Basant Panchami: बसंत पंचमी कब? 2 या 3 फरवरी को…न पड़ें भ्रम में जानें यहां सही तारीख

February 1, 2025 by No Comments

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Basant Panchami: हिंदू धर्म में माघ शुक्ल पंचमी को बसंत पंचमी के रूप मे मनाया जाता है. बसंत को ऋतुओं का राजा माना जाता है. वैसे अगर देखा जाए तो बसंत ऋतु के तहत चैत्र और वैशाख के महीने भी आ जाते हैं फिर भी माघ शुक्ल पंचमी को ही यह उत्सव धूमधाम से मनाया जाता है. इसी दिन सरस्वती जी की पूजा भी की जाती है. भगवान श्रीकृष्ण को इस उत्सव का अधिदेवता कहते हैं. इसीलिए ब्रज में इसी दिन राधा और कृष्ण के आनन्द विनोद की लीलाएं बड़ी धूमधाम से मनाई जाती है और इसी के साथ ही होली की भी तैयारी शुरू हो जाती है तो वहीं मथुरा-वृंदावन में 40 दिन के होली उत्सव का भी शुभारम्भ हो जाता है.

इस बार बसंत पंचमी कब पड़ रही है? 2 या 3 तारीख को…दोनों दिन को लेकर लोगों में असंजस की स्थिति बनी हुई है. गूगल पर सर्च करने पर 2 फरवरी को ही बसंत पंचमी मनाए जाने की खबरें वायरल हो रही हैं जबकि प्रयागराज में चल रहे महाकुंभ में साधु-संत अमृत स्नान 3 फरवरी को करेंगे. इसका मतलब है कि सही तरीके से 3 फरवरी को ही बसंत पंचमी है. हालांकि तमाम लोग 2 और 3 दोनों ही दिन बसंत पंचमी मनाएंगे.

वैदिक पंचांग के मुताबिक, 2 फरवरी 2025 को सुबह 9 बजकर 15 मिनट पर पंचमी तिथि लगेगी और इसका समापन 3 फरवरी को सुबह 6 बजकर 53 मिनट पर उस वक्त होगा जब सूर्य उदय हो रहा होगा. तमाम ज्योतिषाचार्यों का कहना है कि 3 फरवरी को सुबह 6 बजकर 53 मिनट पर पंचमी तिथि समाप्त हो रही है इसीलिए 2 फरवरी को ही बसंत पंचमी मनाई जाएगी लेकिन ये सभी जानते हैं कि अधिकांश हिंदू व्रत-त्योहार उदयातिथि पर आधारित होते हैं. इसीलिए 3 तो पंचमी तिथि सूर्योदय के समय तक है. यही वजह है कि कुंभ में बसंत पंचमी के दिन होने वाला अमृत स्नान 3 फरवरी को किया जा रहा है. आचार्य सुशील कृष्ण शास्त्री कहते हैं कि बसंत पंचमी 3 फरवरी को ही मनाना शुभ रहेगा.

इस दिन मां सरस्वती को पीले रंग के वस्त्र धारण करा कर पीले रंग की ही मिठाई का भोग लगाना चाहिए. बेसन के लड्डू, मालपुआ, केसर का हलवा आदि का भोग लगाना शुभ माना जाता है.

मान्यता है कि इस दिन छात्रों को भी सरस्वती जी की पूजा करनी चाहिए. इससे दिमाग तेज होता है और माता सरस्वती की कृपा हमेशा बनी रहती है. तो वहीं इस दिन प्रदेश के कई स्थानों पर सुहागन महिलाएं तुलसी जी से या फिर गौरा जी से सुहाग लेती हैं और अपने पति की लम्बी उम्र व स्वास्थ्य की कामना करती हैं. इसी तरह से देश भर में जगह-जगह पर परम्परा के मुताबिक बसंत पंचमी का त्योहार मनाया जाता है.

जानें क्या होती है उदया तिथि?

हिंदू मान्यता के अनुसार जो तिथि सूर्योदय के साथ शुरू होती है, उसे उदया तिथि कहते हैं. कभी-कभी ये तिथि सूर्यदय के साथ समाप्त भी होती है लेकिन फिर भी पूरे दिन उसी तिथि को माना जाता है. हिंदू धर्म में उदया तिथि का बहुत महत्व है. ज़्यादातर त्योहार और व्रत उदया तिथि के हिसाब से ही मनाए जाते हैं.

हिंदू पंचांग के मुताबिक, सूर्योदय के साथ ही नया दिन शुरू हो जाता है. अधिकतर ज्योतिष भी उदया तिथि से शुरू होने वाले व्रत और त्योहार मनाने की सलाह देते हैं. हालांकि कभी-कभी व्रत या त्योहार उदया तिथि के हिसाब से नहीं किए जाते हैं. अमूमन ये स्थिति शाम को सेलिब्रेट किए जाने वाले त्योहारों के साथ होती है जैसे होलिका दहन, दीपावली आदि. कुछ व्रत और त्योहार काल व्यापिनी तिथि के हिसाब से भी किए जाते हैं. जैसे, करवाचौथ के व्रत में चंद्रमा की पूजा होती है, इसलिए ये व्रत उस दिन रखा जाएगा, जिस दिन चंद्रमा का उदय चौथ तिथि में हो रहा है. यही वजह है कि हिंदू धर्म में उदया तिथि को महत्वपूर्ण माना जाता है.

DISCLAIMER:यह लेख धार्मिक मान्यताओं व धर्म शास्त्रों पर आधारित है। हम अंधविश्वास को बढ़ावा नहीं देते। किसी भी धार्मिक कार्य को करते वक्त मन को एकाग्र अवश्य रखें। पाठक धर्म से जुड़े किसी भी कार्य को करने से पहले अपने पुरोहित या आचार्य से अवश्य परामर्श ले लें। KhabarSting इसकी पुष्टि नहीं करता।

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