महाकुंभ में सब मगन…मकर संक्रांति पर सबसे पहले इस अखाड़े ने किया अमृत स्नान; प्रत्येक को डुबकी के लिए मिले मात्र इतने ही मिनट-Video

January 14, 2025 by No Comments

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Maha Kumbh 2025: कड़ाके की ठंड और फिर खुले आसमान के नीचे पवित्र नदी में स्नान करना…ये सोच कर ही शरीर में सिरहन उठ जाती है लेकिन महाकुंभ में साधु-संत श्रद्धा की ये डुबकी लगाने में जरा भी नहीं कतराते और वह जमकर स्नान करते हैं. दरअसल आज यानी मकर संक्रांति (14 जनवरी से) उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में अमृत स्नान की शुरुआत हो गई है.

प्रयागराज में शुरू हुआ महाकुंभ पूरी दुनिया के लिए एक अनोखा और अद्भुत मेला बन गया है. देश विदेश से संत-महात्मा यहां आ रहे हैं और श्रद्धा की डुबकी लगा रहे हैं. इसी के साथ ही आम जनता भी स्नान के लिए पहुंच रही है. यह सनातन धर्म का प्रमुख धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजन है. 13 जनवरी से शुरू होकर 26 फरवरी तक महाकुंभ का मेला चलेगा।

 


धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस पवित्र आयोजन के दौरान गंगा, यमुना और सरस्वती नदियों के संगम में स्नान करने से व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है और सारे पाप धुल जाते हैं व पुण्य फल प्राप्त होता है. बता दें कि कल यानी पौष पूर्णिमा से ही कुंभ का स्नान शुरू हो गया है. तो वहीं आज यानी मकर संक्रांति पर पहले ‘अमृत स्नान’ के लिए अखाड़ो ने जुलूस निकाला और सनातन धर्म के 13 अखाड़ों के साधुओं ने पहले पवित्र डुबकी लगाई.

श्री पंचायती अखाड़ा निर्मल के सचिव महंत आचार्य देवेंद्र सिंह शास्त्री ने पुष्टि की है कि सभी अखाड़ों के तारीखों, क्रम और समय के बारे में सूचित कर दिया गया है. प्रशासन यह सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है कि यह पवित्र परंपरा सुचारू रूप से और पूरी श्रद्धा के साथ संपन्न हो. तो वहीं सबसे पहले श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी और श्री शंभू पंचायती अटल अखाड़ा अमृत स्नान किया.बता दें कि पहले इसे शाही स्नान कहा जाता था लेकिन अब इसे अमृत स्नान कहते हैं.

इस दिन होंगे अमृत स्नान

13 जनवरी (सोमवार)- स्नान, पौष पूर्णिमा
14 जनवरी (मंगलवार)- अमृत स्नान, मकर सक्रांति
29 जनवरी (बुधवार)- अमृत स्नान मौनी अमावस्या
3 फरवरी (सोमवार)- अमृत स्नान, बसंत पंचमी
12 फरवरी (बुधवार)- स्नान, माघी पूर्णिमा
26 फरवरी (बुधवार)- स्नान, महाशिवरात्रि

इन अखाड़ों ने किया अमृत स्नान

आज से अमृत स्नान में सबसे पहले श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी और श्री शंभू पंचायती अटल अखाड़ा अमृत स्नान किया. इसके बाद श्री तपोनिधि पंचायती श्री निरंजनी अखाड़ा और श्री पंचायती अखाड़ा आनंद अमृत स्नान किया. बता दें कि प्रत्येक अखाड़े के स्नान के लिए 40-50 मिनट का समय दिया गया है. तीसरे स्थान पर तीन संन्यासी अखाड़े ने अमृत स्नान किया जिसमें श्री पंचदशनाम जूना अखाड़ा, श्री पंचदशनाम आह्वान अखाड़ा और श्री पंचाग्नि अखाड़ा शामिल हैं.

इसके बाद तीनों बैरागी अखाड़ों में सबसे पहले अखिल भारतीय श्री पंच निर्मोही अनी अखाड़ा तो वहीं इसके बाद अखिल भारतीय श्री पंच दिगंबर अनी अखाड़ा, फिर अखिल भारतीय श्री पंच निर्वाणी अनी अखाड़े ने स्नान किया तो वहीं अन्य तीन अखाड़े उदासीन संप्रदाय से जुड़े हैं. इसमें उदासीन श्री पंचायती नया उदासीन अखाड़ा अपने शिविर से दोपहर 12:15 बजे प्रस्थान करके 1:15 बजे घाट पर पहुंचा और फिर स्नान करने के बाद दोपहर करीब 3:10 बजे तक शिविर में पहुंचा. इसके बाद श्री पंचायती अखाड़ा नया उदासीन निर्वाण अखाड़े ने स्नान किया तो वहीं सबसे आखिर में श्री पंचायती निर्मल अखाड़ा अमृत स्नान किया. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, बसंत पंचमी पर भी यही व्यवस्था बनी रहेगी.

जानें क्यों कहते हैं इसे अमृत स्नान?

महाकुंभ के दौरान कुछ विशेष तिथियों पर होने वाले स्नान को “अमृत स्नान” कहा जाता है. माना जाता है कि इसका अलग महत्व और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि है। मान्यता है कि नागा साधुओं को उनकी धार्मिक निष्ठा के कारण सबसे पहले स्नान करने का मौका दिया जाता है और ये साधु स्नान करने के लिए हाथी, घोड़े और रथ पर सवार होकर राजसी ठाट-बाट के साथ स्नान करने के लिए घाटों तक पहंचते हैं. इसकी भव्यता देखते ही बनती है और इसी वजह से इसे अमृत स्नान यानी शाही स्नान नाम दिया गया है।

इसे राजसी स्नान भी कहते हैं

यह भी मान्यता है कि महाकुंभ का आयोजन सूर्य और गुरु जैसे ग्रहों की विशिष्ट स्थिति को ध्यान में रखकर किया जाता है, इसलिए इसे “राजसी स्नान” भी कहा जाता है। यह स्नान आध्यात्मिक शुद्धि और मोक्ष प्राप्ति का मार्ग है। एक अन्य मान्यता की मानें तो प्राचीन काल में राजा-महाराज भी साधु-संतों के साथ भव्य जुलूस में शामिल होकर स्नान के लिए निकलते थे। इसी परंपरा ने अमृत स्नान ( शाही स्नान) की शुरुआत हुई।

महाकुंभ स्नान का है धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व

मालूम हो कि करीब डेढ़ महीने चलने वाले इस महाकुंभ के उत्सव का भारतीय समाज में न केवल धार्मिक बल्कि सांस्कृतिक दृष्टि से भी बड़ा महत्व है. इसमें अमृत स्नान के साथ ही दान-पुण्य, मंदिर दर्शन-पूजन के साथ ही अन्य धार्मिक अनुष्ठान भी किए जाते हैं। तो वहीं महाकुंभ में हिस्सा लेने वाले अघोरी,नागा साधु और संन्यासी हिंदू धर्म की गहराई और विविधता को भी दर्शाते हैं। महाकुंभ का यह आयोजन धार्मिक आस्था, सामाजिक एकता और सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक माना जाता है।

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