Mahakumbh 2025: महाकुंभ के दौरान “144 साल” की जमकर होती रही चर्चा…जानें क्या है इसका सच?

March 5, 2025 by No Comments

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Mahakumbh 2025: उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में 13 जनवरी 2025 से 26 फरवरी महाशिवरात्रि तक आयोजित महाकुंभ में देश-विदेश से करोड़ों श्रद्धालु पहुंचे और संगम में पवित्र स्नान किया. इस दौरान पूरी दुनिया ने सनातन धर्म की एक अलग की छटा देखी. महाकुंभ सिर्फ एक मेला नहीं है बल्कि यह आस्था, परंपरा और हिंदू संस्कृति का संगम बना. तो वहीं इस बार यानी 2025 में आयोजित महाकुंभ को लेकर ये दावा किया जा रहा था कि महाकुंभ 144 साल बाद आया है.

यही वजह रही कि प्रतिदिन लाखों श्रद्धालुओं ने पवित्र स्नान ये सोचकर किया कि अब जिंदगी में फिर से महाकुंभ का ये अद्भुत संयोग नहीं मिलेगा. श्रद्धालुओं की श्रद्धा का हाल ये रहा कि 65 करोड़ से अधिक लोगों ने स्नान किया. हालांकि कई बार लोगों के मन में ये सवाल भी उठते रहे कि हर 12 साल में पड़ने वाले कुंभ को लेकर ये क्यों कहा जा रहा है कि ये 144 साल बाद आया है? तो आइए जानते हैं कि क्या है इसको लेकर धार्मिक मान्यता?

सबसे पहले ये जानते हैं कि क्यों होता है कुंभ मेले का आयोजन?

पौराणिक कथा की मानें तो समुद्र मंथन के दौरान जब अमृत को लेकर राक्षस और देवताओं के बीच संघर्ष चल रहा था उसी दौरान इंद्र देव के पुत्र जयंत ने कौवे का रूप धर लिया और अमृत कलश लेकर उड़ गए. इसी दौरान अमृत कलश की बूंदे चार जगह (हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक) में गिर गईं. मान्यता है कि जिन स्थानों पर ये बूंदे गिरी वहां-वहां कुंभ मेला का आयोजन करने का चलन शुरू हो गया.

जानें कितने प्रकार के होते हैं कुंभ?

मान्यता के अनुसार कुंभ पांच प्रकार के होते हैं और इनके आयोजन का समय भी तय है, जैसे
पहला कुंभ जो कि हर चार सालों में एक बार पड़ता है.
अर्धकुंभ हर 6 साल बाद आयोजित किया जाता है.
पूर्णकुंभ 12 सालों में एक बार आयोजित होता है.
तो वहीं जिसे महाकुंभ कहा जाता है वह 144 सालों बाद आयोजित होता है, जो कि इस बार यानी 2025 में 14 जनवरी (मकर संक्रांति) से लेकर 26 फरवरी (महाशिवरात्रि) तक आयोजित हुआ.

जानें क्या है पूर्णकुंभ और महाकुंभ में अंतर?

मान्यता के अनुसार पूर्णकुंभ तब आता है जब बृहस्पति को सूर्य का 1 चक्कर लगाने में 12 साल लगते हैं. तो वहीं जब ये 12 साल के 12 पूर्ण कुंभ पूरे होते हैं तब 144 साल बाद महाकुंभ पड़ता है.

जानें कैसे हुई थी कुंभ की शुरुआत और किसने की?

जहां कुछ कथाओं में दावा किया जाता है कि कुंभ का आयोजन समुद्र मंथन के बाद से ही किया जा रहा है. तो वहीं कुछ ग्रंथों में इसको लेकर जानकारी मिलती है कि सतयुग में कुंभ मेले का आयोजन शुरू हुआ था और आदि शंकराचार्य द्वारा महाकुंभ की शुरुआत की गई थी.

जानें क्या है महाकुंभ के 144 साल वाले संयोग की सही बात?

बता दें कि इस साल पड़े महाकुंभ को लेकर चर्चा होती रही कि ये 144 वर्षों बाद पड़ा है. इसको लेकर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ की सरकार ने भी कहा कि ये महाकुंभ 144 साल बाद पड़ा है.

इसको लेकर विपक्ष ने जमकर योगी सरकार को घेरा और कहा कि हर 12 साल में महाकुंभ पड़ता है तो वहीं अगर सरकारी रिपोर्ट की मानें तो इससे पहले 2013 के कुंभ को भी महाकुंभ का नाम दिया गया था. यही वजह रही कि लोगों के दिमाग में इस बात को लेकर सवाल उठता रहा कि अगर 2013 में 144 साल वाले महाकुंभ का संयोग बना था तो इस बार 2025 में ये संयोग कैसे बन सकता है.

इसको लेकर जानकारों का दावा है कि जब विशेष खगोलिय स्थिति में चंद्रमा, शनि और बृहस्पति ग्रह सूर्य के साथ एक रेखा में आते हैं तो 144 साल बाद महाकुंभ के होने का संयोग बनता है और यही महत्वपूर्ण महासंयोग इस बार 2025 में बना. यही वजह रही कि इस बार पूर्णकुंभ को 144 साल बाद आने वाला महाकुंभ बताया गया.

बता दें कि धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सनातन में महाकुंभ में संगम पर स्नान करने को सबसे पवित्र माना गया है. माना जाता है कि इस दौरान संगम में किया गया स्नान अमृत के समान होता है और सभी पाप व कष्ट मिट जाते हैं. यही वजह रही कि इस बार महाकुंभ के 45 दिनों तक इतनी भीड़ रही कि पूरे प्रयागराज में तिल रखने तक की जगह नहीं थी. न केवल देश बल्कि विदेशों से भी श्रद्धालु स्नान के लिए पहुंचे. सरकारी दावों के मुताबिक इस बार करीब 65 करोड़ लोगों ने संगम में स्नान किया.

Disclaimer: यहां दी गई सूचना व जानकारी सिर्फ मान्यताओं पर आधारित है. यहां यह बताना जरूरी है कि खबर स्टिंग किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से अवश्य सलाह ले लें.

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