FATHER’s DAY-2022: पापा…पदचिन्हों पर चलते-चलते बड़ी सफलता हासिल कर ली…फादर्स डे पर देखें आंखें नम कर देने वाला गीत, वृद्धाश्रम में रहने वाले बुजुर्गों के साथ बिताएं समय
रविवार (19 जून 2022) को फादर्स डे है और लोग अपने-अपने पिता को बधाई देने व गिफ्ट देने की तैयारी जोरों पर कर रहे हैं। तो वहीं ऐसे लोग भी हैं, जिनके सिर से पिता का साया उठ गया है, तो वे इस दिन पर आंखें नम कर अपने पिता को श्रद्धांजलि दे रहे हैं। Father’s day (पितृ दिवस) पर ऐसे ही लोगों के लिए ये कविता लिखी है भारत की जानी-मानी कवयित्री डॉ.रश्मि कुलश्रेष्ठ ने। उनकी हर पंक्ति आपके हर्दय को छू जाएगी और अपनी सी लगेगी। तो अवश्य इस कविता के साथ अपने पिता को दें श्रद्धांजलि और किसी वृद्धाश्रम में जाकर उन पिताओं के साथ समय बिताएं, जिनके बच्चे होते हुए भी उन्हें वृद्धाश्रम में रहना पड़ रहा है।

पितृदिवस पर पिता जी को समर्पित गीत
जब से पापा आप गये हो
जीवन का कुछ अर्थ नहीं है।
कोई कविता लिखूँ आप पर,
मुझमें ये सामर्थ्य नहीं है।
है अनंत विस्तार गगन सा
इसे बाँध पाना मुश्किल है।
बहुआयामी कला कोश से,
गगरी भर पाना मुश्किल है।
करती गिलहरी प्रयास रही पर
राम सेतु का दर्प नहीं है।
जब भी कलम उठाती हूँ मैं,
आँखों से सागर बहता है।
कलम अचानक भारी होती,
कागज भीग-भीग जाता है।
मन में काली घटा घुमड़ती
उड़ते काले सर्प नहीं है।
गंगा का तट ,राम नगरिया,मेला झूला टाॅफी गुड़िया।
बाइस्कोप,जलेबी चूरन,आलू टिक्की चाट पपड़िया।
पहले जैसा रहा नहीं कुछ ,
मेरा कहना व्यर्थ नहीं है।
घर की सारी साज सजावट
बिना आपके फीकी लगती।
मम्मी का श्रृंगार गया है
गुमसुम सी वो अक्सर दिखती ।
खुशियों का दम घुटा- घुटा सा।
क्या यह बेड़ा गर्क नहीं है।
याद बहुत आती है पापा
अल्बम जब देखा करते हैं।
बचपन की स्मृति गलियों में
अक्सर ही घूमा करते हैं।
पहले जैसा सब हो जाये
बाल सुलभ यह शर्त नहीं है।
सीख सिखाई कर्मठता की,
उसकी गाँठ बाँध कर रख ली।
पदचिन्हों पर चलते चलते बड़ी सफलता हासिल कर ली।
हार जीत में सहज रहे हम,
अब पड़ता कुछ फर्क नहीं है।
