेवोनोइड्स को संभावित चिकित्सीय एजेंटों के रूप में भी खोजा, जो टीएनबीसी उपचार के लिए एक नवीन हर्बल-आधारित दृष्टिकोण है। यह कम दुष्प्रभावों के साथ कीमोथेरेपी प्रभावकारिता को बढ़ाने में मदद करेगा। प्रोफेसर सिद्धार्थ मिश्र कैंसर जीवविज्ञान और चिकित्सा विशेष रूप से यकृत, स्तन और कोलोरेक्टल कैंसर के क्षेत्र में पांच छात्रों के एक शोध समूह का नेतृत्व कर रहे हैं।
उनका शोध न्यूरोडीजेनेरेटिव रोगों (पार्किंसंस और अल्जाइमर रोग) और मधुमेह पर भी केंद्रित है। हाल ही में प्रोफेसर सिद्धार्थ मिश्र ने नीदरलैंड के प्रतिष्ठित अंतर्राष्ट्रीय जर्नल एनवायरनमेंटल टॉक्सिकोलॉजी एंड फार्माकोलॉजी में प्रकाशित एक रिपोर्ट में चागा मशरूम के लीवर कैंसर पर सुरक्षात्मक प्रभाव को दर्शाया गया है। रूस, पश्चिमी साइबेरिया, एशिया और उत्तरी अमेरिका में चागा मशरूम कई विकारों के इलाज के लिए लोक चिकित्सा का एक घटक रहा है, मुख्य रूप से इसके सूजनरोधी और एंटीऑक्सीडेंट गुणों के माध्यम से।
यह अध्ययन पहली बार एंटीऑक्सीडेंट, सूजनरोधी और कैंसररोधी तंत्र के माध्यम से लिवर कार्सिनोमा पर चागा मशरूम के चिकित्सीय प्रभावकारिता की रिपोर्ट करता है। इस मशरूम को कोलोरेक्टल कार्सिनोमा में भी प्रभावी बताया गया है।
कुलपति प्रो. आलोक कुमार राय ने शोध छात्रा शिवांगी दुबे को लॉरा बासी छात्रवृत्ति के लिए बधाई दी और विश्वविद्यालय को गौरवान्वित करने के लिए अच्छे शोध कार्य करने की सलाह दी। जैवरसायन विभाग के प्रोफेसर समीर शर्मा, प्रोफेसर सुधीर मेहरोत्रा, डॉ. आशुतोष सिंह और अन्य संकाय सदस्यों और विश्वविद्यालय के अन्य शिक्षकों ने भी उनकी सराहना की।