आमलकी एकादशी 14 मार्च को, बरतें ये सावधानी, इस दिन कालसर्प से मुक्ति पाने को करें ये सरल उपाय, देखें कथा व पूजन विधि
आमलकी एकादशी विशेष। हिंदी मास के अनुसार 14 मार्च को एकादशी है, चूंकि यह फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी है, इसलिए इसे आमलकी एकादशी कहते हैं। इसी दिन षडशीति संक्रान्ती भी है, जो कि बहुत ही लाभदायक है। आचार्य विनोद कुमार मिश्र बताते हैं कि कल का दिन दोपहर 12:48 से सूर्यास्त तक पुण्यकाल है। इस दौरान जप,तप,ध्यान और सेवा करने से 86000 गुना पुण्य प्राप्त होगा। इस दिन हो सके तो सभी काम छोड़कर अधिक से अधिक समय जप–ध्यान, प्रार्थना में लगायें।
एकादशी के दिन बरतें ये सावधानी
सोमवार को पड़ रही एकादशी के दिन अगर सम्भव हो तो उपवास रखें। अंग्रेजी महीने में 15-15 दिन में एकादशी आती है। एकादशी का व्रत पाप और रोगों को स्वाहा कर देता है लेकिन वृद्ध, बालक और बीमार व्यक्ति एकादशी का व्रत न रखें, लेकिन इस दिन चावल खाने से बचना चाहिए। हो सके तो इस दिन के लिए चावल का त्याग करें।
इस दिन कालसर्प योग से मुक्ति पाने के लिए ये करें उपाय
ज्योतिष के अनुसार इस दिन कालसर्प योग की शान्ति के लिए पलाश के पुष्प से बने रंग से – होली खेलने या स्नान करने से कालसर्प योग से मुक्ति मिलती है।
क्या है ब्रम्हवृक्ष पलाश
पलाश को हिंदी में ढ़ाक, टेसू, कहते हैं। इसके पत्त्तों से बनी पत्तलों पर भोजन करने से चाँदी–पात्र में किये भोजन तुल्य लाभ मिलता है। लिंग पुराण के अनुसार पलाश की समिधा से ‘ॐ नम: शिवाय’ मंत्र द्वारा १० हजार आहुतियाँ दें तो सभी रोगों का शमन होता है। पलाश व बेल के सूखे पत्ते में गाय का घी व मिश्री समभाग मिला के धूप करने से बुद्धि की शुद्धि व वृद्धि होती है।
क्यों कहते हैं इसे आमलकी एकादशी
आचार्य सुशील द्विवेदी बताते हैं कि आंवले के नीचे भगवान का पूजन करने से ही इस एकादशी को आमलकी एकदशी कहते हैं। इस दिन व्रत रखकर आंवले का उबटन लगाना चाहिए। इसके बाद आंवले के जल के स्नान करना चाहिए। इसी के साथ आंवले का पूजन करना चाहिए। इस दिन आंवला खाना और दान करना शुभ माना गया है।
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प्रचलित पौराणिक कथा
प्राचीन काल में चित्रसेन नामक राजा राज्य करता था। उनके राज्य में एकादशी व्रत का बहुत महत्व था। राजा को आमलकी एकादशी पर बहुत श्रद्धा थी। इसलिए सभी प्रजा के लोग इस एकदशी का व्रत किया करते थे। एक दिन राजा शिकार करते हुए जंगल में बहुत दूर निकल गया। जहां उसे पहाड़ी व जंगली राक्षसों ने घेर लिया। राजा पर राक्षसों ने अस्त्र-शस्त्र से प्रहार भी किया, लेकिन भगवान की कृपा होने के कारण अस्त्र शस्त्र फूल में बदल जाते थे। चूंकि जंगली राक्षसों की संख्या अधिक थी, इसलिए उन लोगों ने राजा को घेर लिया और राजा बेहोश होकर गिर पड़े। इसके बाद राजा के शरीर से एक शक्ति प्रकट हुई और राक्षसों को मारकर लुप्त हो गई। कुछ देर बाद राजा होश में आए तो देखा की सभी राक्षस मरे पड़े थे। उन्हें आश्चर्य हुआ कि ये सब कैसे हो गया। तभी एक भविष्यवाणी हुई-हे राजन, यह सब राक्षस तुम्हारे आमलकी एकादशी के व्रत के तेज के कारण मारे गए हैं। तुम्हारे शरीर से उत्पन्न आमलकी एकादशी की वैष्णवी शक्ति ने इनका संहार किया है। राक्षसों का संहार कर के शक्ति फिर से तुम्हारे शरीर में प्रवेश कर गई। यह सुनकर राजा बहुत प्रसन्न हुए और वापस अपने राज्य लौट आए। साथ ही सभी को आमलकी एकदशी का महत्व भी सुनाया। राक्षसों के संहार के बाद से राजा के साथ ही पूरी प्रजा सुखपूर्वक रहने लगी।
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नोट: यह लेख धार्मिक मान्यताओं व धर्म शास्त्रों पर आधारित है। हम अंधविश्वास को बढ़ावा नहीं देते। पाठक धर्म से जुड़े किसी भी कार्य को करने से पहले अपने पुरोहित या आचार्य से अवश्य परामर्श ले लें। Khabar Sting इसकी पुष्टि नहीं करता।)
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