मानसिक मंदित महिला को आसरा दिलाने के लिए तेज धूप में सुबह से शाम तक लेकर भटकती रहीं महिला सिपाही, लखनऊ के किसी भी आश्रयगृह ने नहीं खोला ” दरवाजा”, तार-तार हुई इंसानियत, जब सिपाही के साथ ये हाल तो भला क्या होगा आम लोगों का
लखनऊ। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में रविवार को एक ऐसी घटना हुई, जिसने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। शहर में बने किसी भी सरकारी सहायता प्राप्त और निजी आश्रयगृह ने एक मानसिक मंदित महिला के लिए ” दरवाजा” नहीं खोला, जबकि खुद महिला सिपाही अपनी स्कूटी पर लेकर महिला को भर्ती कराने के लिए लेकर पहुंची थीं।
इस घटना के बाद से एक सवाल तो यही खड़ा हो गया है कि जब सिपाही के साथ ये बर्ताव है तो भला आम जनता को कैसे सहारा मिलता होगा, इन आश्रय गृहों में। इस सम्बंध में सरकार को कोई न कोई ठोस कदम उठाने की जरूरत है और आश्रय गृहों में जिनको रखा जा रहा है, इस पर भी जांच करने की जरुरत है कि आखिर क्या सही है और क्या गलत। क्या सरकार द्वारा दी जा रही सुविधाएं उन लोगों तक पहुंच रही हैं, जो जरुरतमंद हैं, या फिर जिनके लिए ये आश्रय स्थल बनाए गए।
पूरे मामले की कहानी महिला सिपाही की जुबानी
आलमबाग थाने की महिला सिपाही मनीषा सिंह और नीलम ने आपबीती बताते हुए कहा कि उनको फोन पर एक 35-40 वर्षीय मानसिक मंदित महिला के बारे में जानकारी मिली और वह तत्काल उस स्थान पर पहुंच गईं, जहां महिला थी। इसके बाद उनको चिकित्सा सुविधा के लिए लोकबंधु लेकर गईं, जहां डाक्टर ने कहा कि यह मानसिक मंदित केस है, इनको किसी आश्रयगृह में ले जाएं। इस पर महिला को आशा ज्योति केंद्र लेकर गई। इस पर यहां कहा गया कि मानसिक मंदित को नहीं रखा जाता है और दूसरे आश्रय गृह दया सदन के बारे में बता कर, उनका नम्बर दे दिया गया।
इस पर महिला सिपाही ने कहा कि धूप बहुत है किसी गाड़ी से भिजवा दीजिए, इस पर आशा ज्योति केंद्र के स्टाफ ने कहा कि गाड़ी में पेट्रोल नहीं है। इसके बाद महिला सिपाही तेज धूप में ही स्कूटी पर लेकर महिला को तेलीबाग स्थित दया सदन लेकर निकल गईं, लेकिन रास्त भटक जाने के कारण जब दया सदन में पता पूछने के लिए फोन किया तो फोन नहीं उठाया गया। इस पर आशा ज्योति केंद्र भी फोन किया, लेकिन यहां भी फोन नहीं उठा।
इस तरह देर शाम तक जब किसी आश्रय गृह के आश्रय रूपी दरवाजा नहीं खुला तो वह थक हार कर पुलिस के महिला हेल्प डेस्क में पनाह दी। बता दें कि महिला हेल्प डेस्क 24 घंटे खुला रहता है। इसीलिए महिला को यहां रखा और फिर उसे खाना आदि खिलाया गया। बता दें कि इस दौरान महिला सिपाही ने मोतीनगर स्थित अपना घर में भी फोन किया, लेकिन वहां यह कह कर बात टाल दी गई कि फुल हो गया है। इसी के साथ महिला सिपाही ने इस दौरान महिला का कोरोना टेस्ट भी कराया ताकि आश्रय गृह में भर्ती करने में किसी तरह की दिक्कत न हो, लेकिन सफलता हाथ नहीं लगी।
होमगार्ड मुख्यालय के बाहर पड़ी मिली थी मानसिक मंदित महिला
मानसिक मंदित महिला पुरानी जेल रोड स्थित होमगार्ड मुख्यालय के बाहर करीब 11 बजे बंगला बाजार निवासी आनन्द मिश्रा को पड़ी हुई दिखाई दी थीं। उनसे जब पता व नाम आदि पूछा गया तो वह कुछ भी नहीं बता सकीं। इस पर आनन्द ने कंट्रोल रूम की सूचना दी। इस पर आलमबाग थाने से महिला सिपाही मनीषा और नीलम पहुंचीं थीं। उन्होंने भी महिला से पूछताछ की लेकिन महिला कुछ भी बताने में असमर्थ थी। इसी के साथ आनंद ने बताया कि पहले जब सूचना 112 पर दी तो सिपाही बालकृष्ण और साहबलाल पहुंचे और सिपाही उल्टा उन पर ही महिला को अस्पताल ले जाने का दबाव बनाने लगे थे। आनंद के मुताबिक जब उन्होंने कहा कि महिला सिपाही बुलाकर पुलिस ही इसे आश्रय गृह भेजें, तो इस पर दोनों सिपाही भड़क गए थे और मारपीट को अमादा हो गए उन्हें धमकी भी दी। आनंद ने बताया कि वह उच्चाधिकारियों से इसकी शिकायत करेंगे।
देखें क्या कहा आशा ज्योति केंद्र की आधीक्षिका ने
आशा ज्योति केंद्र की अधीक्षिका अर्चना सिंह ने बताया कि तीन-चार महीने बाद एक फैमिली कार्यक्रम के लिए अवकाश लिया था, लेकिन मेरा फोन नम्बर बंद नहीं था। लगातार मामले की जानकारी मैं खुद ले रही थी। मेरे यहां पांच बेड हैं और सभी फुल हैं। एक प्रेग्नेंट लड़की भी है, चूंकि वह मानसिक मंदित महिला थी और कहीं कोई हंगामा कर देती तो उसका जिम्मेदार कौन होता। दूसरे हमारे यहां मानसिक मंदित को नहीं रखा जाता है। उनको अपना घर में ले जाने के लिए कहा था और इसके लिए बात भी कर ली थी। अगर कोई ये आरोप लगाता है कि मेरा फोन बंद था, तो कॉल डिटेल निकलवा ली जाए। सब साफ हो जाएगा।
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