Shattila Ekadashi: पढ़ें षटतिला एकादशी की दो कथा, जानें पौराणिक महत्व, इस तरह कराएं भगवान को स्नान

February 5, 2024 by No Comments

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Shattila Ekadashi: सनातन धर्म में माघ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को षटतिला एकादशी के रुप में मनाया जाता है. इस दिन भगवान विष्णु के निमित्त व्रत-पूजा और तिल दान करने से मनुष्य को सभी सुखों की प्राप्ति होती है। कुछ लोग बैकुंठ रुप में भी पूजन करते हैं. आचार्य सुशील कृष्ण शास्त्री बताते हैं कि, इस दिन काली गाय तथा काले तिलों के दान का विशेष महत्व है. इस दिन शरीर पर तिल के तेल की मालिश, तिल जल स्नान, तिल जलपान और तिल का पकवान खाने का विशेष महत्व शास्त्रों में बताया गया है. इस दिन तिलों से हवन कर रात्रिजागरण करना चाहिए.

इस तरह कराएं भगवान को स्नान
शास्त्रों की मानें तो इस दिन पंचामृत में तिल मिलाकर भगवान को स्नान कराना चाहिए. तो इसी के साथ ही तिल से जुड़ी हुई चीजें खाएं व ब्राह्मणों को दान करें. इस दिन 6 तरह के तिल का इस्तेमाल किए जाने के कारण ही इसे षट्तिला एकादशी के नाम से पुकारा जाता है.

प्रभु श्रीकृष्ण ने इस तरह बताया है इस एकादशी का महत्व
शास्त्रों के अनुसार श्रीकृष्ण,युधिष्ठिर को इस एकादशी का महत्व बताते हुए कहते हैं कि हे नृपश्रेष्ठ!माघ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी ‘षटतिला’ या ‘पापहारिणी’के नाम से विख्यात है, जो सब पापों का नाश करने वाली है। इस दिन तिल से बने हुए व्यंजन या तिल से भरा हुआ पात्र दान करने से अंनत पुण्यों की प्राप्ति होती है। पदमपुराण में वर्णित है कि तिलों के बोने पर उनसे जितनी शाखाएं पैदा होती हैं, उतने हजार वर्षों तक दान करने वाला व्यक्ति स्वर्गलोक में प्रतिष्ठित होता है। षटतिला एकादशी का व्रत करने से मनुष्य की आध्यात्मिक उन्नति होती है और सभी प्रकार के पापों से मुक्ति प्राप्त होती है। जितना पुण्य कन्यादान, हजारों वर्षों की तपस्या और स्वर्ण दान से मिलता है, उससे अधिक फल प्राणी को षटतिला एकादशी का व्रत करने से मिलता है। यह व्रत परिवार के विकास में सहायक होता है और मृत्यु के बाद व्रती को विष्णुलोक की प्राप्ति होती है।

पढ़ें पौराणिक कथा-1
इस एकादशी को लेकर तमाम धार्मिक कथाएं प्रचलित हैं. माना जाता है कि, प्राचीन काल में पृथ्वी पर एक विधवा ब्राह्मणी रहती थी। वह भगवान विष्णु के प्रति अटूट श्रद्धा रखती थी और भक्ति भाव से उनके सभी व्रत और पूजन किया करती थी, पर वह ब्राह्मणी कभी भी किसी को अन्न दान में नहीं दिया करती थी। एक दिन भगवान विष्णु उस ब्राह्मणी के कल्याण के लिए स्वयं उसके पास भिक्षा के लिए गए, तब उस ब्राह्मणी ने मिट्टी का एक पिंड उठाकर भगवान विष्णु के हाथों में रख दिया। उस पिंड को लेकर भगवान विष्णु अपने धाम, बैकुंठ लौट आए।

कुछ समय के बाद उस ब्राह्मणी की मृत्यु हो गई और वो बैकुंठ धाम पहुंची। वहां उस ब्राह्मणी को एक कुटिया और एक आम का पेड़ मिला। खाली कुटिया को देख वो ब्राह्मणी बहुत निराश हुई और भगवान विष्णु के पास जाकर पूछा कि प्रभु मैने तो पूरे जीवन आपकी पूजा-अर्चना की। पृथ्वी पर मैं एक धर्मपरायण स्त्री थी, फिर क्यों मुझे ये खाली कुटिया क्यों मिली? भगवान विष्णु ने उस ब्राह्मणी को उत्तर दिया कि तुमने अपने जीवन में कभी अन्नदान नहीं किया था, इसलिए ही तुमको ये खाली कुटिया प्राप्त हुई। तब उस ब्राह्मणी को अपनी गलती का एहसास हुआ और उसने इसका उपाय पूछा। भगवान विष्णु ने बताया कि जब देव कन्याएं आपसे मिलने आए तो आप द्वार तभी खोलना जब वे षटतिला एकादशी के व्रत का विधान बताएं। उस ब्राह्मण स्त्री ने वैसा ही किया और षटतिला एकादशी का व्रत रखा। इस व्रत के प्रभाव से उस ब्राह्मण स्त्री की कुटिया अन्न और धन से भर गई। इसलिए षटतिला एकादशी के दिन अन्न दान करने का बहुत महत्व माना जाता है।

कथा-2