Basant Panchami: बसंत पंचमी 14 फरवरी को….मां सरस्वती को लगाएं बेर का भोग, जानें ब्राह्मण संहिता में क्या बताया गया है महत्व

February 12, 2024 by No Comments

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Basant Panchami: हिंदू धर्म में माघ शुक्ल पंचमी को बसंत पंचमी के रूप मे मनाते हैं. बसंत को ऋतुओं का राजा माना जाता है. वैसे अगर देखा जाए तो बसंत ऋतु के तहत चैत्र और वैशाख के महीने भी आ जाते हैं फिर भी माघ शुक्ल पंचमी को ही यह उत्सव मनाया जाता है. भगवान श्रीकृष्ण को इस उत्सव का अधिदेवता कहते हैं. इसीलिए ब्रज में आज के दिन राधा और कृष्ण के आनन्द विनोद की लीलाएं बड़ी धूमधाम से मनाई जाती है. इस बार बसंत पंचमी का पर्व 14 फरवरी को मनाया जा रहा है.

वसंत पंचमी का दिन मां सरस्वती को समर्पित होता है. देवी सरस्वती को ज्ञान, कला और संगीत की देवी माना जाता है। इसलिए इस दिन लोग मां सरस्वती की पूजा अर्चना करते हैं। पूजा के दौरान पीले रंग के वस्त्र धारण करने को शुभ माना जाता है. इस दिन देश के विभिन्न हिस्सों में अलग अनुष्ठान होते हैं। मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और झारखंड जैसे राज्यों में भक्त मां सरस्वती के साथ भगवान शिव और उनकी पत्नी देवी पार्वती की भी पूजा करते हैं। वहीं बंगाल में इस दिन को लेकर एक ऐसी प्रथा है जो बाकी राज्यों से अलग है। दरअसल बंगाल के लोग सरस्वती पूजा यानी बसंत पंचम से पहले बेर खाने से परहेज करते हैं। इसके लिए अलग मान्यता बताई जाती है.

इन ग्रंथों में मिलता है बेर का उल्लेख
बता दें कि, बंगाल के रहने वाले लोग सरस्वती पूजा या बसंत पंचमी से पहले बेर खाने से परहेज करते हैं। इस बारे में ब्राह्मण संहिता और रामायण जैसे कई पुराने ग्रंथों में बेर का उल्लेख मिलता है। रामायण की कहानी में शबरी ने श्री राम को जंगली बेर का फल दिया था। तो वहीं भगवान विष्णु का संबंध भी बेर के पेड़ से जुड़ा माना जाता है। श्री विष्णु को संस्कृत में बद्री कहा जाता है। माना जाता है कि इसका सांस्कृतिक महत्व होने के बावजूद भी बंगाल में सरस्वती पूजा से पहले बेर खाना सही नहीं माना जाता है। बसंत ऋतु का फल होने के कारण बेर बसंत पंचमी के आस-पास ही बाजारों में बिकने के लिए आते हैं,लेकिन बंगाली समाज जब तक बेर का भोग देवी सरस्वती को नहीं लगा लेता तब कर इसको नहीं खाता. बेर का प्रसाद खाने के बाद ही इस खाया जाता है. इस शुभ दिन से पहले बेर खाना का अर्थ है कि देवी सरस्वती का अपमान करना। बंगाल के कुछ घरों में सरस्वती पूजा सम्पन्न होने के बाद शाम को पारंपरिक बेर का अचार तैयार किया जाता है। मान्यता है कि मां को बेर का भोग लगाने से घर में सुख व शांति आती है और परिवार में बुद्धि व विवेक का विकास होता है.

जानें क्या है बंगाल में सरस्वती पूजा का महत्व
सरस्वती पूजा बंगाल के सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक माना जाता है। इस त्योहार को बंगाल समाज के लोग बड़े ही धूमधाम के साथ मनाते हैं और इसके लिए कई दिनों पहले से ही तैयारी शुरू कर दी जाती है. इस दिन वीणावादिनी मां सरस्वती की मूर्तियां स्थापित की जाती हैं। दोपहर में देवी की पूजा कर मौसमी फलों आदि का प्रसाद चढ़ाया जाता है। ताजे पीले और सफेद फूल और बेर आदि प्रसाद चढ़ाए जाते हैं। सरस्वती पूजा का अवसर बच्चों की पढ़ाई और आध्यात्मिक कार्यों के लिए बेहद शुभ माना जाता है। तो वहीं हिंदू समाज की सुहागिन महिलाएं इस दिन सुबह स्नान आदि से निवृत्त होने के बाद गौरी माता से सुहाग लेती हैं.