क्या आपने कभी देखा है नागा साधुओं का ऐसा अद्भुत सैलाब…Videos, जानें कहां से आते हैं और फिर कहां चले जाते हैं?

January 15, 2025 by No Comments

Share News

Naga Sadhus in Maha Kumbh: महाकुंभ का पहला अमृत स्नान मकर संक्रांति को हो चुका है और इसी के साथ ही महाकुंभ स्नान लगातार जारी है. इसी दौरान पूरी दुनिया के लिए नागा साधु आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं. कल जब स्नान के लिए नागा साधुओं की सवारी निकली तो लोग देखते ही रह गए. प्रयागराज में लग रहा था मानो नागा साधुओं का सैलाब या कहें सागर ही उमड़ पड़ा हो.

इस अद्भुत दृश्य के तमाम वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं तो वहीं इसी के साथ ही लोगों के मन में ये भी जानने की जिज्ञासा है कि आखिर ये नागा साधु महाकुंभ में आते कहां से हैं और फिर महाकुंभ समाप्त होते ही कहां चले जाते हैं?

ये तो सभी जानते हैं कि नागा साधुओं का जीवन बहुत ही रहस्यमयी होता है और हर कोई उनके जीवन के बारे में जानने की लालसा रखता है. चूंकि वह दुनिया से कटकर रहते हैं और कहां रहते हैं ये किसी को पता नहीं चल पाता तो इसीलिए जब वे महाकुंभ में एक साथ दिखाई देते हैं तो हर कोई उनके जीवन और दिनचर्या को लेकर जानने की इच्छा रखता है.

महाकुंभ में ही केवल दिखते हैं नागा साधु

नागा साधु किसी भी भौतिक सुख में नहीं पड़ते वे तपस्वी की भांति रहते हैं और सनातन धर्म की परम्परा का निर्वाहन करते हैं. वैसे भी कुंभ का आयोजन हर 12 साल पर होता है। कुंभ का आयोजन प्रयागराज, नासिक, हरिद्वार और उज्जैन में होता है. इस बार बारी प्रयागराज की थी तो प्रयागराज में कुंभ का विशाल संगम देखने को मिल रहा है. कुम्भ के दौरान नागा साधु, जो सनातन धर्म की एक विशिष्ट और अत्यंत तपस्वी परंपरा का हिस्सा हैं, बड़ी संख्या में उपस्थित होते हैं। वे कुंभ के प्रमुख आकर्षण और आध्यात्मिक आयोजन का केंद्र होते हैं।

कुंभ मेले में पहले स्नान का अधिकार है नागा साधुओं का

अक्सर नागा साधु त्रिशूल धारण करते हैं और अपने शरीर को राख से ढकते हैं। वे रुद्राक्ष की माला और जानवरों की खाल जैसे पारंपरिक परिधान भी पहनते हैं। कुंभ मेले में सबसे पहले नागा साधुओं को ही स्नान का अधिकार दिया जाता है, जिसके बाद अन्य श्रद्धालुओं को स्नान की अनुमति दी जाती है लेकिन उसके बाद वे सभी अपने-अपने रहस्यमयी दुनिया में लौट जाते हैं।

कुंभ में है दो सबसे बड़े अखाड़े

माना जाता है कि वे हिमालय में रहते हैं और सिर्फ कुंभ मेला होने पर ही वह आम लोगों के बीच आते हैं. कुंभ में दो सबसे बड़े नागा अखाड़े महापरिनिर्वाणी अखाड़ा और पंचदशनाम जूना अखाड़ा हैं, जो वाराणसी में है। ज्यादातर नागा साधु यहां से भी आते हैं।

वो कुंभ मेले में कैसे आते हैं और वहाँ से कैसे जाते हैं, इसको जानने को लेकर हर कोई उत्सुक रहता है. क्योंकि किसी ने कभी उन्हें सार्वजनिक रूप से आते-जाते नहीं देखा। लाखों की तादाद में ये नागा साधु बिना कोई वाहन या पब्लिक गाड़ी का इस्तेमाल किये और लोगों को नजर आये कुम्भ तक पहुँच जाते हैं।

महाकुंभ के बाद लौट जाते हैं इन जगहों पर

कई नागा साधु हिमालय, जंगलों या अन्य शांत और एकांत जगहों पर निवास करते हैं और कठिन तपस्या और ध्यान में लीन रहते हैं. वे हम सभी को तभी दिखाई देते हैं या फिर सार्वजनिक रूप से लोगों को दिखते हैं जब कुंभ मेला या अन्य धार्मिक आयोजन होते हैं।

ये नागा साधु जब कुंभ मेला आता है तभी ये अपने निवास स्थान से बाहर आते हैं और फिर वहीं पर लौट जाते हैं. कई तो अपने-अपने आखाड़ों में लौट जाते हैं जोकि देश के तमाम हिस्सों में स्थित है. यहीं पर रहकर वे निरंतर ध्यान, साधना और धार्मिक शिक्षाओं का अभ्यास करते हैं।

अज्ञात जीवन में विलीननागा साधुओं में से कई गुप्त रूप से रहते हैं और सामान्य समाज से कटे हुए जीवन व्यतीत करते हैं। उनकी साधना और जीवनशैली उन्हें समाज से अलग और स्वतंत्र बनाती है। तो वहीं कुछ नागा साधु पूरे देश भर में धार्मिक यात्राएं भी करते रहते हैं. इसलिए इनके ठहरने की जगह विभिन्न मंदिरों, तीर्थ स्थलों में होती है.

नागा बनने के लिए या नए नागाओं की दीक्षा प्रयाग, नासिक, हरिद्वार और उज्जैन के कुंभ में ही होती है। यहीं नागाओं का वर्गीकरण भी किया जाता है, जैसे कि प्रयाग में दीक्षा पाने वाले नागा को राजराजेश्वर, उज्जैन में दीक्षा पाने वाले को खूनी नागा, हरिद्वार में दीक्षा पाने वाले को बर्फानी नागा और नासिक में दीक्षा पाने वाले को खिचड़िया नागा कहा जाता है। इसीलिए कुछ नागा साधु प्रसिद्ध तीर्थ स्थानों, जैसे काशी (वाराणसी), हरिद्वार, ऋषिकेश, उज्जैन या प्रयागराज में भी रहते हैं. ये स्थान उनके लिए धार्मिक और सामाजिक गतिविधियों का केंद्र होते हैं।

ये भी पढ़ें-Mahakumbh-2025: महाकुंभ में भी दिख रहा है चीनी वायरस HMPV का खौफ…! इतने लोग पहुंचे अस्पताल; शाही जुलूस में महामंडलेश्वर को दी गई CPR-Video