परशुराम जयंती से पहले सोशल मीडिया पर वायरल हुआ भगवान परशुराम का फरसा, हजारों सालों से भीग रहा है बारिश में, नहीं लगी जंग, जानें कहां गड़ा है फरसा और क्या है मान्यता

April 29, 2022 by No Comments

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धर्म-अध्यात्म। परशुराम जयंती 3 मई 2022 को है और सोशल मीडिया पर परशुराम भगवान की जयंती को लेकर जमकर मैसेज और वीडियो वायरल हो रहे हैं। इसी बीच वायरल हुआ है भगवान परशुराम जी का फरसा, जो ब्राह्मण ग्रुपों के बीच आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। इसे व्यास सुनयना ने अपने ट्वीटर हैंडल से वायरल किया है। 24 घंटे में 23 हजार से अधिक लोग इसे लाइक देख चुके हैं और चार हजार से अधिक लोग इसे रिट्वीट कर चुके हैं।

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फरसा की फोटो वायरल करते हुए सुनयना ने लिखा है कि झारखंड के रांची शहर से 150 किलो मीटर दूर घने जंगलों में स्थित “टांगीनाध धाम” में भगवान परशुराम जी का फरसा भी गड़ा हुआ है। हजारों वर्ष से खुले आसमान के नीचे गड़े इस लोहे के फरसे पर जरा भी जंग नहीं लगी है। यहां पर साल में एक बार महाशिवरात्रि पर मेले का आयोजन किया जाता है। बता दें कि वैशाख शुक्ल तृतीया को हिंदू समाज में अक्षय तृतीया मनाई जाती है और इसी दिन ब्राह्मणों के देवता भगवान परशुराम जी का जन्म हुआ था। इसीलिए इस दिन को परशुराम जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। ब्राह्मण इस दिन भगवान की जयंती के उपलक्ष्य में रैली निकालते हैं और धूमधान से परशुराम भगवान की पूजा करते हैं।

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इसी दिन नर नारायण ने भी अवतार लिया था। मान्यता है कि मध्यप्रदेश के इंदौर के पास स्थित महू से कुछ ही दूरी पर स्थित जानापाव की पहाड़ी पर भगवान परशुराम का जन्म हुआ था। यहां पर परशुराम के पिता ऋर्षि जमदग्नि का आश्रम भी था। कहते हैं कि प्रचीन काल में इंदौर के पास ही मुंडी गांव में स्थित रेणुका पर्वत पर माता रेणुका रहती थीं। इसी के साथ कुछ इतिहासकार उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर के जलालाबाद में भगवान परशुराम की जन्म स्थली मानते हैं। हाल ही में प्रदेश सरकार के पर्यटन मंत्री जयवीर सिंह ने मंदिर क्षेत्र को पर्यटन स्थल घोषित किया था।

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भगवान परशुराम की जन्मस्थली को लेकर हैं अलग-अलग मत
भगवान परशुराम की जन्मस्थली को लेकर अलग-अलग मत हैं। इतिहासकार एवं इस क्षेत्र में शोध कर चुके प्रशांत अग्निहोत्री कई तथ्य व तर्क देते हुए कहते हैं कि 1905 में तत्कालीन तहसीलदार प्रभुदयाल ने खोदाई कराई तो एक बहुत ही विशाल फरसा मिला था। खरोष्ठि लिपि में लिखा शिलालेख भी मिला था, जिसमें जन्मस्थली जलालाबाद में होने की बात लिखी हुई थी। गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय में भी इस पर अध्ययन करने की बात सामने आई है।

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