HEALTHY LIFE:प्रतिदिन खाने के बाद जरूर खांए सौंफ, बढ़ेगी इम्युनिटी, भागेंगी डायबिटीज से लेकर तमाम गम्भीर बीमारियां, जानें सौंफ का दही से क्या है कनेक्शन

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आयुर्वेद। हजारों साल पहले से भोजन के तुरंत बाद हम भारतीयों के बीच जो खाना खाने के बाद सौंफ (fennel) खाने का चलन चला आ रहै है, वह हमारे स्वास्थ्य के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण रहा है। वैसे तो हम यही समझते रहे हैं कि खाना खाने के बाद सौंफ इसलिए खाई जाती है ताकि मुंह से किसी तरह की बदबू न आए, या फिर मुंह फ्रेश फील करे, लेकिन भारतीय परम्परा में शामिल ये सौंफ शरीर को स्वस्थ्य रखने में बहुत ही लाभदायक है।

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आयुर्वेदाचार्य रोहित यादव बताते हैं कि प्रतिदिन सौंफ खाने का मतलब है कि आप अपने स्वास्थ्य की गारंटी पर दस्तखत कर रहे हैं। सौंफ खाने के साथ हमारे शरीर में लाखों लैक्टोबसिलस (lactobacillus) पेट मे रोज चले जाते हैं, जो कि हमारे शरीर में इम्युनिटी बढ़ाने के काम करते हैं और तमाम बीमारियों से लड़ने की क्षमता को विकसित करते हैं।

आयुर्वेदाचार्य कहते हैं कि प्रतिदिन जरा सी सौंफ खाने से हमारे शरीर को इतना फायदा पहुंचता है, लेकिन हम आधुनिकता की दौड़ में इस फायदेमंद प्रकृति की देन को भूलते जा रहे हैं। इसी वजह से हमारा शरीर तमाम बीमारियों का शिकार हो रहा है। कोई माने या न माने, लेकिन भारतीय परम्पराएं हमेशा से महान थीं और रहेंगी। आज वैज्ञानिक भी इसे मान रहे हैं। रोहित कहते हैं कि अगर आप सौंफ का सेवन नहीं कर रहे हैं तो तुरंत इसका सेवन करना शुरू कर दीजिए। भुनी, धुली या फिर फैंसी सुगर कोटेड सौंफ का नहीं, बल्कि ताजी सौंफ हरी- हरी। फिर देखिए साल दर साल शरीर पर क्या फर्क नजर आता है।

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तो इस तरह से है सौंफ का दही से कनेक्शन

सौंफ को लेकर आयुर्वेदाचार्यों के बीच एक मान्यता चली आ रही है कि कुछ विज्ञान खाना खाने के बाद स्वीट्स खा रहे थे। वहीं एक जीवाणु विज्ञानी (Bacteriologist-जीवाणुतत्ववेत्त) भी बैठे थे। उन्होंने सौंफ का महत्व बताते हुए कहा कि पहली बार कभी दही का कल्चर अगर बनाया गया होगा तो सौंफ से ही बनाया था। इस पर लोग आश्चर्यचकित हो गए कि भला सौंफ का दही से क्या कनेक्शन। मतलब क्या वह सौंफ इतनी महत्वपूर्ण है, जिसे भारत में सदियों से पान में डालकर या फिर ऐसे ही चबाया जाता रहा है। जब लोगों के निगाहें प्रश्न लेकर विज्ञानी की तरफ उठी तो उन्होंने स्पष्ट करते हुए महत्वपूर्ण जानकारी दी कि सौंफ के सरफेस पर बहुत सारा लैक्टोबसिलस होता है, जो कि प्राकृतिक रूप से पाया जाता है।

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लैक्टोबसिलस एक बहुत ही स्ट्रांग प्रोबायोटिक होती है, जिसका पेट में स्वास्थ्यवर्धक जीवाणुओं का बैलेंस बनाये रखने के लिए इस बैक्टीरिया का आंत में होना बहुत जरूरी है। अगर शरीर में यह नही होगा तो हजारों बीमारियां घेर लेंगी। डायबिटीज से लेकर थायराइड, अल्सर, कैंसर और न जाने क्या-क्या। आयुर्वेदाचार्य रोहित यादव बताते हैं कि लम्बी बीमारियों से उठने के बाद रोगी को Sporlac नाम की एलोपथिक गोलियां सिर्फ इसलिए दी जाती हैं, ताकि शरीर में लैक्टोबसिलस की जनसंख्या पुनः बढ़ जाये। इम्युनिटी और ताकत आ जाये, लेकिन आजकल डॉक्टर sporlac नही देते किसी को भी। भला उनको किसी की इम्युनिटी से क्या मतलब।

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लैक्टोबसिलस नामक जीवाणु, कुछ इस तरह होता है हमारे शरीर में, प्रतीकात्मक फोटो, इंटरनेट मीडिया से ली गई है।

दूध से दही को बनाने में सहायक होता है लैक्टोबसिलस नामक जीवाणु
दही (Curd) में लैक्टोबसिलस नाम का जीवाणु पाया जाता है। यह जीवाणु हमारे शरीर में पाचन शक्ति को बढ़ाकर शरीर को ऊर्जा प्रदान करता है, जिससे हम जो भी खाना खाते हैं, वह आसानी से पच जाता है और हमें अनेक प्रकार की बीमारियों से बचाता है। लैक्टोबसिलस नामक जीवाणु शरीर में अपच की समस्या को दूर करता है। लैक्टोबसिलस एक जीवाणु है जो कि स्त्रियों की योनि (Vagina) में तथा मानवों के आहार नाल में पाया जाता है। इनका आकार दण्ड (रॉड) जैसा होता है। इसके अलावा यह जीवाणु दूध से दही बनाने में सहायक होता है।

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क्या है प्रोबायोटिक
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुताबिक प्रोबायोटिक (probiotics) वे जीवित सूक्ष्मजीव होते हैं जिसका सेवन करने पर मानव शरीर में जरूरी तत्व सुनिश्चित हो जाते हैं। ये शरीर में अच्छे जीवाणुओं की संख्या में वृद्धि कर पाचन क्रिया को बेहतर बनाने में सहायक होते हैं। इस विधि के अनुसार शरीर में दो तरह के जीवाणु होते हैं, एक मित्र और एक शत्रु।

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