सबसे ज्यादा पढ़े-लिखे युवा ही बेरोजगार…! जानें कौन से धर्म के लोग कमाने-खाने में हैं सबसे आगे?
Unemployment Situation in India: अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) की मानें तो रोजगार की परिभाषा ये है कि अगर हफ्ते में कम से कम एक घंटे के लिए भी नौकरी, दिहाड़ी मजदूरी या फिर कुछ भी ऐसा काम किया जाए, जिससे कुछ न कुछ आमदनी हो तो उसे बेरोजगार नहीं कहा जाएगा. इसी परिभाषा को दुनिया भर की तमाम सरकारें मानती हैं और बड़ी बात ये है कि इसी परिभाषा के आधार पर ही बेरोजगारी के आंकड़ें निकाले जाते हैं और पता लगाया जाता है कि कितनी आबादी के पास रोजगार है और कितने के पास नहीं.
हालांकि भारत जैसे देश में बेरोजगारी हमेशा से ही न केवल सामाजिक-आर्थिक मुद्दा रही है बल्कि राजनीतिक मुद्दा भी रही है. तमाम सरकार इसी एकमात्र मुद्दे पर अपनी सत्ता तक खो चुकी हैं. क्योंकि ये मुद्दा सीधे युवाओं से जुड़ा हुआ है. इसीलिए इस तरह के मुद्दे को विपक्ष हमेशा ही लगातार भुनाता रहता है और सत्तारूढ़ दल को नौकरी न दे पाने के कारण घेरता रहता है. तो वहीं सरकार दावा करती है कि उसने रोजगार के खूब अवसर पैदा किए हैं और युवाओं को रोजगार दिया है. हालांकि सरकार की तरफ से हर साल इसके आंकड़े जारी किए जाते हैं.
हाल ही में रोजगार के आंकड़ों पर पीरियोडिक लेबर फोर्स सर्वे यानी PLFS की नई रिपोर्ट सामने आई है जो कि सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रही है. इस रिपोर्ट में जुलाई 2023 से जून 2024 तक के आंकड़े दिए गए हैं. इस रिपोर्ट की मानें तो इस दौरान बेरोजगारी की दर न तो बढ़ी है और न ही कम हुई है.
जानें कितनी बेरोजगारी?
बेरोजगारी की स्थिति को तीन आंकड़ों से समझा जाता है. पहला है लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन रेट (LFPR). दूसरा है वर्कर पॉपुलेशन रेशो (WPR), तीसरा है बेरोजगारी दर (UR). अब यहां तीनों का मतलब बताते हैं. LFPR मतलब कुल आबादी में से ऐसे कितने लोग हैं, जो काम की तलाश में हैं या काम कर रहे हैं. WPR मतलब कुल आबादी में से कितनों के पास रोजगार है. तो वहीं UR का मतलब है लेबर फोर्स में शामिल कितने लोग बेरोजगार हैं. फिलहाल लेबर फोर्स और वर्कर पॉपुलेशन का बढ़ना और बेरोजगारी दर के घटने को अच्छा माना जाता है.
जानें क्या कहते हैं LFPR के आंकड़े?
छह साल में लेबर फोर्स 10 प्रतिशत से अधिक बढ़ा है. 2017-18 में ये करीब 50 प्रतिशत था, जो 2023-24 में बढ़कर 60 प्रतिशत हो गया हालांकि, लेबर फोर्स में पुरुषों की तुलना में अब भी महिलाएं कम ही हैं. रिपोर्ट के मुताबिक, लेबर फोर्स में 78.8% पुरुष और 41.7% महिलाएं हैं.
जानें WPR के आंकड़े
इसके मुताबिक, देश की कुल आबादी में से 58.2% के पास रोजगार है जिसमें 76.3% पुरुष और 40.3% महिलाएं हैं जो कामकाजी हैं. 2022-23 में 56 फीसदी आबादी के पास रोजगार था. एक साल में महिलाओं में ये दर 5 प्रतिशत दर बढ़ी.
जानें क्या कहते हैं UR के आंकड़े?
रिपोर्ट के मुताबिक, 2022-23 में भी बेरोजगारी दर 3.2% थी और 2023-24 में भी ये 3.2% ही रही. इस तरह से इस दौरान बेरोजगारी दर न बढ़ी और न घटी. सात साल में बेरोजगारी दर घटकर आधी हो गई है 2017-18 में देश में बेरोजगारी दर 6 फीसदी थी.
जितनी अधिक पढ़ाई, उतनी अधिक बेरोजगारी!
भारत में सबसे अधिक बेरोजगार पढ़े-लिखे लोग ही हैं. ये बात हम नहीं बल्कि हाल ही में सामने आई अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) की रिपोर्ट कह रही है. ILO की रिपोर्ट बताती है कि साल 2000 में बेरोजगारों में पढ़े-लिखों की हिस्सेदारी 35.2% थी, जो 2022 तक बढ़कर 65.7% हो गई. दरअसल इस रिपोर्ट में दावा किया गया है कि 2023 में भारत में जितने बेरोजगार थे, उनमें से 83% युवा थे. यही नहीं दो दशकों में बेरोजगारों में पढ़े-लिखों की हिस्सेदारी करीब-करीब दोगुनी हो गई है.
ILO की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारतीय युवाओं, खासकर ग्रेजुएट करने वालों में बेरोजगारी सबसे बड़ी समस्या है और ये समय के साथ लगातार बढ़ रही है. सिर्फ ILO ही नहीं, बल्कि PLFS की रिपोर्ट भी भारत में पढ़े-लिखे बेरोजगार के अधिक होने का इशारा कर रही है. PLFS की सालाना रिपोर्ट देखें तो जितनी ज्यादा पढ़ाई होगी, बेरोजगारी भी उतनी ज्यादा होगी.
इसकी मानें तो जो लोग बिल्कुल भी पढ़े-लिखे नहीं हैं उनमें बेरोजगारी दर 0.2% है. तो वहीं कक्षा-12 तक पढ़ाई करने वालों में बेरोजगारी दर 5% से भी कम है. जबकि, डिप्लोमा, ग्रेजुएशन, पीजी या उससे भी ज्यादा पढ़ाई करने वालों में बेरोजदारी दर 12% से भी अधिक है. तो वहीं ILO ने दावा किया है कि भारत में नॉन-फार्म सेक्टर में ऐसी नौकरियां ही पैदा नहीं हो रहीं हैं, जहां पढ़े-लिखे और ग्रेजुएट युवाओं को जॉब मिल सके. इस रिपोर्ट को देखते हुए जानकारों का मानना है कि अनपढ़ या कम पढ़े-लिखे लोग अपना छोटा-मोटा काम शुरू कर देते हैं और रोजी-रोटी कमाने लगते हैं जबकि पढ़े-लिखे युवा अपनी योग्यता के आधार पर काम तलाशते हैं और यही वजह है कि इनमें बेरोजगारी दर अधिक होती है.
इस जाति-धर्म के लोग हैं सबसे अधिक बेरोजगार
रिपोर्ट की मानें तो 2023-24 में हिंदुओं में बेरोजगारी दर 3.1%, मुस्लिमों में 3.2, सिखों में 5.8% और ईसाइयों में 4.7% थी. इस तरह से देश में सबसे अधिक बेरोजगारी दर सिख समाज के लोगों में हैं. तो वहीं रिपोर्ट की आगे मानें तो हिंदुओं की 45%, मुस्लिमों की 37%, सिखों की 42% और ईसाइयों की 45% आबादी कामकाजी है. हालांकि रिपोर्ट ये भी कहती है कि मुस्लिमों में नौकरी करने वाले या काम की तलाश करने वालों की संख्या सबसे अधिक बढ़ी है. 2022-23 में 32.5% मुस्लिम ऐसे थे, जिनके पास या तो काम था या वो काम की तलाश में थे तो वहीं 2023-24 में ऐसे मुस्लिमों की संख्या 38% से अधिक रही.
वहीं रिपोर्ट में बताया गया है कि अनुसूचित जनजाति (ST) की 53% आबादी के पास कोई न कोई काम था या फिर वो काम की तलाश में थे. तो वहीं अनुसूचित जाति (SC) के 45% और अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के 44% लोगों के पास रोजगार था. दूसरी ओर सामान्य वर्ग से जुड़े 43% के पास ही नौकरी थी.
जानें रिपोर्ट ने किसे बताया काम करने वाला?
रिपोर्ट बताती है कि जितनी आबादी के पास काम था, उसमें से 58.4% के पास खुद का कोई काम था. तो वहीं 21.7% ही ऐसे थे जिनको रेगुलर सैलरी पर काम मिला था. दूसरी ओर दिहाड़ी मजदूरी करने वाले 19.8% थे.
जानें क्या काम करते हैं?
रिपोर्ट में खुलासा किया गया है कि जितनों के पास काम है, उनमें से 46% के खेती-बाड़ी से जुड़े हैं. इसके बाद 12.2% लोग ट्रेड, होटल या रेस्टोरेंट से जुड़े थे. तो दूसरी ओर 12% लोग कंस्ट्रक्शन से और 11.4% मैनुफैक्चरिंग सेक्टर में काम कर रहे हैं.
जानें कितने हैं युवा बेरोजगार?
रिपोर्ट में बेरोजगार युवाओं के लिए बताया गया है कि 15 से 29 साल के युवाओं में बेरोजगारी दर थोड़ी बढ़ी है. रिपोर्ट के अनुसार, इस उम्र के युवाओं में बेरोजगारी दर 2022-23 में 10% थी, जो 2023-24 में बढ़कर 10.2% हो गई. तो वहीं शहरी इलाकों में 14.7% और ग्रामीण इलाकों में 8.5% थी.
जानें कितनी बताई गई कमाई?
रिपोर्ट में बताया गया है कि जो खुद का काम कर रहे हैं, यानी जिनके पास स्वरोजगार है, उनकी महीने की औसत कमाई 12,685 रुपये है. तो वहीं नौकरीपेशा लोगों की औसत कमाई 20,095 रुपये है. इसके अलावा दिहाड़ी मजदूरों की रोज के औसत कमाई 404 रुपये रिपोर्ट में बताई गई है.
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